छल के विषय में उपदेश
Translated from the booklet by Pastor Carl H. Stevens, of www.ggwo.org titled, ‘The Doctrine of Deception.’

अध्याय I : शत्रु की योजना

प्रत्येक विश्वासी के जीवन में शैतान का लक्ष्य है कि उसे भटका दे, और उसे एक ऐसी यात्रा पर ले जाए जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सम्पूर्ण योजना के बाहर है। इस भाग में व्यवस्थित रूप से शैतान के कुछ तरीकों और प्रणालियों को दिखाया गया है, जो वह विश्वासियों को धोखा देने में इस्तेमाल करता है। १.तुम्हारे  दिमाग का वह हिस्सा जिसमें खरा उपदेश  नहीं है, वह स्थान है जो छल के लिये खुला हुआ है। २.अपने पास्टर-शिक्षक के साथ उपदेश सम्बन्धित घनिष्ठता से कम कुछ मत रखो। यदि तुम्हारा सम्बन्ध व्यक्तित्व की घनिष्टता पर आधारित है, और वह स्वयं खरे उपदेश से दूर हो जाता है, और धोखे में आ जाता है, तब विश्वासी स्वयं छल में गिर पड़ने की सम्भावना में होता है। यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के वचन की ओर सच्चा होने की बजाय तुम पास्टर के पीछे दोस्ती की वजह से व्यक्तित्व के द्वारा चल दोगे। ३.कोई भी चीज जो हम सोचते या करते हैं जो परमेश्वर की सोच के उन्मुख नहीं, वह छल है। अनुग्रह के बाहर का कोई भी व्यवहार छल है, विश्वास के बाहर का कोई भी काम छल है, और परमेश्वर के प्रेम के बाहर का कोई भी विचार छल है। लूका २२:३१-३२ में प्रभु ने पतरस से कहा: देख! शैतान ने तुम्हें गेहूँ के समान फटकने के लिये आज्ञा माँग ली है, परन्तु मैंने तेरे लिये प्रार्थना की है, कि तेरा विश्वास चला न जाए। अत: जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना। एम्पलीफाईड बाइबल इस सच्चाई को विस्तृत सामने लाता है कि शैतान ने न सिर्फ इच्छा की है, लेकिन पूरे जोर से माँग की है और दावा किया है कि (तुम्हारा सबकुछ) उसे दे दिया जाएयही सिद्धान्त १ पतरस ५:८ में भी पाया जाता है, जहाँ प्रेरित पतरस लिखता है: संयमी और सचेत रहो। तुम्हारा शत्रु (ऐन्टीदोकिकोस/antidokikos), शैतान (डायबोलोस/diabolos) गर्जने वाले सिंह की भांति इस ताक में रहता है कि किसको फाड़ खाए। इस पन्क्ति पर संक्षिप्त टीका यह प्रकट करता है: “संयमी” (नेफेत/nephate - नेफो / nepho का सामान्य भूत, कर्तृवाच्य आदेशात्मक), अर्थात विश्वासी को अपने व्यक्तिगत दुश्मन शैतान की चालों को समझने में संतुलित और शान्तचित्त होने का कार्य पैदा करने की आज्ञा दी गई है। “जागते रहो” (ग्रेगोरेसेत/gregoresate) इस बात पर जोर देता है कि हर विश्वासी को सभी समयों में आत्मिक रूप से सचेत और सतर्क रहने की आज्ञा दी गई है (आदेशात्मक रूप), जिससे शैतान उसका फायदा न उठा सके, क्योंकि हम उसकी युक्तियों (नोएमाटा/noemata) से अनभिज्ञ नहीं हैं। डब्ल्यू. ई. वाइन बताते हैं: “वह युक्तियाँ जो शैतान द्वारा उपयोग की जाती हैं, वे विचार हैं जो सोच समझ कर सोचे गए हैं और जिनका एक खास मकसद है।” “युक्तियाँ” (नोएमाटा) का कर्मकारक मुख्यतया सीमा, दिशा और विषय में बढ़ोत्तरी दर्शाता है। यदि हम १ पतरस ५:८ पर वापिस ध्यान दें, जहाँ विरोधी खोज रहा है  कि किन्हे फाड़ खाये/शैतान न सिर्फ साज़िश रच रहा है, बल्कि वह लगातार भयंकर भूख के साथ किसी को पकड़ कर खाने की सक्रियता में तलाश कर रहा है। यही सिद्धान्त प्रकाशितवाक्य १२:१०ब में भी पाया जाता है: क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगाने वाला, जो हमारे परमेश्वर के समक्ष रात-दिन उनको दोषी (कटेगोरोन/kategoron) ठहराता था, नीचे गिरा दिया गया है। “दोष लगाता” (कटेगोरोन) कर्ताकारक में वर्तमान कर्तृवाच्य का कृदंत है। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ है “सबके सामने किसी के खिलाफ बोलना।” शैतान हमेशा परमेश्वर के सामने भाइयों पर इल्जाम लाने में व्यस्त है। इसका एक उदाहरण अय्यूब १:६-१२ में पाया जाता है, जहाँ शैतान का दावा था कि अय्यूब की अच्छाई उसकी सम्पन्नता पर निर्भर थी। मत्ती ४:१-११ में शैतान ने यीशु मसीह को प्रलोभन देकर उससे ईश्वरीयता में कार्य कराने की कोशिश की, परन्तु प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर के वचन से खास उद्धरण किए और शैतान की योजना को विफल कर दिया।

