अध्याय I : साज़िश की बाइबल पर आधारित एक परिभाषा
“साज़िश” शब्द लेटिन भाषा के शब्द कोन्सपिरेर/conspirare से आता है, जिसका मतलब है “मिलकर साँसे भरना, हालातें तैयार करना।” साज़िश बदमाशी की एक गुप्त योजना है और शैतान के द्वारा किसी मण्डली, पास्टर-शिक्षक या विश्वासियों के समूह की मसीही सेवा में उत्पादनशीलता की क्षमता को निराश, निष्फल और कम करने के लिए होती है। यह स्वयं के स्वार्थी मतलबों को बढ़ावा देने और स्वयं की ख्याति को संभालने और अपनी जीवनशैली का पक्ष लेने की एक एकजुट कोशिश है। यह एक विश्वासी को परमेश्वर की सेवकाई या किसी प्रकार की संस्था की तरफ अपनी उपेक्षा के मनोभाव को थामे रखने में मदद करती है।
उत्पति ३७:१८ में युसूफ के भाइयों ने “उसके खिलाफ़ मारने का षडयंत्र रचा।” “षडयंत्र” शब्द इब्रानी भाषा में नकाल है, जिसका मतलब होता है “कपट करके लेना, धोखा देना, ठगना या छल करना।” गिनती १६:३ में, साज़िश का वापिस जिक्र किया गया है, कोराह और मण्डली के २५० अगुवों के बारे में जिन्होंने “मूसा और हारून के खिलाफ़ मिलकर स्वयं को इकट्ठा किया।” “इकठ्ठा किया” के लिये इब्रानी भाषा का एक शब्द कहाल है । इसका मतलब है कि उन्होंने मूसा और हारून के खिलाफ़ एक धमकी घोषित करने के लिये एक मण्डली बुलाई।
साज़िश के बारे में बाइबिल के ज़िक्र
भजन संहिता ३६:४अ कहता है कि दुष्ट व्यक्ति “अपने बिस्तर पर अनर्थ कल्पना करता है।” उक्ति “कल्पना करता है” खशाब है, जिसका मतलब है “बहुत सारी मानसिक चहल-पहल और सोच के संचार के द्वारा हालातों की छानबीन करके चाल चलना।” भजन संहिता ३७:१२ कहता है, “दुष्ट धर्मी के विरुद्ध बुरी युक्ति निकालता है और उस पर दाँत पीसता है।” “बुरी युक्ति निकालता” जमाम है, जिसका मतलब है “उपाय करना, अपने मन से सोचना और फिर एक मकसद के साथ योजना बनाना।” साज़िश में लगातार फूट बोने का पाप शामिल होता है। नीतिवचन ६:१४ में, दुष्ट व्यक्ति “फूट डालता है।” यहाँ इब्रानी शब्द शलाक का इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब है “फूट डालना” या एक मकसद के साथ भेजना, फेंकना, या फैलाना, मेहनत के साथ काम करते हुए जब तक कि किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ़ कलंक के कार्यक्रम के साथ आक्रमण बड़े पैमाने पर फ़ैल न जाए।
यशायाह ३२:७ब में, साज़िश का जिक्र किया गया है, “छली की चालें बुरी होती हैं, वह दुष्ट युक्तियां निकालता है कि दरिद्र को भी झूठी बातों में लूटे जब कि वे ठीक और नम्रता से भी बोलते हों।” यह ईश्वरीय अच्छाई के खिलाफ़ किसी योजना को पूरा करने के लिये इन्सानी अच्छाई के इस्तेमाल के बारे में है। “झूठी बातें” इब्रानी में शेगेफ़ शब्द है, जिसका मतलब है “संकल्प करना, कट्टर प्रस्ताव के साथ सलाह देना।”
दानियेल ६:४अ में परमेश्वर का वचन कहता है, “तब अध्यक्ष और अधिपति राजकार्य के विषय में दानियेल के विरुद्ध दोष ढूँढ़ने लगे।” इब्रानी में “ढूँढ़ने लगे” शब्द बाह है और इसका मतलब है, “बौछार करना, फूलना, सतर्क चौकसी के साथ किसी को नुकसान पहुँचाने के लिये किसी जानकारी की खोज़ करना।” कल्पना करो कि आज कितने सारे लोगों ने अपने मसीही अगुवों के खिलाफ़ यह किया है!
प्रेरितों के काम २३:१२ में यह लिखा गया है कि कुछ यहूदी पौलुस के खिलाफ़ “इकट्ठे हुए”, और स्वयं को एक कसम के नीचे बांधा और जब तक उसे मार न लें, तब तक न खाने या पीने का निश्चय किया। “इकठ्ठे हुए” शब्द इब्रानी में सूसट्रोफेन शब्द से आता है, इसका मतलब है “एक गुप्त गठबंधन, एक साथ में मरोड़ा जाना।” स्वयं को कसम के नीचे रखने का सिद्धांत अनाथिमा शब्द की जांच-पड़ताल करने पर समझ में आता है। यह “शाप” के लिए शब्द है जिसका मतलब है “सजा के अंतर्गत एक प्रतिज्ञा करना, एक शपथ में अपने आप को बाँधना।” यह उदाहरण यह समझाता है कि धर्म-भ्रष्ट साजिशों के पीछे बुराई की एक व्यवस्था है।
सारांश में, जो शब्द यहाँ पर प्रस्तुत किए गए हैं ये उस पृष्ठभूमि का हिस्सा हैं जो साज़िश के विषय में समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
साज़िश परमेश्वर के वचन का उल्लंघन करती है
किसी व्यक्ति को साज़िश को पूर्णतया समझने के लिए उसका लक्ष्य बनना पड़ेगा। यह एक दु:खभरी बात है कि जब एक पास्टर-शिक्षक लोगों को वचन में प्रशिक्षित करता है, उनके जीवन में निवेश करता है और कई सालों तक उनके साथ परमेश्वर की सेवा करने के बाद वह अपनी मण्डली के सदस्यों के द्वारा गुप्त में साज़िश का शिकार होता है। यह लोग प्रेम (योहन्ना १३:३४), विश्वास (इब्रानियों ११:६), अनुग्रह (१ पतरस ४:१०; योहन्ना १:१६), सम्मान संहिता (रोमियों १२:१०), राजकीय परिवार (१ पतरस २:५), कुलीनता (प्रेरितों के काम १७:११), ईमानदारी (भजन संहिता २६:१), मेलमिलाप (२ कुरिन्थियों ५:१९), गोपनीयता (रोमियों १४:४), आत्मिक उन्नति (इफिसियों ४:२९), संगठित देह (इफिसियों १:२३; कुलुस्सियों २:२), के उपदेशों का उल्लंघन करते हैं। जब विश्वासियों को यह सिद्धांत पता है, लेकिन वे ऐसे कार्य करते हैं जैसे कि उस सिद्धांत का अस्तित्व ही न हो, वे परमेश्वर के वचन की अवहेलना करते हैं। कोई भी पास्टर या मण्डली निष्कलंक नहीं है और जब वे गलत हों, तो उन्हें सुधार को ग्रहण करने के लिये तैयार होना चाहिये। ज़रूर, यह सुधार प्रेम और पवित्रशास्त्र की प्रणाली के अनुसार होना जरूरी है।