भरमाने वाली आत्माएँ

 परन्तु आत्मा स्पष्ट कहता है कि अन्तिम समय में कुछ लोग भरमनेवाली आत्माओं और दुष्टात्माओं की शिक्षा पर मन लगाने के कारण विश्वास से भटक जाएँगे  (१ तीमुथियुस ४:१)। एक मुख्य स्त्रोत जो शैतान विश्वासियों को भटकाने के लिए इस्तेमाल करता है, वह भरमानेवाली आत्माएँ है। यह आत्माएँ मसीहियों को उनकी सोच में भटकाने के द्वारा छल को उन्नति देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप दुश्मन को परमेश्वर के प्रत्येक सन्तान को बहकाने के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलती है। उपर्युक्त हिस्से को यूनानी भाषा में ध्यान से देखने पर यह समझ में आता है कि प्रेरित पौलुस तीमुथियुस और मसीह की पूरी देह को समझाने की कोशिश कर रहा है। “दुष्टात्माओं की शिक्षावाक्यांश का अनुवाद दुष्टात्माओं की शिक्षाओं और धोखोंकिया जा सकता है। यह भरमानेवाली आत्माएँ (प्लेनाओ/planao) विश्वासी को उसके विचारों में भटकाकर धोखा बढ़ाती हैं। “ध्यान देना” (प्रोसेकोंटेस/prosechontes) वर्तमान काल, कर्तृवाच्य में है, और प्रोसेको/prosecho का कृदंत है। इसका मतलब है, “किसी भी चीज की ओर दिमाग को रोकना या किसी चीज पर ध्यान देना।” विश्वासी अपने विचारों को यीशु मसीह से हटकर इन भरमानेवाली आत्माओं की ओर भटकने देने की अनुमति देने को तत्पर करता है। “भरमानेवाली आत्माएं” (न्यूमासिन प्लानोईस/pneumasin planois) शब्द संप्रदानकारक में है। यहाँ पर नुकसान का संप्रदानकारक इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि विश्वासी के व्यक्तिगत फायदे पर प्रतिकूल असर हो रहा है। “भरमाना” (प्लानोईस) का मतलब है “इधर-उधर घूमना या विश्वासी के विचारों में भटकाव उत्पन्न करना।” भरमाने वाली आत्माएँ विश्वासी के मन को बंदी बनाकर भटका देती हैं। “और दुष्टात्माओं की शिक्षाएँ” (काई डिडास्कालिआईस डाइमोनिओन/ kai didaskaliais daimonion) वाक्यांश में, “और” (काई) एक समन्वय संयोजन है जो इन आत्माओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले एक और महत्वपूर्ण तरीके को दिखाता है - उपदेश सिखाने की प्रक्रिया। यह उपदेश अपना स्त्रोत दुष्टात्माओं से पाते हैं (डाइमोनिओन – संबंधकारक जो कब्ज़ा, स्त्रोत और स्वामित्व बताता है)। इफिसियों ६:१२ यह समझाता है कि वह युद्ध जो मसीही लड़ते हैं, दूसरे व्यक्तियों के खिलाफ़ नहीं है; बल्कि यह एक आत्मिक लड़ाई है: हमारा संघर्ष तो मांस और लहू से नहीं वरन प्रधानों, अधिकारियों, अन्धकार की सांसारिक शक्तियों, तथा दुष्टता की उन आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। इस पन्क्ति में आत्माओं को अधिकारों के चार विभागों में बाँटा गया है: १. प्रधानों – सेनाध्यक्ष (commanding officers) सेनाध्यक्ष इस पन्क्ति में प्रधानों की उपाधि से सम्बोधित किए गए हैं (आर्कास/archas - संज्ञा, कर्मकारक)। “वरन (आला/alla - कर्मधारय समुच्चयबोधक संयोजक) प्रधानों के खिलाफ” वाक्यांश इस विचार का परिचय करता है कि यह सेनाध्यक्ष हाड़ और मांस से बहुत ऊँचे हैं। एक समझदार विश्वासी हमेशा हाड़ और मांस के आगे देखता है और सबकुछ जो स्वाभाविक रूप से हम समझते हैं उसके पीछे के अदृश्य राज्य को देखता है। “खिलाफ” (प्रॉस/pros) कर्मकारक विभक्ति है। थायर के अनुसार इसका मतलब है, “सोचे-समझे मकसद के साथ किसी चीज की ओर देखना।” शैतान इन सेनाध्यक्षों को एक खास सोचे-समझे मकसद से इस्तेमाल करता है। वह लक्ष्यविहीन नहीं है। उसकी एक सोची-समझी रणनीति है, और प्रत्येक विचार और कार्य जिसकी वह शुरूआत करता है उसमें एक क्रम है। “प्रधानों” (tas archas/तास आर्कास) में (तास) डेफिनिट आर्टिकल है, जिससे यह पता चलता है कि प्रधानताओं की खास पहचान और व्यक्तित्व है। यदि यह आर्टिकल न मौजूद होता, तो उससे अस्पष्ट गुण पता चलता। “प्रधानताएं” (आर्कास) कर्मकारक में एक संज्ञा है। ए. टी. रॉबर्टसन कहते हैं, “कर्मकारक आमतौर पर फैलाव का आशय करता है और एक विचार को उसके विषय, विस्तार, और दिशा में नापता है।” स्ट्रोंग की समनुक्रमणिका के अनुसार इसका मतलब है “पद में सर्वोच्च।” थायर कहते हैं, “यह प्रभारी अधिकारी है।” इसलिए यह शब्द उन स्वर्गदूतों और दुष्टात्माओं के आशय में है, जो उन्हें सौंपे गए राज्यों को सम्भालते हैं। यह दुष्टात्माएँ सेनाध्यक्ष हैं – शैतान की सेना के सेनापति। २. अधिकारों – आयुक्त अधिकारी इफिसियों के ६:१२ में यह वाक्यांश “अधिकारों के विरुद्ध” (प्रॉस तास एक्सुसिआस / pros tas exousias), डेफिनिट आर्टिकल (तास) फिर से उपस्थित है। इस आर्टिकल की उपस्थिति सिर्फ किसी शक्ति के गुण की नहीं परन्तु यह इशारा करती है कि विश्वासी एक विशेष व्यक्तित्व से मल्लयुद्ध कर रहा है । “अधिकारों” (एक्सुसिआस) कर्मकारक में एक संज्ञा है। यह एक ऐसे आत्माओं का जिक्र है, जिन्हें बहुत प्रभावी अधिकार दिया गया है। ३. इस संसार के अन्धकार के हाकिम – जासूस “अंधकार” यूनानी भाषा के शब्द स्कोटोस (skotos) से आता है, जिसका मतलब है “ऐसा अन्धकार जो घेरे हुए दायरे जैसा अनुभव होता है, जिसका अस्तित्व पर प्रभाव पड़ता है, अर्थात चलनशीलता और दूरदर्शिता को रोकने के द्वारा और चिन्ता और खतरा पैदा करने के द्वारा” (Theological Dictionary of the New Testament by Geoffrey  W. Bromiley)। यह अन्धकार उन शक्तियों के उस खास दायरे का जिक्र करता है जो बुरी आत्माओं को राज्य करने के लिये बाँटा गया है, इसका एक उदाहरण दानिएल १०:१३ में दिखाई पड़ता है: फारस के राज्य का प्रधान इक्कीस दिन तक मेरा सामना किए रहा: परन्तु मीकाएल जो मुख्य प्रधानों में से है, वह मेरी सहायता के लिये आया इसलिये मैं फारस के राजाओं के पास रहा। शैतान के राज्य के यह जासूस वातावरण में अगुवों और विशेषकर आत्मिक अगुवों के विरोध में पाये जाते हैं। यह ज्यादा मात्रा में उन पर आक्रमण करते हैं, जो परमेश्वर के राज्य के लिये फलदायी हैं। ल्यूइस स्पेरी शेफ़र ने कहा है, “यह एक नुकसानदाई शैतानी विरोध है, जो भटके हुये लोगों के उद्धार की हर कोशिश में दिखाई पड़ सकता है। विश्वासयोग्य पास्टर या प्रचारक के ऊपर शैतान की हर युक्ति गंदे तरीके से आक्रमण करती है, जिससे अनुग्रह के सबसे आवश्यक सन्देश को किसी ऐसी चीज में विकृत कर दे, जो महत्वपूर्ण नहीं है।” वह यह भी कहते हैं, “शैतान का काम इस असलियत में भी दिख सकता है कि एक नम्र संदेशवाहक, जो मसीह और उसके सिर्फ अनुग्रह के द्वारा उद्धार की ओर वफादार है, उसे वर्तमान में तकरीबन अनसुना किया जाएगा; जबकि बहुत सारे लोग उसका समर्थन करते पाए जाएँगे, जो सिर्फ बाहरी रूप से धार्मिक, नैतिकता का सुसमाचार और मसीह में उध्दार का छिपा हुआ इन्कार है।” प्रेरित पौलुस आगे कहता है: और यह उन झूठे भाइयों के कारण हुआ, जो चोरी से घुस आए थे, कि उस स्‍वतंत्रता का जो मसीह यीशु में हमें मिली है, भेद लेकर (काटास्कोपिओ/kataskopeo)  हमें दास बनाएँ (गलातियों २:४)। थायर “भेद लेने” (काटास्कोपिओ) को परिभाषा देता है कि “जाँच करके  या परीक्षण करके बड़े ध्यानपूर्वक भेद लेना, नजदीक से देखना और निरीक्षण करना जिससे भेद लिया जाए और किसी के विरुद्ध जाल रचा जाए।” यह भेदिये झूठे भाई थे और यहाँ पर उनके पास अनुग्रह के सुसमाचार को विधिवादिता में बदलने का मिशन था। ऐसे भेदिये अलौकिक शक्तियों के साथ उन लोगों के खिलाफ षडयंत्र करते हैं, जो परमेश्वर के राज्य में अधिकार के पदों पर हैं (जैसे पौलुस और दानिएल) और आत्मा से भरे हुए दास हैं। ४. उच्च स्थानों में आत्मिक दुष्टता– दुष्टात्माएं “आत्मिक दुष्टता” का तात्पर्य है वे अलौकिक प्राणी जो इन्सान के ऊपर हैं लेकिन परमेश्वर के नीचे हैं। यह प्राणी जानबूझ कर बुरी मरजी का अभ्यास करते हैं। “उच्चस्थान” आसमान के निचले हिस्सों की बात करता है जो आकाश के नीचे है। इसका मतलब वे दुष्टात्माएं जो लोगों के बीच में गलतियाँ फैलाना चाहते हैं और विश्वासियों को भरमाना चाहते हैं (१ तीमुथियुस ४:१)। यह वे प्रतिनिधि हैं जो मनुष्य की बुरी मूर्तिपूजा में काम करते हैं। इसलिये, यह देखा जाता है कि मूर्तिपूजा के लक्ष्य में कोई शक्ति नहीं होती है; बल्कि वह दुष्टात्मा जो उससे जुड़ा हुआ होता है वह आराधना, और बलियों की शुरूआत करके मूर्तिपूजा प्रेरित करता है। यह दुष्टात्माएं विश्वासी को इन्सानी अच्छाई के दायरे में रहने के लिये प्रेरित करने के द्वारा पुराने पापी स्वभाव का फायदा उठाते हैं जिससे उसका जीवन बाहरी तौर पर परमेश्वर को ग्रहणयोग्य लगेगा, लेकिन यह व्यक्ति वाकई में पवित्र आत्मा की ताकत में परमेश्वर के अनुग्रह के अनुसार नहीं जी रहा है।

अध्याय II : छल की अवस्थाएँ

अन्धकार की दुष्ट सेनाओं के द्वारा छल के चार भारी क्रमबद्ध तरीके अपनाए जाते हैं। शैतान की योजना की निम्नलिखित चार अवस्थाओं को ध्यानपूर्वक अध्ययन करें।

पहली अवस्था: आसमानी छल

शैतान का उद्देश्य विश्वासी को छल की प्रक्रिया के द्वारा भटकाना है। उसका यह तरीका है कि मसीहियों के मानसिक मनोभाव में धोखा देकर उनके मनों को आत्मिक बातों से भटकाये, जैसा कि नीचे दिये गये पदों में है: मैंने ये बातें तुम्हें उनके विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं (१ यूहन्ना २:२६) । पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है, कि तू उस स्त्री इजेबेल को रहने देता है जो अपने आप को भविष्यवक्तिन कहती है, और मेरे दासों को व्यभिचार करने, और मूरतों के आगे के बलिदान खाने को सिखलाकर भरमाती है (प्रकाशितवाक्य २:२०) । परन्तु आत्मा स्पष्‍टता से कहता है, कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्‍टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे (१ तीमुथियुस ४:१) ।

आसमानी छल के लक्षण

पवित्रशास्त्र से यह बात स्पष्ट है कि परमेश्वर के सन्तजन भरमाए जाने (अपोप्लानेओ/apoplaneo) के द्वारा भटकाए जा रहे हैं। परमेश्वर के वचन में कुछ संकेत या लक्षण दिए गये हैं, जो हमें चेतावनी देते हैं कि छल की प्रक्रिया आरम्भ हो गई है: अ. ऐसी बातें बोलना जो किसी को सुखी करती हैं (यिर्मयाह ४८:११), क्रूस उठाकर जहाँ भी यीशु मसीह हमारी अगुआई करे वहाँ तक उसके पीछे चलने की इच्छा का मुँह से इकरार करने की बजाय।हाय उन पर जो सिय्योन में सुख से रहते  हैं” (आमोस ६:१अ)। ब. अपनी बोलचाल में उन व्यंगों का इस्तेमाल, जिनके द्वारा परमेश्वर की सेवकाई पर आक्रमण होता है। क्‍योंकि बहुत से लोग निरंकुश बकवादी और धोखा देनेवाले हैं; विशेष कर के खतना वालों में से” (तीतुस १:१०)। स. परमेश्वर के वचन में ध्यान की कमी। जब ऐसा होता है तो परमेश्वर का वचन विश्वासी के अन्दर स्थान नहीं पाता है (यूहन्ना ८:३७)। यदि वह परमेश्वर के वचन पर मनन नहीं कर पाता, तो उसका विश्वास कमजोर हो जाएगा, क्योंकि “विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है” (रोमियों १०:१७)। इस छल के परिणाम यिर्मयाह ४८:१२ में बताए गए है: इस कारण यहोवा की यह वाणी है, ऐसे दिन आएंगे, कि मैं लोगों को उसके उण्डेलने के लिये भेजूंगा, और वे उसको उण्डेलेंगे, और जिन घड़ों में वह रखा हुआ है, उनको छूछे करके फोड़ डालेंगे। नीतिवचन २१:१६ इस छल की स्थिति के आखरी परिणाम का वर्णन करता है: जो मनुष्य बुद्धि के मार्ग से भटक जाए, उसका ठिकाना मरे हुओं के बीच में होगा। द. स्वयं के जीवन का उकसाना और सम्भाला जाना, चाहना और खोजना। “जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; (यूहन्ना १२:२५अ)। “इसलिये सुन, क्या तू अपने लिये बड़ाई (अपनी देह की लालसाओं की तृप्ति) खोज रहा है? उसे मत खोज” (यिर्मयाह ४५:५अ)। “पर यह ध्यान रख, कि अन्‍तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य स्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी होंगे” (२ तीमुथियुस ३:१-२अ)। जैसा २ तीमुथियुस ३:४ में दिखाया गया है, ऐसे व्यक्ति ढीठ, घमण्डी और परमेश्वर के नहीं वरन सुख-विलास के चाहने वाले होते हैं। इ. शैतान मनुष्य को फँसाकर धोखे (डोलोस/dolos) में ले जाने के लिये उसके स्वाभाविक हृदय में से फन्दा इस्तेमाल करता है। यह सिद्धांत मरकुस ७:२१-२३ में दर्शाया गया है: क्‍योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्‍ता, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्‍टता, छल (dolos), लुचपन, कुदृष्‍टि, निन्‍दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं\ और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।” (रोमियों १:२८)। “मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है” (नीतिवचन २९:२५अ)। वस्तुत:, दूसरों के साथ परस्पर बातचीतों को ईमानदारी से जाँच करने पर चकित करने वाली संख्या में मौके पता चलेंगे, जिनमें विश्वासी परमेश्वर की प्रशंसा से ज्यादा इन्सान की प्रशंसा पसंद करने की शैतान की चालो में फँसे होते हैं (यूहन्ना १२:४३)। फ़. विश्वासी की जुबान शैतान द्वारा उसे आगे छल में ले जाने के लिये ललसाने के चारे के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। “चारे की तरह ललसाना” का अनुवाद किया जा सकता है “छल का इस्तेमाल (डोलियू/dolioo)उन का गला खुली हुई कब्र है:  उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है; उनके होठों में सापों का विष है” (रोमियों ३:१३)। यहाँ पर जुबान विश्वासी को फँसाने के लिये औजार के तौर पर इस्तेमाल की गई। यीशु ने यही शब्द डोलियू  मत्ती २४:४-५ में इस्तेमाल किया, जहाँ उसने कहा, सावधान रहो, कोई तुम्हें धोखा न दे, क्योंकि बहुत से लोग मेंरे नाम से यह कहते आएंगे, ‘मै मसीह हूँऔर बहुतों को धोखा देंगे। चारे के द्वारा ललसाने की यह योजना सबसे पहले उत्पति ३:१-६ में इस्तेमाल की गई थी, जब सर्प ने हव्वा को मना किए गए ज्ञान के वृक्ष में से खाने को उकसाकर उसका फायदा उठाया। उसने परमेश्वर द्वारा उत्पति २:१६-१७ में दी गई आज्ञा की ओर नकारात्मक प्रतिक्रिया की, परमेश्वर के वचन का गलत हवाला दिया और परिपूर्ण वातावरण में परमेश्वर की परिपूर्ण योजना का तिरस्कार किया।