गलत प्रेरणायें - साज़िश के लिए प्रजनन की जमीन
कई मसीहियों की कलीसिया जाने के पीछे गलत महत्वकांक्षा होती है। उन्हें दोस्ती की या बच्चों को बड़ा करने में मदद की आवश्यकता हो सकती है। यह विश्वासी सामाजिक वजहों से भी उपस्थित हो सकते हैं। वे कार्यक्रमों में हिस्सा लेना चाहते हैं, परन्तु परमेश्वर के वचन की आज्ञा मानने नहीं आते हैं। एक पवित्र आत्मा से भरा व्यक्ति परमेश्वर के सामने स्वयं को नम्र करेगा, परमेश्वर के वचन के समक्ष अधीन रहेगा, अपना क्रूस उठायेगा (लूका ९:२३) और मसीह की महिमा करने के मौकों के लिए परमेश्वर पर भरोसा करेगा। यह करने लिए उसके लिए एक तरीका यह है कि वह शान्ति और धीरज में सकारात्मक मनोभाव रखे (यशायाह ३०:१५ब), चाहे उसके जीवन में परमेश्वर की योजना में परिवर्तन का समय चल रहा हो। एक विश्वासी को कड़वाहट, नकारात्मकता, या बगावत को उसके दिल में अनुमति नहीं देनी चाहिये क्योंकि समय के साथ यह चीज़ें उसके प्राणों में संग्रह होती रहेंगी। कुछ समय के लिए यह मनोभाव दबे हुए या छिपे रहेंगे, परन्तु जब काफी सारे लोग अपने प्राणों में विषयात्मकता का जमाव होने देते हैं, तब कड़वाहट अन्तत: पूरी तरह से साज़िश में विकसित हो सकती है।
ध्यान रखना आवश्यक है कि कुछ संस्थाओं में जायज़ साज़िशें भी होती हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यक्तिगत अधिकारों की गोपनीयता और राष्ट्रीय इकाई की सुरक्षा के लिए होती हैं। ऐसी साज़िशें धर्मी कारण से हुई हैं; वे लोगों के जीवन जीने और स्वयं अपने निर्णय लेने के अधिकार को सुरक्षित करती हैं।
अध्याय II : साज़िश का प्रत्याशी कौन होता है?
उनका मन बंटा हुआ है; अब वे दोषी ठहरेंगे। वह उनकी वेदियों को तोड़ डालेगा, और उनकी लाटों को टुकड़े टुकड़े करेगा। (होशे १०:२)
एक साज़िश की सफलता के लिए, कुछ हालातों का मौजूद होना आवश्यक है। साज़िश के सर्वोच्च गुणों में से एक है कि यह हमेशा उन लोगों को आकर्षित करती है, जिनके मन विभाजित होते हैं। ऐसे लोग दोहरे मन (याकूब १:८) के होते हैं और यीशु मसीह की ओर निर्मल आँख नहीं रखते (मत्ती ६:२२)। वे अक्सर इस जीवन की जरूरतों में व्यस्त होते हैं (मत्ती १३:२२) बजाय अनंत की चीजों में (२ कुरिन्थियों ४:१८)।
वे विश्वासी जो विषयबद्ध उपदेश (परमेश्वर के साथ सोचने) से वंचित होते हैं, वे साज़िश में छल किए जाने के लिए सहज होते हैं। होशे ४:६अ कहता है, “मेरे लोग ज्ञान की कमी से नष्ट किए गए हैं।” ये व्यक्ति धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे नहीं होते (मत्ती ५:६) और इसीलिए, परमेश्वर के वचन में पूरी तरीके से मजबूत होने के लिए समय नहीं निकालते। वे आमतौर पर एक भक्ति के रूप में बाइबल में खुश होते हैं, लेकिन अपनी “आत्मिक पेशियों” को मजबूत करके अपने संकायों को व्यायाम कराना नहीं सीखते (इब्रानियों ५:११-१४)।
जिम्मेदार बनाम गैर जिम्मेदार विश्वासी
साज़िशें तब शुरू होती हैं, जब लोग शरारत सोचते हैं, फूट डालते हैं और उन लोगों का फायदा उठाते हैं, जिनके पास बाइबल का उपदेश उनके दिन-प्रतिदिन के जीवन में बुद्धिमत्ता का आधार नहीं है। कई बार, साज़िश के प्रत्याशी यीशु मसीह के मकसदों में नहीं जी रहे होते हैं। उदाहरणस्वरूप, यीशु मसीह ने मत्ती १२:३० में कहा, “जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है।” दूसरे शब्दों में, दो तरह के लोग हैं: वे जो मण्डली में अनुभव में क्रियाशील होते हैं और जिन्होंने अपना जीवन परमेश्वर को दिया है, और वे जो कलीसिया सिर्फ तब जाते हैं, जब सुविधाजनक होता है। बाद वाले लोग उद्धार में हो सकते हैं, और अनुग्रह की वजह से मरने के बाद स्वर्ग जाएँगे, लेकिन उन्होंने अपना सम्पूर्ण मन यीशु मसीह को नहीं दिया है।
उसके विपरीत, समर्पित मसीहियों का समूह वह है, जो मसीह की वजह से अपने जीवन को त्यागने के लिये तैयार है (मत्ती १०:३९), और वे विश्वासयोग्यता से पास्टर और विश्वासियों की मण्डली में इकट्ठा होते हैं (इब्रानियों १०:२५)। जिन्होंने अपना जीवन पूर्णतया मसीह को दे दिया है, वे लोगों के प्राण जीतते हैं, और मसीह की देह की स्थानिक अभिव्यक्ति और मसीह के कलीसिया के पूरक होते हैं।
छल के प्रत्याशी
कई लोग कलीसिया में उपस्थित होते हैं, लेकिन अपनी स्वाभाविक पसंदों में जीना जारी रखते हैं। उनमें दूसरों के लिए अपना जीवन न्योछावर करने की कोई धारणा नहीं होती है। क्योंकि वे परमेश्वर के प्रेम से प्रेरित नहीं होते। यह विश्वासी नम्रता या परमेश्वर के वचन की अधीनता (नीतिवचन ५:६) को अमल नहीं करते। वे दृढ़ पर दृढ़ और अटल नहीं होते, और जो स्थानीय मण्डली मसीह के कलीसिया को बनाती है, न ही उसमें निरंतर शुद्ध अनुग्रह में बढ़ते रहते हैं। हर इवेंजेलिकल कलीसिया में ऐसे लोग होते हैं, जो इस श्रेणी में आते हैं। जब इस तरह का विश्वासी कलीसिया में हिस्सा लेता है, वह घमण्डी भाव में सुनता है। वह परमेश्वर के वचन की सटीक रोशनी को ग्रहण तो करता है, परन्तु वह सत्य को निराकार बनाता है, जिससे उसे प्रयोग में लाने के लिए जिम्मेदार न ठहरे। वह व्यक्ति जो सुनता है, उसमें विश्वास नहीं मिलाता, और वचन को उसे सच्चाई में अगुआई करके जिन्दगी की बारीकियों में स्पष्टत: आज्ञापालन में नहीं लाने देता। ध्यान दीजिए, यीशु ने कहा, “जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है” (मत्ती १२:३०)।