 दूसरी अवस्था : आत्म-छल

धोखे में पड़ा विश्वासी स्वयं से झूठ बोलता है और अपने चालचलन के बारे में आए उपदेश को नकारात्मक ग्रहण करता है। उसके जीवन में तब अभिमान और आज़ादी की भावना दिखाई पड़ती है और जो परमेश्वर के सामने नम्रता और टूटेपन की किसी भी झलक की जगह ले लेती है। आदतन तौर पर वह हालातों में गलत प्रेरणा रखेगा और अपने मन को झूठे विचारों से प्रभावित होने देगा। उसके प्राण की मिट्टी में, उसके मन में परमेश्वर के वचन के मजबूत रोपण की कमी होगी। मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नाश हो गई; तूने मेरे ज्ञान को तुच्छ जाना है, इसलिये मैं तुझे अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराऊंगा। और इसलिये कि तूने अपने परमेश्वर की व्यवस्था को तज दिया है, मैं भी तेरे लड़केबालों को छोड़ दूंगा। जैसे वे बढ़ते गए, वैसे ही वे मेरे विरुद्ध पाप करते गए; मैं उनके विभव के बदले उनका अनादर करूंगा। (होशे ४:६-७) इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की जोरदार बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता (सुशील, सविनय) से स्वागत और ग्रहण कर लो, जो [तुम्हारे] हृदय में बोया और जड़ किया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार करने की ताकत रखता है। (याकूब १:२१, एम्पलीफाइड) इफिसियों ४:२२ में विश्वासी को आज्ञा दी गयी है कि तुम पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को उतार डालो जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है।यदि यीशु मसीह में नये मन को पहनने का यह प्रबन्ध इस्तेमाल न किया जाए तब धोखे के द्वारा लालसाएँ उत्तेजित की जाएँगी, क्योंकि छल सामर्थ्य का स्त्रोत बन जाता है। परन्तु, सन्देश की आज्ञा मानो; वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं, जो अपने आप को [सत्य के विपरीत तर्क करके गुमराह करते हुए] धोखा (छल) देते हैं। (याकूब १:२२, एम्पलीफाइड) वे धोखा दिए जाने का कार्य ग्रहण करना शुरू कर देते हैं और ऐसे तर्क से दबा दिये जाते हैं, जो उस कलम बांधे हुये सत्य के विरोध में है जो एक समय में प्राणों में संग्रहित था। उन्होंने व्यवस्था के करने वालेहोना बन्द कर दिया और व्यवस्था (उपदेश) के न्याय करने वालेबन गए (याकूब ४:११)।    बहुत सारे अनगिनत लोग हैं, जो इस प्रकार के आत्म-छल के हिस्सेदार बन गये हैं। वे कभी भी किसी भी प्रकार के प्रचार का हिस्सा नहीं बनते हैं; फिर भी वे आसानी से उन्हें दोषारोपित और आलोचना करते हैं जो भटके हुओं के लिये दर्शन रखते हैं, वे परमेश्वर को जानने का दावा करते हैं, परन्तु कार्यों में उसका इनकार करते हैं (तीतुस १:१६)। ऐसा लग सकता है कि उनके पास भारी शब्द हैं, परन्तु ध्यान रखो कि यीशु ने यूहन्ना ७:१७ में कहा यदि कोई उस की इच्‍छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि यह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूँ।भक्ति भरा विश्वास हमेशा भक्ति भरे कार्य पैदा करता है, “पर हे निकम्मे (kenos - आत्मिक धन से कंगाल) मनुष्य क्‍या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है?”  (याकूब २:२०)। मसीहियत वचन के अक्षरों को जानने से ज़्यादा है, जैसा कि २ कुरिन्थियों ३:६ में कहा गया है। यह सिर्फ सिद्धांत से ऊपर जाता है और व्यवहारिक उपजाऊपन में जीवन को प्रकट करता है, “सो उनके फलों से तुम उन्‍हें पहचान लोगे”  (मत्ती ७:२०)।

मन में धोखा पाना

गलातियों ६:३ कहता है, क्‍योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा (phrenapata/फ्रेनापटा) देता है।” “धोखा फ्रेनापटेओ (phrenapateo) का वर्तमान कर्तृवाच्य घोषणात्मक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “किसी के मन में धोखा देना।” यह तथ्य है कि यह मनुष्य अपने तर्क के तरीकों में धोखा पाने का कार्य पैदा कर रहा है। इसका मतलब “कल्पनाओं के द्वारा छल” भी है (लाइटफुट)। इसका मतलब आत्मनिष्ठा होता है, जो कि वाकई में आत्मछल है, जो सामान्य बोध के खिलाफ पाप है। एम्पलीफाईड बाइबल गलातियों ६:३ को इस तरीके से स्पष्ट करती है: क्‍योंकि यदि कोई कुछ (अपनी निगाह के अलावा किसी उच्चता का) न होने पर भी अपने आप को कुछ (इतना खास कि दूसरे का बोझ स्वयं लेने के लिए बढ़ा समझता है), तो अपने आप को धोखा और छल और झाँसा देता है। आत्मछल का सबसे आम प्रकटीकरण बलि का बकरा सिद्धान्त में होता है। हव्वा ने उत्पत्ति ३:१३ में सर्प पर इल्जाम लगाया: तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, तू ने यह क्या किया है? स्त्री ने कहा, सर्प ने मुझे बहका दिया तब मैंने खाया। हव्वा ने अपने निर्णयों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी को इन्कार किया। उत्पत्ति २:१६-१७ में पाये गए परमेश्वर के निषेध की ओर उसकी इच्छाशक्ति ने नकारात्मक प्रतिक्रिया की: तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है:  पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा। उत्पत्ति ३:१२ में आदम ने परमेश्वर और हव्वा दोनों पर इल्जाम लगाया: आदम ने कहा जिस स्त्री को तूने मेंरे संग रहने को दिया है, उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैंने खाया।वह उत्पत्ति २:१६-१७ की ईश्वरीय आज्ञा के विपरीत अपने स्वतंत्र निर्णय के लिये जिम्मेदार नहीं होना चाहता था। हारून भी बलि का बकरा सिद्धान्त को तोड़ता हुआ पाया गया: हारून ने उत्तर दिया, मेंरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगों को जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं और उन्होंने मुझसे कहा, कि हमारे लिये  देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ (निर्गमन ३२:२२-२३)। हारुन ने एक जिम्मेदार अगुवा होने में अपनी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करने से इनकार किया। जब वह मूसा कि अनुपस्थिति में इस्राएल के लोगों को सुरक्षा देने के लिये नियुक्त कार्य में असफल रहा, तब उसने लोगों पर इल्जाम लगाया। बलि का बकरा की इस तकनीक का शाऊल एक प्रसिद्ध उदाहरण है। उसने अमालेकियों को पूर्ण तरीके से नष्ट करने की प्रभु की आज्ञा की अवहेलना का समर्थन किया, जिसमें परमेश्वर ने किसी भी चीज और किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ने को कहा था: शाऊल ने शमूएल से कहा, नि:सन्देह मैंने यहोवा की बात मानकर जिधर यहोवा ने मुझे भेजा उधर चला, और अमालेकियों को सत्यानाश किया है। परन्तु प्रजा के लोग लूट में से भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, अर्थात सत्यानाश होने की उत्तम उत्तम वस्तुओं को गिलगाल में तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये बलि चढ़ाने को ले आए हैं। (१ शमूएल १५:२०-२१) निस्सन्देह, परमेश्वर से यह कहना आसान बात लगी कि लोग गलत थे। विश्वासी को हमेशा याद रखना चाहिए कि इन हालातों में असली दोषी बाहर की हालातें नहीं हैं, जो अवहेलना पैदा करती हैं, बल्कि उसकी इच्छाशक्ति जो परमेश्वर की आज्ञा को नकारात्मक प्रत्युत्तर देना चुनती है। वह व्यक्तिगतरूप से अपने प्राणों के लिये जिम्मेदार है। मैं दोहराता हूँ, जानबूझकर की अवहेलना बाहरी हालातों का परिणाम नहीं है, न कि किसी और के कार्यों का, और न उन परिणामों का जो वे कार्य जीवनों में लाते है। यीशु मसीह इकलौता न्यायसंगत बलि का बकरा है, क्योंकि उसने सभी को अनुग्रह, करुणा, और क्षमा बाँटी है। उसने लैवव्यवस्था १६:२१-२२ के अनुसार इन्सान के पापों को “जंगल तक दूर ले गया है” : और हारून अपने दोनों हाथों को जीवित बकरे पर रखकर इस्त्राएलियों के सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, निदान उनके सारे पापों को अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिर पर धरकर उसको किसी मनुष्य के हाथ जो इस काम के लिये तैयार हो जंगल में भेजके छुड़वा दे। और वह बकरा उनके सब अधर्म के कामों को अपने ऊपर लादे हुए किसी निराले देश में उठा ले जाएगा; इसलिये वह मनुष्य उस बकरे को जंगल में छोड़ दे। यह बकरा कभी वापिस नहीं आएगा, जैसे कि विश्वासी के पाप और बुराइयाँ परमेश्वर द्वारा हमेशा के लिये भुला दी गई हैं और दुबारा न्याय के लिये नहीं लाई जाएँगी (इब्रानियों ८:१२; मीका ७:१८)।

खोखले शब्दों द्वारा छल किया जाना

१ पतरस ३:८ में मसीहीजन को भाईचारे की प्रीति रखने वाले, करुणामय और नम्र बननेकी आज्ञा दी गई है। प्रीति (philadelphoi/फिलाडेल्फोई – विशेषण कर्ताकरक) का मतलब है, जीवन के व्यवहारिक अनुभवों के संबंध में वचन पर आधारित संगति के द्वारा संचालित सम्बन्ध रखना। जब विश्वासी इस आज्ञा को नहीं मानते हैं, वे प्राण-शक्ति (खुद की ओर व्यस्तता) से नियंत्रित हो जाते है। प्राण-शक्ति वाले संबंधो के दो उदाहरण देमास और दियुत्रिफेस के जीवन में मिलते हैं। देमास आज की दुनिया में व्यस्त था: क्‍योंकि देमास ने इस संसार को प्रिय जानकर मुझे छोड़ दिया है” (२ तीमुथियुस ४:१०)। दियुत्रिफेस सर्वश्रेष्ठता की इच्छा से प्रभावित हुआ था: “मैंने मण्‍डली को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उनमें बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता” (३ योहन्ना ९)। इससे भावुकता पैदा होती है और स्वाभाविक जरूरत परस्पर क्रियाओं को प्रेरित करती है। ऐसे सम्बन्ध व्यक्तित्व की घनिष्टता (अर्थात व्यक्तित्व अभिमूल्यन) के द्वारा चलाए जाते हैं और उपदेश पर आधारित नहीं होते हैं। कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा (apatato/अपातातो) न दे; क्‍योंकि इन्ही कामों के कारण परमेश्वर का क्रोध आज्ञा न मानने वालों पर भड़कता है (इफिसियों ५:६)। धोखा (अपातातो/apatato – अपातू/apatoo का वर्तमान, कर्तृवाच्य, आज्ञाकारक) है। इसका मतलब खोखले शब्दों द्वारा छल किए जाने का जिक्र करता है। यह बिलकुल साफ़ है कि विश्वासी को आज्ञाकारक क्रियार्थ में सीधी आज्ञा दी गई है कि वह किसी व्यक्ति को खोखले शब्दों के द्वारा उसे धोखा देने की अनुमति देने का कार्य पैदा करने से रोके। हमें एक सिपाही के समान इस आज्ञा का पालन करना है, जैसे वह अपने अधिकारी की आज्ञा का पालन करता है। प्रेरित पौलुस ने पवित्र आत्मा के द्वारा प्रेरणा पाकर इस आज्ञा के आज्ञापालन के लिये अनुरोध किया है, जिससे कि हम आज्ञापालन का फायदा ग्रहण कर सकें। इफिसियों ५:७ में आगे आज्ञा दी गई है, “इसलिये तुम उन के सहभागी न हो।” “न हो” बताता है कि छल की प्रतिक्रिया पहले ही आरम्भ हो चुकी है। इफिसियों के लोग छल करने वालों को वाकई सुन रहे थे। आदेशात्मक क्रियार्थ इस आज्ञा का इशारा करता है कि खोखली बातें करने वाले इन लोगों के साथ सम्बन्ध तुरन्त खत्म किया जाए। छल, आजकल का अलोकप्रिय विषय, ज्यादातर पुलपिटों में बहुत कम बोला या समझा जाता है। फिर भी यह सोचनीय है कि पौलुस प्रत्येक उस कलीसिया में, जो उसने शुरू किया, इस मुद्दे की लगातार बात करता है। क्या यह संभव है की आज का कलीसिया पौलुस के दिन के कलीसिया से आगे उस जगह तक निकल गया है, जहाँ उसे इस तरीके के छल का सामना नहीं करना पड़ रहा है? मसीहीजनों को वाकई अपने दुश्मन शैतान के मकसद, चालें, और तरीकों को पहचानना होगा, जो दिनरात भाइयों पर इल्जाम लगाता हुआ परमेश्वर के सामने खड़ा होता है (प्रकाशितवाक्य १२:१०)। आत्मछल का एक और रूप है जो ऐसे व्यक्ति पर लगाया गया है जो अपने पाप स्वीकार करता है; फिर भी सच्चा मनफिराव (metanoia/मेटानोइया – मन परिवर्तन) नहीं रखता है। इस प्रकार के अत्मछल के तीन साफ़ उदाहरण हैं जो विचार किए जायेंगे, जिनमें पहला उदाहरण बिलाम का है: तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं नहीं जानता था कि तू मेरा सामना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिये अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूँ (गिनती २२:३४)। झूठे शिक्षक बिलाम के कदमों में चलते हैं क्योंकि वे, सही मार्ग को त्याग कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग के पीछे चलकर, अधार्मिकता की मजदूरी से प्रेम करते हैं” (२ पतरस २:१५)। बिलाम अपने स्वाभाविक तरीकों से ऊपर उठकर आत्मिकता की जगह तक कभी भी नहीं पहुँचा। जबकि उसने अपने मुँह से अंगीकार तो किया, लेकिन उसके कार्यों में यह  देखा जा सकता है कि वह इस संसार के अनुरूप बना रहा। उसने पश्चाताप के बिना अंगीकार किया। पतरस उसे “बिना पानी का कुआँ” कहता है (२ पतरस २:१७अ)। शाऊल इस तरीके के छल का उदाहरण बना, जब उसने कहा: मैंने पाप किया है; मैंने तो अपनी प्रजा के लोगों का भय मानकर और उनकी बात सुनकर यहोवा की आज्ञा और तेरी बातों का उल्लंघन किया है” (१ शमूएल १५:२४)। उसके हावभाव में सच्चा शोक नहीं था और न ही उसके जीवन में परिवर्तन। उसके अंगीकार में पश्चाताप की कमी थी। यहूदा १२ शाऊल के जीवन का उचित वर्णन करता है: यह मनुष्य समुद्र में छिपी हुई चट्टान सरीखे हैं, जो तुम्हारी प्रेम सभाओं में तुम्हारे साथ खाते पीते, और बेधड़क अपना ही पेट भरनेवाले रखवाले हैं; वे निर्जल बादल हैं; जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है; पतझड़ के निष्‍फल पेड़ हैं, जो दो बार मर चुके हैं; और जड़ से उखड़ गए हैं। अंतत: यहूदा इस्करियोती के शब्दों पर भी ध्यान देना आवश्यक है: मैंने निर्दोषी को घात के लिये पकड़वाकर पाप किया है। उन्‍होंने कहा, हमें क्‍या ही जान। तब वह उन सिक्कों को मन्‍दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आपको फाँसी दी (मत्ती २७:४-५)। कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे (इफिसियों ५:६)। जैसे जैसे यह हिस्सा प्रगति करता है, उस व्यक्ति के बारे में सोचें जो स्वयं को धार्मिक मानता है और फिर भी अपनी जुबान पर लगाम नहीं दे पाता। यदि कोई अपने आपको भक्त - अपने विश्वास के बाहरी कर्तव्यों को भक्तिपूर्ण रीति से पूरा करने वाला - समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा देता है, तो उस व्यक्ति की धार्मिक सेवा मूल्यहीन, निरर्थक और बंजर है (याकूब १:२६, एम्पलीफाईड)। क्या तू बातें करने में उतावली करनेवाले मनुष्य को देखता है? उससे अधिक तो मूर्ख ही से आशा है (नीतिवचन २९:२०)। इस सिद्धांत की रोशनी में सुलेमान के लिखने का मकसद पेश किया है, बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के सामने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में है और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों (सभोपदेशक ५:२)। याकूब कहता है, जीभ भी एक आग [है] : [जीभ] हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है, सारी देह पर कलंक और भ्रष्टता लाते हुए, और भवचक्र – इन्सानी स्वभाव के चक्र - में आग लगा देती है और स्वयं नरक कुण्‍ड (Gehenna/गेहेना) की आग से जलती रहती है (याकूब ३:६, एम्पलीफाईड)। यह जरूरी है कि नीतिवचन १८:२१ हमेशा याद रखा जाए। “जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं, और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा। धोखेबाज जुबान की तुलना में, धर्मी के वचन तो उत्तम चाँदी हैं” (नीतिवचन १०:२०अ)। चाँदी छुटकारे की परिचायक है। एक विश्वासी की जुबान लगातार यीशु मसीह में पाए गए उसके छुटकारे की अभिव्यक्ति होना चाहिए। साथ में, पौलुस विश्वासी को ऐसी जुबान रखने का सम्बोधन करता है जो अनुग्रह बोलती है: कोई गन्‍दी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उससे सुनने वालों पर अनुग्रह हो (इफिसियों ४:२९)। तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए (कुलुस्सियो ४:६)।