परमेश्वर के वचन की ओर नकारात्मक निर्णय का परिणाम : निष्क्रियता
जब कोई मसीही मसीह में बढ़ने के मौके की ओर नकारात्मक होना चुनता है, तो वह निष्क्रियता, आत्मअभिमुखता, घमण्ड, या प्रतिक्रिया तक पहुँच सकता है। वह आतंरिक ग्लानि के द्वारा प्रेरित होता है, जो अक्सर बाहरी अकर्मण्यता के रूप में प्रकट होती है। पवित्र आत्मा निष्क्रिय व्यक्ति को उसकी निष्क्रियता के बारे में निरुत्तर करने में हमेशा विश्वासयोग्य होता है (यूहन्ना १६:७-९), परन्तु उसके नकारात्मक मनोभाव के कारण दोषसिद्धि उसके जीवन में ग्लानि पैदा करती है। पास्टर ने उस पर यह नहीं थोपा है, बल्कि विश्वासी इसलिए दोषी महसूस करता है, क्योंकि वह प्रचार किए गए परमेश्वर के वचन की आज्ञा नहीं मान रहा है। शैतान ऐसे व्यक्ति का फायदा उठाता है और उसे दोषी महसूस कराता है। दोषारोपण वह तरीका है जो शैतान लगातार निष्क्रिय मसीहियों पर इस्तेमाल करता है। कई लोग लंबे समय तक इसे सह सकते हैं पर अन्तत: वे ग्लानि को अब और नहीं बर्दाश्त कर पाते और उन्हें अपनी हालत के लिए किसी और पर इल्जाम लगाना होता है, क्योंकि वे एक बलि का बकरा तलाश रहे हैं। ऐसे विश्वासी साज़िश के सर्वोत्तम प्रत्याशी होते हैं।
कई लोग निष्क्रियता से लड़ने की कोशिश करते हैं, वे अपनी उदासीनता का इल्जाम शारीरिक थकान पर लगाते हैं, उस समय भी जब उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं होता। वह जलकर खत्म हो जाने का दावा करते हैं और कलीसिया पर उसका इल्जाम लगाते हैं; वाकई में वे देह की ऊर्जा में जी रहे हैं और परमेश्वर द्वारा अनुशासित किए जा रहे हैं (यिर्मयाह ३:१४-१७)।
साज़िश में कौन शामिल होता है?
छ: श्रेणी के लोग हैं, जो साजिशों में हिस्सा लेते हैं। पहला, निश्चितरूप से, कोई संचालक होना जरूरी है जो साज़िश की योजना बनाए। अबशालोम, देयुत्रिफेस और यहूदा वचन से कुछ उदाहरण हैं, जो साज़िश के अगुवे हैं। आमतौर पर मुखिया की प्रेरणा स्वयं का समर्थन होता है। उसे अब तक उस भारी ग्लानि के सिन्ड्रोम को संतुष्ट करने की जरूरत होती है, जो उसके अचेत मन में डूबा हुआ है और वहाँ पर तब तक रहता है, जब वह बाहरी रूप से विनाशकारी हो जाता है। मुखिया इस परेशान करनेवाली ग्लानि को चैन पहुँचाने के लिये अपना आक्रमण ईज़ाद करता है।
दूसरे, “आलेखक,” अथवा वे लोग जिनके प्राण परमेश्वर के वचन से खाली हैं। कई बार यह “आलेखक” जो परमेश्वर के लोगों के विरुद्ध योजना बनाते हैं, परमेश्वर के सच्चे दोषसिद्धि के खिलाफ़ प्रतिक्रिया कर रहे होते हैं, और हालातों का मुकाबला बगावत से करते हैं। उनके आक्रमण का निशाना वह संदेशवाहक होता है, जिसने उन्हें परमेश्वर के वचन से शिक्षा दी है और दोषसिद्धि लेकर आया है। वाकई में यह तो पास्टर है, क्योंकि उसे परमेश्वर ने वचन के प्रचार का वरदान दिया है (इफिसियों ४:११)। साज़िश करने वाले प्रभु के दास से घृणा करते हैं। उनके अंदर कठोरता, घृणा, नाराजगी, और कड़वेपन का हावभाव होता है। अक्सर वे उससे बिना कारण के (यूहन्ना १५:२५ब) घृणा करते हैं। वह उसकी प्रतिष्ठा को नष्ट करना चाहते हैं, जिससे दूसरे उसके संदेश पर भरोसा न करें।
इससे कभी भी यह अंदेशा नहीं है कि पास्टर निष्कलंक और दोषहीन है, क्योंकि वह अनुग्रह के द्वारा उद्धार पाया पापी है, परन्तु पास्टर-शिक्षक का पद आज इस धरती पर सबसे प्रताड़ित पद है। क्यों? क्योंकि भक्त पास्टर परमेश्वर का वह वचन प्रचार करता है, जिसे परमेश्वर अपने नाम से भी ऊँचा उठाता है (भजन संहिता १३८:२)। षडयंत्रकारी एक संगठित तरीके से उन सबको इकट्ठा करता है जो झूठमूठ में सहमत होते हैं कि पास्टर परमेश्वर का वचन नहीं सिखा रहा है। जितना लंबा यह आत्मछल और व्यर्थ कल्पनाओं (२ कुरिन्थियों १०:५) में जीते हैं, जहाँ तक कि लोगों के खिलाफ़ बाहरी क्रियाकलाप का प्रश्न है, परिणाम उतना ही गंभीर होगा । जैसे-जैसे समय गुज़रता है, यह और ज़्यादा गति पकड़ता जाता है। यह उपद्रवी लोग पास्टरों से बदला लेते हैं और मण्डली के उन भोले लोगों, जिनकी भावनाएँ संतुलित नहीं हैं, उनका फायदा उठाकर समर्थक हासिल करते हैं।
ये सरल विश्वासी तीसरा समूह हैं, जो साज़िश में शामिल हो जाते हैं। उन्हें पास्टर के खिलाफ़ किसी झूठ पर विश्वास करने में ठगा गया है। ये मोहरे आंतरिक साज़िश के उपदेश को नहीं समझते (जो अगले अध्याय में विस्तार से समझाया गया है)। उन्होंने अपने जीवन में क्रूस के पूरे मतलब को नहीं समझा है, न ही वे श्रेणीगत उपदेश को या विश्वासी-याजक (१ पतरस २:५-९) के तौर पर अपनी भूमिका को समझते हैं। ये विश्वासी दुबारा जन्म पाए हैं और कलीसिया जाते हैं, परन्तु अपने विश्वास में कमजोर हैं। साज़िश का मोहरा कौन होता है? उत्तर है: कोई भी व्यक्ति जो यीशु मसीह के साथ एक मजबूत संबंध की कमी रखता है और इसलिये दूसरे के साथ संबंध में सुरक्षा खोजता है। उसे एक दोस्त की बहुत ज्यादा जरूरत होती है और उसके लिये वह कोई भी कीमत चुका देगा। यह सच है कि आलेखक जो इस