एक नकारात्मक मनोभाव

दूसरी प्रक्रिया की अग्रसर प्रगति के लक्षण वह लोग हैं जो धोखे में हैं, क्योंकि उनमें असंतुष्ट मानसिक हावभाव और जीवन के लिये क्षमता में अड़चन दिखाई पड़ती है। एक नकारात्मक मानसिक मनोभाव असंतुष्टि, निराशा, और उदासी का परिणाम है। क्‍योंकि (एसिन/eisin – क्रियापद, वर्तमान, कर्तावाचक, घोषणात्मक-जो निश्चय की सच्चाई को दर्शाता है) बहुत से लोग निरंकुश बकवादी और धोखा देनेवाले हैं (फ्रेनापातेस/phrenapates - मन को धोखा देनेवाले); विशेष करके खतनावालों में से।  इनका मुँह बन्‍द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखाकर घर के घर बिगाड़ देते हैं (तीतुस १:१०-११)। यह लोग प्रेरित पौलुस से न ही सहमत थे, न उसकी सेवकाई के अधीन थे। निरंकुश (अनुपोतक्तोई/anupotaktoi - कर्ताकारक) यह संकेत करता है कि वे पन्क्ति ९ में जो विश्वासयोग्य वचन उन्हें सिखाया जा रहा था उसकी बजाय इन खोखले शब्दों द्वारा चलाये जा रहे थे। यह हिस्सा इशारा करता है कि वे अपने मनों में असंतुष्ट हो गए थे और “मन को छलने वाला” अन्दर आ चुका था। शैतान ने एक उपदेश पैदा किया, जिसे लोगों ने नीच कमाई की वजह से स्वीकार किया। पौलुस इसे उन मनुष्यों में निरन्तर व्यर्थ झगड़े उत्‍पन्न होते हैं, जिनकी बुद्धि बिगड़ गई है और जो सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति कमाई का द्वार है बताता है और वह कहता है ऐसे लोगों से दूर हो जाओ” (१ तीमुथियुस ६:५)। ऐसे लोग वाकई में विश्वास से गलती कर चुके हैं और सत्य से वन्चित हैं। असंतुष्टि निम्नलिखित सम्बन्धों में प्रेम के मानसिक भाव को नष्ट करती है : पति और पत्नी, माँ-बाप और बच्चे, मण्डली और पासवान और अन्तत: विश्वासी और विश्वासी। वे व्यक्ति जो हमारे दिलों में हमसे सबसे नजदीक हैं, वे हमारी असंतुष्टि का लक्ष्य बन जाते हैं। नजदीकी सम्बन्ध अपने आपको गैरजिम्मेदार शब्दों और कमजोरी तक  पहुँचाता हुआ अन्तत: इस प्रकार के छल की प्राप्ति करता है। सन्‍तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है” (१ तीमुथियुस ६:६)। संतुष्टि (autarkeias/ऑटार्कीआस) एक आतंरिक मनोभाव है, जो तृप्त और दृढ़ बना रहता है, चाहे बाहरी हालातें कितनी भी प्रचंड हो जाएँ। ऐसी संतुष्टि अन्दर के स्वाभाविक साधनों से नहीं पाई जाती, बल्कि जीवन में हालातों की ओर उचित और भक्ति भरी प्रतिक्रिया के द्वारा सीखी जाती है। यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्‍योंकि मैंने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं” (फिलिप्पियों ४:११)।

प्रक्रिया तीन: पक्षपात की आत्माएँ

जब विश्वासी अपने जीवन में आत्मछल को रास्ता तय करने की अनुमति दे चुका होता है, तब वह अलौकिक अधोलोक के द्वारा इस छल को बढ़ावा देने और उसे सही रास्ते से रोककर रखने में बिना मांगी मदद के लिये खुल जाता है। क्‍योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले हैं। और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है (२ कुरिन्थियों ११:१३-१४)। यह पक्षपात की आत्माएँ शैतान के रोशनी के दूत (dolois/डोलोईस - धार्मिकता के सेवक) जैसी होती हैं । २ कुरिन्थियों ४:२अ में झूठे उपदेश को सच्चे उपदेश में मिश्रित करने की यह तकनीक अवज्ञा कही गई है: परन्तु हमने लज्ज़ा के गुप्‍त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं। यह प्रक्रिया ऐसे लोग पैदा करती है जो अत्यधिक भावुक होते हैं; उनमें अपनाये जाने की जबरदस्त जरूरत और चापलूसी की ओर कमजोरी होती है। इस तरीके के उकसाव का प्रत्युतर देना पौलुस की शिक्षाओं के सीधे विरोध में है। क्‍योंकि हमारा उपदेश न तो भ्रम से है और न अशुद्धता से, और न छल के साथ है” (१ थेस्सलुनीकियों २:३)। धोखे में पड़े विश्वासी नम्रता और विश्वास के विश्राम से दूर ले जाए जाते हैं। इसलिये हे प्रियों तुम लोग पहिले ही से इन बातों को जानकर चौकस रहो, ताकि अधर्मियों के भ्रम में फंसकर (प्लेन/plane – पक्षपात की आत्माओं के द्वारा सीधे रास्ते से हट जाना) अपनी स्थिरता को हाथ से कहीं खो न दो (२ पतरस ३:१७)। ये लोग अब अनुग्रह में नहीं बढ़ रहे हैं, जैसा कि २ पतरस ३:१८ में आदेश दिया गया है: परन्तु हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ते जाओ। पक्षपात की आत्माएँ विश्वासियों को सही मार्ग से बाहर अगुआई करते हैं और वे अक्सर अनजाने में, शैतान के राज्य के मकसदों को पूरा कर रहे होते हैं। वे जो इस तरीके से धोखा खाते हैं, उन विश्वासियों से चापलूसी, विकृति, और व्यक्तित्व पर आधारित प्रशंसा ग्रहण करते हैं, जो षडयंत्रों में शामिल होते हैं, जिनके द्वारा परमेश्वर के राज्य के फलदायक कामों पर आक्रमण किया जाता है। जो लुतराई करता फिरता है, वह भेद प्रकट करता है; इसलिये बकवादी से मेलजोल न रखना (नीतिवचन २०:१९)। साजिशों के अगुवे दूसरों को धोखा देते हैं और उन्हें अपने द्वारा मण्डली और उसके पास्टर-शिक्षक पर किए जा रहे आक्रमण में शामिल होने और मजबूत करने के लिये आश्वस्त करते हैं। जैसा कि पहले कहा गया है, खोखले मनवाला विश्वासी इस सोच में छल किया जाता है कि वह जो चापलूसी, स्वीकृति और प्रशंसा उसे मिल रही है, उसके द्वारा परिपूर्ण किया जा रहा है। चापलूसी के द्वारा छल का एक उदाहरण नीतिवचन २:१६-१७ में पाया जाता है: तब तू पराई स्त्री से भी बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है, और अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती, और जो अपने परमेश्वर की वाचा को भूल जाती है। वे लोग जिनकी आत्मछवि कमजोर होती है, खास तौर से पक्षपात की आत्माओं द्वारा फायदा उठाये जाने के उन्मुख होते हैं (क्योंकि वचन ने कभी उनके प्राणों में जड़ नहीं पकड़ी), और उनके साथ जुड़ जाते हैं जो घमण्डी और अभिमानी हैं। कई बार, जो व्यक्ति पहले इन्सानी अनुमान के अनुसार अमान्य रहा है, वह पहली बार “अपनाये गये समूह” के साथ एकत्र हो रहा है। वह मिथ्या सम्बन्ध अनुभव कर रहा है, न कि सच्ची संगति। जब एक व्यक्ति अपनी जवानी के मार्गदर्शक (उपदेश) को त्यागता है, वह आत्मिक चीजों की सारी समझ खो देता है। जो लोग व्यवस्था (उपदेश) को छोड़ देते हैंवे दुष्ट की प्रशंसा करते हैं” (नीतिवचन २८:४अ)। अक्सर धोखे में पड़े हुये विश्वासियों के वार्तालाप उनकी जख्मी आत्माओं से सम्बन्धित होते हैं, और मुख्य षडयंत्रकारी अबशालोम जैसे, वे इसे नेतृत्व के खिलाफ मामले को मजबूत करने के लिये इस्तेमाल करते हैं। यह ध्यान देना दिलचस्प है कि एक विश्वासी का “जख्मी बनने” का इकलौता तरीका कानाफूसी करने वालों (पक्षपात की आत्माओं) को सुनने से होता है। कानाफूसी करने वाले के वचन स्वादिष्ट भोजन की नाईं लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं” (नीतिवचन १८:८)। इसलिये हमें हमेशा यह सतर्क रहना आवश्यक है कि हम कैसे सुनते हैं, क्या सुनते हैं और सुनने के लिए अति तैयार हैं। इसलिये चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो क्‍योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है (लूका ८:१८)। फिर उसने उनसे कहा; चौकस रहो, कि क्‍या सुनते हो जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा, और तुमको अधिक दिया जाएगा (मरकुस ४:२४)। जब तू परमेश्वर के भवन में जाये, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना मूर्खों के बलिदान चढ़ाने से अच्छा है; क्योंकि वे नहीं जानते कि बुरा करते हैं (सभोपदेशक ५:१)। विश्वासियों को श्रेणीगत उपदेश के द्वारा अपने मनों की कमर कसना चाहिये (१ पतरस १:१३) और वचन के पानी की धुलाई से शुद्ध होना चाहिये (इफिसियों ५:२६)। यीशु ने कहा तुम तो उस वचन के कारण जो मैंने तुमसे कहा है, शुद्ध हो” (योहन्ना १५:३)। एक बार फिर उसे यह याद रखना आवश्यक है कि पक्षपात की आत्माओं पर विजय पाने के लिये यह जरूरी है कि प्रत्येक विश्वासी परमेश्वर के वचन की खास बातों से लैस हो। परमेश्वर का राज्य क्रूस पर यीशु मसीह की मौत के द्वारा इन अदृश्य आत्माओं की विशिष्ट दुष्ट नीतियों के खिलाफ़ लड़ाई जीत चुका है।