विश्वासी को साज़िश में लेकर आता है, उसका सच्चा दोस्त नहीं होता, लेकिन वह ऐसे भोले व्यक्ति से दोस्ती करता है, जिससे उसे योजना में शामिल कर सके। साज़िश करनेवालों की चौथी श्रेणी उन लोगों की होती है जो बदला लेना चाहते हैं क्योंकि दूसरे विश्वासियों को उन्हें अनुशासित करने में इस्तेमाल किया गया था और उन्हें वह पसंद नहीं आया। इसका एक उदाहरण वह पास्टर है जिसे यह पता चलता है कि एक विश्वासी अनैतिकता में जी रहा है। उसके प्रत्युत्तर में पास्टर अकेले में प्रेम के साथ उसे पश्चाताप करने और अपनी अनैतिकता से मुड़ने के लिये कहता है। लेकिन पास्टर-शिक्षक द्वारा लाए गए परमेश्वर के वचन की परवाह करने कि बजाय यह मसीही नाराज़ हो जाता है। छिप-छिपकर वह अपने पाप में जारी रहता है, दूसरी कलीसिया में भाग लेता है, और इस बारे में ईमानदार नहीं होता है कि उसने कलीसिया क्यों छोड़ी। वह एक बगावत करने वाले बच्चे जैसा होता है, जिसका वर्णन इस पंक्ति में किया गया है:
यहोवा की यह वाणी है, हाय उन बलवा करनेवाले लड़कों पर जो युक्ति तो करते हैं परन्तु मेरी ओर से नहीं; वाचा तो बांधते हैं परन्तु मेरे आत्मा के सिखाये नहीं; और इस प्रकार पाप पर पाप बढ़ाते हैं (यशायाह ३०:१)।
यह विश्वासी अफवाहें फैलाना शुरू कर देता है और अपने पिछले कलीसिया के पास्टर की बदनामी करके दूसरे कलीसियों को उसके खिलाफ़ करने की कोशिश करता है। वह पास्टर के असंतुष्ट दुश्मनों को अपने मकसदों को बढ़ाने में इस्तेमाल करता है। उसका इकलौता उद्देश्य बदला लेना है, क्योंकि उसके पाप का खुलासा किया गया है।
पाँचवा समूह उन लोगों का है जिनकी भावनाएँ अतीत के बुरे अनुभवों के द्वारा कुछ सालों से घायल रही हैं । साज़िश के अगुवे जो एक समय में ऐसे व्यक्ति पर एक क्षण के लिये भी ध्यान नहीं देते थे, अब इन कमजोर भावनाओं के लोगों पर खास ध्यान देते हैं। पहली बार चालबाज व्यक्ति कमजोर के साथ दयालुता से पेश आता है। वे लोग जिनकी भावनाएँ जख्मी होती हैं, वे सत्य को प्रत्युत्तर नहीं दे पाते और इसलिये साज़िश के मुखियों के आसान शिकार होते हैं। षड़यंत्रकारी कमजोर सदस्य को यकीन दिलाता है कि कलीसिया की शिक्षाएँ उसकी मदद नहीं कर रही हैं। योजना के अगुवे उन लोगों को दोस्त बनाकर आशाएँ देते हैं। चूँकि कमजोर सदस्यों को प्रेम की जरूरत है, वे उनकी ओर सकारात्मक दिखाई पड़ रही पहलों का प्रत्युत्तर देते हैं। लेकिन सच्चाई में वे ठगे जा रहे हैं।
अन्तत:, एक छठवें तरीके का व्यक्ति है जो साज़िश में अक्सर शामिल होता है - घमंडी बुद्धिजीवी। उसके पास जटिल शब्दकोष होता है और वह अच्छी बोलचाल रखता है। वह बुद्धिमान, गुणवान, और प्रतिभाओं को विकसित करनेवाला होता है। सभी उसके बारे में ऊँचा बोलते हैं, परन्तु वाकई में वह अत्यधिक ऊपरी है। वह विभिन्न सोचों से अपना शब्दकोष चुरा सकता है और दूसरों के कामों के द्वारा उन्हें श्रेय दिए बिना प्रसिद्धि हासिल करता है। ऐसा काल्पनिक बुद्धिजीवी साज़िश का प्रत्याशी होता है, क्योंकि वह अपने प्रतिभाशाली दिमाग की वजह से सम्मानित होता है। सच्चाई यह है कि वह गर्व, अभिमान, और घमण्ड से भरा हुआ है। शैतान घमण्ड का रचयिता है, वही पाप जिसने परमेश्वर द्वारा उसे स्वर्ग से बाहर फेंकने का कारण बना। घमण्ड उस व्यक्ति को “शैतान के दोषारोपण में गिराने” (१ तीमुथियुस ३:६) में प्रेरित करता है। यह मिथ्या-बुद्धिजीवी भावनाओं में कमज़ोर लोगों को आकर्षित करता है। वह स्वयं के लाभ से प्रेरित होकर उन्हें मजबूत करता है। उसका उद्देश्य उन्हें जीतना है, जिससे बहुत सारे लोग कलीसिया पर आक्रमण करने के लिये पास्टर के विरोध में आ जाएँ।
ज्यादातर साज़िशें ऐसे लोगों द्वारा समावेशित होती हैं, जो इन छः श्रेणियों के हिस्से होते हैं, जिनके द्वारा शैतान किसी व्यक्ति की परमेश्वर के समक्ष सेवा करने की आज़ादी को छीनने की कोशिश करने का काम करता है। वह पारिवारिक इकाई को नष्ट करने की कोशिश करता है, जिससे वह परमेश्वर के साथ स्वतंत्रता से कार्य करने से रोकी जाए। साज़िशें पहले व्यक्ति पर असर डालती हैं, उसके बाद परिवार, कलीसिया, और अन्तत: राष्ट्रीय इकाई तक पहुँचती हैं।
अध्याय III : आंतरिक साज़िश
आंतरिक साज़िशें हृदय के छल से गुजरने के पश्चात होती हैं। जब ऐसा होता है, तब विश्वासी की सत्य को ग्रहण करने की क्षमता कम होती जाती है। एक व्यक्ति के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह आतंरिक साज़िश को, खास तौर पर परख ले और उसे अपने जीवन को अधिग्रहण करने से रोके। आंतरिक साज़िश की परिभाषा है, “वह साज़िश जिसमें भावनाएँ मन के खिलाफ़ षडयंत्र करती हैं।” प्रारंभिक अवस्थाएँ इस बात पर आधारित हैं कि इन्सान का दिल भ्रष्ट है और परमेश्वर के साथ सोचने में असक्षम है।
मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? “मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जाँचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चालचलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूँ” (यिर्मयाह १७:९-१०)।