चौथी प्रक्रिया: आखरी झटका

शैतान आखरी झटके के लिये इन्तजार करता है, जिसके द्वारा वह आशा करता है कि विश्वासी की जिन्दगी में ऐसे दूरगामी परिणाम पैदा करेगा कि वह आत्मिक रूप से फिर कभी नहीं बच पायेगा। हर विश्वासी के लिये शैतान का मकसद यह है कि वह मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उनके भ्रम की युक्तियों और उपदेश की हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाएँ” (इफिसियों ४:१४ब)। यह व्यक्ति अपनी शंका में एक विचार से दूसरे में इधर उधर घुमाया (peripheromenoi/पेरिफेरोमेंनोई – periphero/पेरिफेरो का वर्तमान, कर्मवाच्य कृदन्त, कर्ताकारक में) जा रहा है। कर्मवाच्य का मतलब कर्ता क्रिया को स्वीकारता है। यह व्यक्ति दूसरों पर स्वयं न सोचने का इल्जाम लगाते हैं। सच्चाई यह है कि वे लगातार दूसरों के विचारों और दृष्टिकोणों द्वारा शापित किए जा रहे हैं, चाहे संसार के या दैहिक विश्वासियों के या स्वयं की भावनाओं के। “हर एक” (panti/पान्ती विशेषण संप्रदान कारक) का मतलब है कोई और सभी। “हवाओं” (anemo/एनीमो) खोखलेपन और शिक्षा में अस्थिरता (didaskalias/डिडस्कालिया - सम्प्रदान) की परिवर्तनशीलता को सम्बंधित करता है। यहाँ पर नुकसान का सम्प्रदान कारक इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि वह विश्वासी जो इसमें बढ़ता जाता है, अपने बचे हुये जीवन के लिये हमेशा के लिए नुकसान में रहेगा। वह किसी भी और हर प्रकार की झूठी शिक्षा जो कोई कल्पना भी कर सके, उनके लिये अति ग्रहणशील रह जाएगा। “मनुष्यों की छल-कपट” का अनुवाद (एन ते कुबेइया तोन एन्थ्रोपान / en te kubeia ton anthropon) है। ठगविद्या (कुबेइया/kubeia) उस छल का वर्णन करता है, जो पासा खेलनेवाले अपने साथी खिलाड़ियों को कपट और ठगने में इस्तेमाल करते थे। पाप के सुख एक मौसम के लिये रह सकते हैं, लेकिन कभी न कभी यह धोखेबाज उन्हीं व्यक्तियों पर आक्रमण और खिलाफत करेंगे, जो उन्हीं की झूठी शिक्षाओं के द्वारा भटकाए गए हैं। “चतुराई” (methodeian/ मेथोडिआन) का शाब्दिक अर्थ है एक तय की गई प्रणाली या योजना के द्वारा अनुवर्तन या जाँच पड़ताल। शैतान द्वारा तय की गई प्रणाली और योजना इसलिए है कि विश्वासी को पूर्णतया त्रुटि से ग्रसित करे। छल की यह प्रगति उस विश्वासी के जीवन में सिद्ध बगावत पैदा करेगी। वह इस छल में पूरी तरह से उस जगह तक आधारित हो जाता है कि वह जिन्दगी के हर हिस्से में अन्धा (पोरोसिस/porosis) हो जाता है। उसका मन नकारात्मकता से भर जाता है; वह अपनी बोलचाल में लापरवाह और अनियंत्रित हो जाता है। अत्यधिक सम्भावना है कि वह एक चरम में कामुकता या दूसरे चरम में विधिवादिता का शिकार हो जाएगा। अब वह वाकई में झूठे उपदेश और २ कुरिन्थियों के ४:२ की अवज्ञा में जीता है: परन्‍तु हमने लज्ज़ा के गुप्‍त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्‍तु सत्य को प्रकट करके, परमेश्वर के सामने हर एक मनुष्य के विवेक में अपनी भलाई बैठाते हैं। “मिलावट” (डोलू/doloo) का मतलब है कि वह व्यक्ति परमेश्वर के वचन की सच्चाई में झूठे उपदेशों और धारणाओं का मिश्रण करके दूषित हो गया है, और परिणामस्वरूप परमेश्वर के वचन को धोखे में इस्तेमाल करता है। वह अपने पापी स्वभाव की कमजोरियों में वापस लौटेगा (२ पतरस २:२२), और उसका बाद का अन्त उसकी शुरुआत से बदतर होगा (२ पतरस २:२०)। ऐसे विश्वासी इन्सानी बुराई की अपेक्षा इन्सानी अच्छाई में जीना चुनते हैं। वे अब भी इस जीवन में प्राकृतिक वरदानों के लिये आम अनुग्रह ग्रहण करेंगे, लेकिन स्वर्ग में ईनाम नहीं ग्रहण करेंगे। जब वे प्रभु से बीमा न्यायासन पर मुलाकात करेंगे, उनके जीवन का फल लकड़ी, घास-फूस पाया जाएगा (१ कुरिन्थियों ३:१२)।  अध्याय III : छल से छुटकारा जो विश्वासी छल किया गया है उसके लिये आशा है, यदि वह इन कदमों में चले: एक: जो किया गया है, उस बारे में ईमानदार रहो, और सहमत हो कि वह वह पाप है। यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (१ योहन्ना १:९)। विश्वासी को उस पाप को खासतौर से नाम देना है। “स्वीकार करना” यूनानी भाषा में होमोलोगोमेन/homologomen है, जिसका मतलब होता है “पवित्र आत्मा के आन्तरिक दोषसिद्धि के परिणामस्वरूप जिस चीज के लिये वह व्यक्ति दोषारोपित किया गया है, उससे स्वीकृति के साथ सहमत होना, मान लेना या स्वयं को दोषी घोषित करना।” दो: विश्वासी को इस धोखे को पाप के तौर पर मन फिराना, इन्कार करना और त्यागना आवश्यक है। “मन फिराना” (metanoia–मेटानोइया), थायर के अनुसार उन लोगों के मन के परिवर्तन का जिक्र करता है, जो अपनी त्रुटियों और दुष्कर्मो से घृणा करने लगे हैं और परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा जीवन के सही रास्ते में प्रवेश करने का निर्णय ले चुके हैं। सो मन फिराव के योग्य फल लाओ (मत्ती ३:८)। तीन : तब मसीही को जीवन के आत्मा में बाइबल उपदेश का “क्रैश आहार” ग्रहण करके आगे बढ़ना चाहिए। अपने आप को परमेश्वर के ग्रहणयोग्य ऐसा कार्य करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर जिससे लज्जित होना ना पड़े, और जो सत्य के वचन को ठीक-ठीक काम में लाए (२ तीमुथियुस २:१५)। मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ (कुलुस्सियों ३:१६)। परमेश्वर के वचन को तुम्हारे जीवन में ईश्वरीय गुण जोड़ने दो। अर्थात एक अविश्वासी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है (१ पतरस १:४) चार: एक बच्चे जैसे विश्वास का मनोभाव विकसित करें। जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगावह स्‍वर्ग के राज्य में बड़ा होगा” (मत्ती १८:३-४)। पाँच: पूरी तरीके से नम्र होकर बाइबल उपदेश और पास्टर-शिक्षक और मसीह की देह की ओर अधीनता का मनोभाव रखना आवश्यक है। यह एक जरूरी कुंजी है। तेरा वचन पूरी रीति से तय हुआ है, इसलिए तेरा दास उससे प्रीति रखता है (भजन संहिता ११९:१४०)। मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ को प्रभुता न करने दे (भजन संहिता ११९:१३३)। क्‍योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्‍डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़न मारपीट करने वाला, और न नीच कमाई का लोभी(तीतुस १:७)। जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो। (इब्रानियों १३:७)। छः: विश्वासी को विश्वास में संचालित होना है, यह ध्यान रखते हुये कि विश्वास के बिना परमेश्वर को खुश करना असम्भव है” (इब्रानियों ११:६)। हम विश्वास से चलते है, न कि नजर से” (२ कुरिन्थियों ५:७)। इस सलीके से परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से विश्वास के लिये प्रकट होती है” (रोमियों १:१७)। जैसा ऊपर लिखा गया है, इन कदमों का आज्ञापालन परमेश्वर के वचन को अनुग्रह के वचन के अनुभव तक पहुंचाएगा और विश्वासियों को उनके उत्तराधिकार (प्रेरितों के कार्य २०:३२) को अनुभव करने की शक्ति देगा। परमेश्वर का वचन विश्वासी को चंगाई और छुटकारा देता है (भजनसंहिता १०७:२०) और उसके प्राणों में समृद्धि लाता है (३ योहन्ना २ब)। क्योंकि जिनको वे (परमेश्वर के वचन) प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं (नीतिवचन ४:२२)। और उद्धार, बुद्धि और ज्ञान की बहुतायत तेरे दिनों का आधार होगी; यहोवा का भय उसका धन होगा (यशायाह ३३:६)। सारांश में, यीशु है जो मसीहियों को दुष्टता से छुटकारा देता है। उन्हें परमेश्वर का वचन पंक्ति पर पंक्ति और आज्ञा पर आज्ञा (यशायाह २८:१०) ग्रहण करना, और वचन का आदर करना, अपने आवश्यक भोजन से भी बढ़कर आदर देना आवश्यक है (अय्यूब २३:१२)। परमेश्वर मसीह के लहू के द्वारा पाप के सभी जख्मों और चोटों - जो विवेक में मरे हुये कार्य हैं (इब्रानियों ९:१४) - को खत्म करता है। विश्वासी उपदेश से बुद्धिमत्ता (ज्ञान का उपयोग) ग्रहण कर सकते हैं। सो जैसे तुमने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया हैवैसे ही उसी में चलते रहो” (कुलुस्सियों २:६)। उन्हें प्रिय सन्तानों के जैसे प्रेम (आगापे) के मानसिक मनोभाव में चलना है (इफिसियों ५:२)। शैतान नहीं चाहता कि विश्वासी छल से आजाद हों; इसलिए परमेश्वर के संतान को हर समय छल के खतरे का सामना करना चाहिए। जैसे जैसे विश्वासी “पवित्र आत्मा से (लगातार) परिपूर्ण रहना” (इफिसियों ५:१८ब) सीखता है, परमेश्वर का अविनाशी वचन उसकी ढाल होता है। “पर मैं कहता हूं कि आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे” (गलातियों ५:१६)। ध्यान रखें, यीशु मसीह ने क्या कहा: “तुम तो ये बातें जानते हो, यदि उन पर चलो तो तुम धन्य हो” (यूहन्ना १३:१७)।

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