जैसे-जैसे आंतरिक साज़िश की प्रक्रिया शुरू होती है, विश्वासी का विवेक पहले कमजोर होता है और बाद में विकृत और दागा जाता है। विवेक प्राण का वह हिस्सा है जो पवित्रता के लिए परमेश्वर के सिद्ध मापदंड की गवाही देता है। जैसे-जैसे एक व्यक्ति छल में जाता है, वह इस मापदंड से अब तालमेल नहीं कर पाता है। वह अपने उन पुराने दृढ़ निश्चयों पर नियंत्रण खोना शुरू कर देता है, जो उसने परमेश्वर के वचन से सीखे हैं; वह अपने आपकी यह कहकर वकालत करता है कि वह “बढ़ रहा है।” मगर वह बिलकुल भी परिपक्व नहीं हो रहा है; बल्कि यह व्यक्ति समझौते में जी रहा है। “और अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती, और जो अपने परमेश्वर की वाचा को भूल जाती है” (नीतिवचन २:१७)। यह कभी कभी उन भक्तिमय सेवकाइयों में भी होता है जो परमेश्वर के वचन की ओर सच्चे होते है। यह बड़े पैमाने में हो सकता है या एक कलीसिया के अंदर छोटे समूहों को प्रभावित कर सकता है। कोई भी फलदायक सेवकाई अपने मध्य कुछ लोगों के समूह में ऐसी साज़िश से गुज़र सकती है।
आम तौर पर वह समूह जो ऐसी साज़िश का हिस्सा बनता है वह ऐसा होता है, जिसमें उसके सदस्य परमेश्वर के वचन के विपरीत एक नई जीवनशैली ख़ोज लेते हैं और उसे मनोरंजक पाते हैं। वे हमेशा लोगों को उनके अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बचाकर रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे जिसकी वकालत कर रहे हैं, वह बाइबल के अनुसार की स्वतंत्रता नहीं है; यह सलीब पर हुए यीशु मसीह के सिद्ध कार्य पर आधारित नहीं है। यह कमजोर के फायदे के लिए प्रेम और बलिदान का उल्लंघन करता है। जैसे जैसे वे “स्वतंत्र” बने रहते हैं, वे छल में हैं। कई मसीही गुप्त रूप से इसका मजा लेते हैं और यह नहीं समझ पाते कि जिस हिस्से में वे आजादी का अनुभव कर रहे हैं, वह सच्चाई से पृथक है। अंतत:, अपनी जिंदगी के उस हिस्से में वह व्यक्ति पूरी तरह से धोखे में आ जाएगा।
आतंरिक साज़िश एक परिवार, दोस्ती, या कलीसिया के नाश का परिणाम ला सकती है। उसमें एक विश्वासी के व्यवसाय और बुलाहट को नष्ट करने की संभावना होती है। शैतानी ताकतें एक व्यक्ति की परमेश्वर के लिए, अनुग्रह के लिए, प्रेम के लिए और एक अनंत के मकसद के लिए क्षमता में रुकावट लाने के लिए “मिलकर साँस लेती हैं”। यह सिद्धांत, जो आत्मछल के द्वारा होता है, किसी व्यक्ति द्वारा अनुभव की जाने वाली सबसे बुरी आत्मिक दुविधा है। यह एक व्यक्ति के उन भावनात्मक साँचों को उलट देती है, जो सत्य को समझने और अनुकूल होने के लिए रचे गए हैं, और उसे नकारात्मक बनाती है।
आंतरिक साज़िश के लक्षण
आम तौर पर कोई आसानी से निर्धारित कर सकता है कि कोई व्यक्ति आतंरिक साज़िश का अनुभव कर रहा है। एक लक्षण यह हो सकता है कि वह हास्यपूर्ण हालातों पर हँसने में असमर्थ है। वह कदाचित ही मुस्कुराता है और जब है भी, तो वह एक मज़बूरी भरी अभिव्यक्ति होती है। वह एक नाखुश व्यक्ति है, जो जिंदगी का सामना तनाव के साथ करता है। वह अपने आंतरिक दबाव को छिपाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन वह जबरदस्त आंतरिक उथल-पुथल झेलता है। आंतरिक साज़िश उसके प्राण पर असर डाल रही होती है, फिर भी वह अब भी उससे अनजान होता है। उसने आत्मछल के समक्ष हार मान ली है, परन्तु यह अब तक अपरिभाषित है। अंतत:, जो सारी रोशनी उसने परमेश्वर के वचन से ग्रहण की है, अंधकार में बदल जाएगी। वह परमेश्वर के सत्य को ऐसी बात कहकर उल्लेख करेगा जिस पर वह विश्वास किया करता था। परिणामस्वरूप उसका प्राण पंगु हो जाता है। मत्ती ६:२२-२३ इस सिद्धांत को प्रकट करता है:
शरीर का दिया आंख है: इसलिये यदि तेरी आंख निर्मल हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। परन्तु यदि तेरी आंख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अन्धियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझमें है यदि अन्धकार हो तो वह अन्धकार कैसा बड़ा होगा।
जब किसी विश्वासी का दिल परमेश्वर की ओर एकटक नहीं होता, तब उसका विवेक विकृत होना शुरू हो जाता है। जब रोशनी उसके मन में प्रवेश करती है और उसके द्वारा परमेश्वर के वचन से भटकने को सुधारना शुरू करती है, तब यह पवित्र आत्मा द्वारा प्रकट किए जा रहे सत्य को तर्क के आधार पर अनुचित साबित करने की कोशिश करता है। इस तरीके की साज़िश के परिणामस्वरूप जो कई तकलीफें उसे सहनी पड़ेगी, उनसे बचाने के लिए पवित्र आत्मा हमेशा मसीही को यीशु मसीह के साथ संगति में वापिस लाने की कोशिश करता है। यह अध्याय बाहरी साजिशों के विषय में नहीं, बल्कि एक आतंरिक साज़िश के विषय में है, जो एक मसीही का जीवन अंदर से नष्ट करने की कोशिश करती है।
अगला लक्षण तब होता है, जब एक विश्वासी परमेश्वर का वचन सुनता है, परन्तु उसे व्यवहार में नहीं लाता। वह यह कहकर प्रावधान के साथ बहाने देता है कि वह एक अनोखे व्यक्तित्व का विशिष्ट व्यक्ति है। वह बाइबल का उपदेश सुन सकता है, पंक्तिओं का अध्ययन और टीका कर सकता है, परन्तु वह उस पर कार्य नहीं करता जो उसने सीखा है (याकूब १:२२)। जब एक विश्वासी जानता है कि परमेश्वर का वचन क्या कहता है, फिर भी अपने जीवन में उसे पूरा नहीं करता (इफिसियों ४:१-६), यह इस बात का संकेत है कि वह व्यक्ति अत्मछल की प्रक्रिया में शामिल है। हो सकता है वह उपदेश और प्रत्येक शब्द के इब्रानी और यूनानी मतलब भी जानता हो, परन्तु यदि वह जीवन की हालातों में उसे समायोजित करने में असफल हो जाए, तब वह गलती में बना हुआ है। वह परमेश्वर के वचन को प्रयोग में न लाने के लिए बहाने बनाता है और इन पंक्तियों में बताए गए मूर्ख मनुष्यों जैसा बन जाता है:
परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता, वह उस निर्बुद्धि मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर बालू पर बनाया। और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर से टकराईं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया (मत्ती ७:२६-२७)।
आंतरिक साज़िश का तीसरा लक्षण यह होता है, जब एक मसीही यीशु मसीह के कलीसिया की अहमियत को नहीं पहचानता। उसके सदस्यों को वह स्वयं से बेहतर आदर नहीं करता (फिलिप्पियों २:३)। वह उस पवित्रता का एहसास नहीं करता कि जब दो या तीन यीशु मसीह के नाम पर इकट्ठा होते हैं, तब मसीह उनके बीच में होता है (मत्ती १८:२०)। आम शब्दो में, वह दूसरे विश्वासियों के साथ संगति करने को महत्वपूर्ण नहीं मानता। जब ऐसा होता है तो मण्डली में छल पहले ही काम कर रहा है। वह विश्वासी जो इस छल में पड़ता है, वह मसीही मण्डली की सुंदरता को धरती में मसीह की सिद्धता के तौर पर अनुभव नहीं कर सकता है।
और सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया; और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया, यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है (इफिसियों १:२२-२३)।
इतना ही नहीं कि विश्वासियों की मण्डली यीशु मसीह की सिद्धता है, बल्कि परमेश्वर के लोगों को उसके लिए सताए जाने के लिए तैयार होना चाहिए।
अब मैं उन दु:खों के कारण आनंद करता हूँ, जो तुम्हारे लिये उठाता हूँ, और मसीह के क्लेशों की घटी उसकी देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी करता हूँ (कुलुस्सियों १:२४)।
विश्वासियों को एक दूसरे के समक्ष अधीन होना चाहिए। “और मसीह के भय से एक दूसरे के अधीन रहो” (इफिसियों ५:२१)। जब वे बातें करें, तो उन्हें सुनने वाले को अनुग्रह देना चाहिए (इफिसियों ४:२९) और एक दूसरे को “आत्मिक भवन” में बनाना चाहिए (१ पतरस २:५)।
आत्म-छल की प्रक्रिया
आतंरिक साज़िश में पड़ा हुआ व्यक्ति परमेश्वर के वचन में से शिक्षाएँ सुनता है, परन्तु उनकी आज्ञाएँ नहीं मानता। “परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस निर्बुद्धि मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर बालू पर बनाया” (मत्ती ७:२६)। वह सत्य से तालमेल नहीं कर पाता, क्योंकि छल ने पहले ही अपना काम कर दिया है। यह व्यक्ति हमेशा अपनी स्थिति का बचाव करने के लिए सुनियोजित प्रदर्शन का इस्तेमाल करता है। वह एक सटीक शब्दावली के द्वारा तैयार किया जाता है, क्योंकि सब गलत बयान चिकने, पूर्व चिंतन किए गए तैयार भाषण के द्वारा होते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि जो व्यक्ति निरंतर एक खास सत्य को नजरअंदाज करता है, वह परमेश्वर द्वारा उस हिस्से में निरुत्तर नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसका विवेक विकृत हो चुका है और अनुपयोगी बनाए जाने की प्रक्रिया में है। फिर, चूँकि वह व्यक्ति परमेश्वर के वचन के प्रतिकूल निर्णय लेता रहा है, इसलिए जो रोशनी उसने ग्रहण की है, वह अंधकार में बदल चुकी है।
वे लोग जो क्षमा नहीं कर पाते हैं, अपने प्राणों के अंदर एक साज़िश का विस्तार कर सकते हैं। उनके मन पवित्रशास्त्र के द्वारा उन्हें वस्तुनिष्ठ सत्य देते हैं, परन्तु उनकी भावनाएँ उनके मन को नामंजूर कर देती हैं। परिणाम के तौर पर, यह विश्वासी परमेश्वर के वचन की स्पष्ट रोशनी के अनुकूल होने से इंकार करते हैं। इसलिये, एक आतंरिक साज़िश उनकी भावनाओं के साथ साथ उनके सत्य के अनुकूल होने और पहचानने की क्षमता को भी नष्ट कर देती है।
वह व्यक्ति जो आतंरिक साज़िश का अनुभव कर रहा है, हमेशा हालातों और लोगों की ओर एक नकारात्मक अंगीकार रखता है। वह कभी भी उन आशिषों की बात नहीं करता, जो परमेश्वर ने उसके कलीसिया को दिए हैं और न ही उन प्राणों की बात करता, जो उद्धार में आए हैं। उसका वार्तालाप सुनने वाले को उन्नति नहीं देता, क्योंकि वह आत्म रक्षा में व्यस्त है, बजाय यीशु मसीह के “भटके हुओं को खोजने और बचाने” (लूका १९:१०) के मकसदों में। क्योंकि यह व्यक्ति परमेश्वर के वचन में से सत्य के अभाव में है, वह दूसरों की त्रुटियों पर ध्यान केंद्रित रखता है, और उन चीजों को नहीं सराहता, जो परमेश्वर ने उसे दी है। परमेश्वर के आशिषों को सराहने की उसकी क्षमता नष्ट हो चुकी है, क्योंकि उसने एक नकारात्मक रवैया विकसित किया है। कई मसीही अपनी मण्डली से सुपरिचित हो जाते हैं और उसे तुच्छ जानते हैं, जिससे दूसरे विश्वासियों की ओर आदर की कमी पैदा होती है।
आत्मछलित व्यक्ति स्वयं को गुमराह होने देता है। “क्योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है” (गलातियों ६:३)। यह पंक्ति उसकी सूझभूझ बन जाती है। यशायाह ५:२० कहता है “हाय उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अँधियारे को उजियाला और उजियाले को अँधियारा ठहराते, और कड़वे को मीठा और मीठे को कड़वा करके मानते हैं!”
यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि एक आंतरिक साज़िश किसी भी बाहरी साज़िश के होने के पहले होती है। भावनाएँ मन के खिलाफ़ षडयंत्र करती हैं, जिससे वह व्यक्ति असंतुलित (याकूब १:८) हो जाता है। यह प्रक्रिया असामान्य अथवा चिंतनीय व्यवहार के रूप में भी दिखाई पड़ सकती है, परन्तु अक्सर आत्मछल के लक्षण बाहरी नहीं होते हैं।
अध्याय IV : एक पासवान-शिक्षक के खिलाफ़ साज़िशें
एक पासवान-शिक्षक को परमेश्वर की सिद्ध शिक्षा सिखानी होगी
इस हिस्से में, यिर्मयाह २६ और २ कुरिन्थियों ११ का सर्वेक्षण किया जाएगा, जो पासवान-शिक्षक के खिलाफ़ साज़िशों का वर्णन करते हैं। एक साज़िश कलीसिया के उन सदस्यों के द्वारा भड़काई जा सकती है, जो लोगों की मदद करने और मण्डली में उन्नति लाने के बहाने गुप्त सभाएँ रखते हैं। वे इस तरीके की बातें कह सकते हैं: “पासवान हमारे दृष्टिकोण को कबूल नहीं करेगा, और उसे हमारी मदद की जरूरत है” या “हमारा मकसद कलीसिया को बचाना है। हम यह इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम पासवान से प्रेम करते हैं।” यह बातें कलीसिया की एकता की सुरक्षा करने के दिखावे में कही जाती हैं, जबकि सच्चाई यह है कि मण्डली को विभाजित करने, उसपर शक पैदा करने और उसे नष्ट करने के लिए और षड़यंत्रकारियों को उन्नति देने के लिए साज़िश भरी बुराई अपने शुरुआती कदमों में है।
पासवान-शिक्षक के खिलाफ़ योजना का पहला चिन्ह सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप में तब दिखाई पड़ता है, जब उसमें हिस्सा ले रहे लोग परमेश्वर के वचन को नहीं सुनते हैं (१ थिस्सलुनीकियों २:१३)। यह सिद्धांत इस पद में दिखाई पड़ता है:
यहोवा यों कहता है: यहोवा के भवन के आँगन में खड़ा होकर, यहूदा के सब नगरों के लोगों के सामने जो यहोवा के भवन में दण्डवत् करने को आएँ, ये वचन जिनके विषय उनसे कहने की आज्ञा मैं तुझे देता हूँ कह दे; उनमें से कोई वचन मत रख छोड़। सम्भव है कि वे सुनकर अपनी अपनी बुरी चाल से फिरें और मैं उनकी हानि करने से पछताऊँ जो उनके बुरे कामों के कारण मैंने ठाना था। इसलिये तू उनसे कह, ‘यहोवा यों कहता है: यदि तुम मेरी सुनकर मेरी व्यवस्था के अनुसार जो मैंने तुम को सुनवा दी है न चलो, और न मेरे दास भविष्यद्वक्ताओं के वचनों पर कान लगाओगे, जिन्हें मैं तुम्हारे पास बड़ा यत्न करके भेजता आया हूँ, परन्तु तुमने उनकी नहीं सुनी (यिर्मयाह २६:२-५)।
इसलिए, पहला सिद्धांत है कि पासवान-शिक्षक को दृढ़ निश्चय के साथ प्रचार करना होगा। ध्यान दें, पासवान किसी भी तरीके से त्रुटिहीन नहीं है; वह अनुग्रह के द्वारा उद्धार पाया हुआ एक पापी है। उसे परमेश्वर के वचन को कभी भी तुच्छ नहीं बनाना है, चाहे उससे मण्डली नाराज़ हो जाए या लोग यह सोचें कि वह परमेश्वर की ओर से नहीं सिखा रहा। प्रक्रिया यह है: जब पासवान एक कठिन और निरुत्तर करने वाला संदेश सुनाता है, मण्डली इकट्ठा होकर यह निर्णय ले सकती है कि यह “कठिन वचन हैं” (यूहन्ना ६:६०)। लोग पासवान-शिक्षक पर उसके व्यक्तित्व और व्यक्तिगत नज़रिये से प्रचार करने का इल्ज़ाम लगा सकते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग इसके दोषी हों, परन्तु औसत पासवान इस तरीके से बिलकुल नहीं सोचता। सत्य यह है कि उसकी शिक्षा बाइबल में से है, सिद्धांतों में और उन खास पंक्तियों के विषय में भी। परमेश्वर ने पासवान को पुराने पापी स्वभाव का बचाव करने के लिए कभी भी संदेश को नरम न करते हुए समय और असमय प्रचार करने की आज्ञा दी है,
कि तू वचन का उदघोषण और प्रचार कर! अपने अतिआवश्यकता के एहसास को बरकरार रख (उपस्थित रह, उपलब्ध और तैयार रह, चाहे मौका अनुकूल या प्रतिकूल लगे, चाहे यह सुविधाजनक या असुविधाजनक हो, चाहे उसका अभिनन्दन या कुस्वागत हो, तुझे वचन के प्रचारक के तौर पर लोगों को यह दिखाना है के उनके जीवन किस तरह से गलत हैं) और उन्हें यकीन दिला, सहनशीलता और शिक्षा के साथ डाँटते और सुधारते हुए, उलाहना दे और विनती कर और समझा (२ तीमुथियुस ४:२, एम्पलीफाईड)।
कई बार, एक मण्डली पुलपिट को यह बताना शुरू कर सकती है कि क्या सिखाना चाहिए, क्योंकि लोगों को नरम वचन सुनने हैं। दूसरे शब्दों में, विश्वासियों की मण्डली सिर्फ सारे सकारात्मक विषयों – अनुग्रह, प्रेम, आनंद, आशिष, इत्यादि पर संदेश माँग सकती है। यह लोग दोषसिद्धि न करने वाले संदेश पसंद करते हैं; वह ऐसे किसी भी संदेश से घृणा करते हैं, जो उनके पापी स्वभाव को डाँट लगाता है (रोमियों ६:६)। वे चाहते हैं कि पासवान मनाहियों की बात न करने के द्वारा वचन में से कुछ निकाल दे, और मसीह की देह की उनकी शर्तवाली इच्छाओं के अनुसार उन्नति करे। ऐसे विश्वासी इस सच्चाई का इंकार करते हैं कि परमेश्वर का सिद्ध वचन उनके फायदे के लिए है। उनके मन और भावनाएँ उनके प्राणों के अंदर परस्पर विरोध में हैं और वचन की ओर नकारात्मक की वजह से वे अपनी भावनाओं को स्वयं पर राज करने देते हैं। इससे यह पता चलता है कि किसी समय पर वे पवित्रशास्त्र की सच्चाई से दूर खींच लिए गए और अब निरुत्तर किए जाने का सामना नहीं कर सकते हैं। वे परमेश्वर के वचन को हलका करना चाहते हैं।
हर पासवान को सत्य को प्रेम में प्रचार करना चाहिए (इफिसियों ४:१५), परन्तु परमेश्वर का सिद्ध वचन सिखाना चाहिए (प्रेरितों के काम २०:२७)। प्रेम और अनुग्रह को संतुलन में सिखाना होगा। “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए” (कुलुस्सियों ४:६)। लेकिन, एक बार फिर कहा जाए कि परमेश्वर का सिद्ध वचन सिखाया जाए और किसी व्यक्ति के पापी स्वभाव को बचाने के लिए कभी भी छोटा न किया जाए।
सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है, ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए (२ तीमुथियुस ३:१६-१७)।
यिर्मयाह २६:८ और ९ में, परमेश्वर का वचन कहता है:
और जब यिर्मयाह सब कुछ जिसे सारी प्रजा से कहने की आज्ञा यहोवा ने दी थी कह चुका, तब याजकों और भविष्यद्वक्ताओं और सब साधारण लोगों ने यह कहकर उसको पकड़ लिया, “निश्चय तुझे प्राणदण्ड मिलेगा! तूने क्यों यहोवा के नाम से यह भविष्यद्वाणी की कि ‘यह भवन शीलो के समान उजाड़ हो जाएगा, और यह नगर ऐसा उजड़ेगा कि उसमें कोई न रह जाएगा’?” इतना कहकर सब साधारण लोगों ने यहोवा के भवन में यिर्मयाह के विरुद्ध भीड़ लगाई।
यह पंक्तियाँ एक आत्मिक अगुवे के खिलाफ़ साज़िश का प्रदर्शन करती हैं। कितने लोग उसके खिलाफ़ इकट्ठे थे? सभी लोगों ने उसके खिलाफ़ बगावत की। इसका क्या मतलब है? जब इन पंक्तियों को ध्यान देकर पढ़ा जाता है, तो यह पता चलता है कि एक धार्मिक समूह, और साथ ही में उसके परिवार, और दोस्तों ने उसके खिलाफ़ षड्यंत्र रचा। यिर्मयाह ने न्याय के विषय में एक नकारात्मक संदेश सुनाया जिससे लोगों ने नफरत की। वे भावनात्मक बगावत की हालात में थे।
पासवान-शिक्षक के खिलाफ़ एक साज़िश २ कुरिन्थियों ११ में लिखी गई है। पौलुस के ऊपर सभी सम्भव इल्ज़ाम लगाए गए। थिस्सलुनीके में उस पर शारीरिक पाप का इल्ज़ाम लगाया गया था। कुरिन्थ में उस पर अधिकार जताने का इल्ज़ाम लगाया गया था। पौलुस ने स्वयं का बचाव नहीं किया; उसने सादे तौर पर एक वाक्य कहा और सत्य को बोला। बोलने का मतलब बचाव नहीं है; बल्कि, इसका मतलब तथ्यों के द्वारा सत्य का बयान करके अपने मामले को खारिज़ करना होता है। जब पौलुस परमेश्वर का वचन सिखाता था, तो वह विश्वासी को जो उसने सुना उसकी ओर जिम्मेदार कर देता था। उन्हें मजबूरन उस पर विश्वास करना या तिरस्कार करना चुनना पड़ता था, और उनके निर्णय परमेश्वर के साथ उनका भविष्य तय करने वाले हो जाते थे। एक पासवान को स्वयं का बचाव करने की जरूरत नहीं है; उसे एक जबरदस्त लड़ाकू होना होगा, जो इन्सान के विचारों अथवा सत्य को ग्रहण करने की उनकी असक्षमता से हिलाया न जा सके। उसे इस तरीके से शिक्षा देनी होगी कि लोगों को परमेश्वर का वचन सुनने के लिए जिम्मेदार बना सके। पौलुस कुरिन्थ के लोगों को पवित्रशास्त्र की ओर जिम्मेदार करने के लिए सुसमाचार सुनाता था। पौलुस ने परमेश्वर के वचन का उल्लंघन नहीं किया था, इसलिए उसे कुछ भी बचाव करने की जरूरत नहीं थी।
२ कुरिन्थियों ११:५-७ प्रकट करता है कि पौलुस एक साज़िश का शिकार था:
मैं तो समझता हूँ, कि मैं किसी बात में बड़े से बड़े प्रेरितों से कम नहीं हूँ। यदि मैं वक्तव्य में अनाड़ी हूँ, तो भी ज्ञान में नहीं। हमने इसको हर बात में सब प्रकार से तुम्हारे लिये प्रकट किया है। क्या इसमें मैंने कुछ पाप किया कि मैंने तुम्हें परमेश्वर का सुसमाचार सेंत-मेंत सुनाया; और अपने आप को नीचा किया कि तुम ऊँचे हो जाओ?
आज, कई विश्वासी सत्य की कड़ाई को सहन नहीं कर पाते। वे पासवान-शिक्षक पर नाराज़ होते हैं, जो सिर्फ एक पात्र है जो परमेश्वर के वचन की घोषणा करता है। वे उस पर स्वयं का बचाव करने का इल्ज़ाम लगाते हैं, जबकि वह उन हालातों में बाइबल क्या कहती है उसकी बातें कर रहा है। पौलुस को साधारण रूप से यह पता था, कि वह परमेश्वर के राज्य में कौन था। चूँकि वह सच्चा परमेश्वर का दास था, उसे सत्य का प्रचार करना आवश्यक था। यह महत्वपूर्ण सिद्धांत २ कुरिन्थियों ११:६अ में सिखाया गया है, “यदि मैं वक्तव्य में अनाड़ी हूँ, तो भी ज्ञान में नहीं।” दूसरें शब्दों में, पौलुस कह रहा है, “मुझे उपदेश पता है, लेकिन मैं उसे तुम्हारी आसानी के लिए न कम करूँगा या नियंत्रित करूँगा।”
वैसे तो पौलुस की सेवकाई हर स्थान के विश्वासी लोगों के समक्ष प्रकट थी, फिर भी कइयों के द्वारा आदर नहीं की जाती थी। विश्वासी लगातार पौलुस के खिलाफ़ साज़िशें करते थे। कई मिलकर चालें चलते थे, कि परमेश्वर के द्वारा उसे दी गई सेवकाई को नष्ट कर सकें। कई लोग हैं, जो यह विश्वास नहीं करते कि आज पासवानों के खिलाफ़ साज़िशें होती हैं। उन्हें ये सवाल स्वयं से पूछने चाहिए: क्या आप विश्वास करते हैं कि मसीही अधिकारियों और ताकतों, इत्यादि... से नहीं लड़ रहे हैं (इफिसियों ६:१२)? क्या शैतान जानता है कि उसके पास कम समय है (प्रकाशितवाक्य १२:११,१२)? क्या वह खोज रहा है कि किसे दबोच सके (१ पतरस ५:८)? क्या उसने अय्यूब के दोस्तों को अय्यूब पर इल्ज़ाम लगाने के लिए इस्तेमाल किया? क्या आज के आधुनिक दिनों के दियुत्रिफेस आज की कलीसियाओं में हैं?
मैंने कलीसिया को कुछ लिखा था, पर दियुत्रिफेस जो उनमें बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। इसलिए जब मैं आऊँगा, तो उसके कामों की जो वह कर रहा है, सुधि दिलाऊँगा, कि वह हमारे विषय में बुरी-बुरी बातें बकता है; और इस पर भी सन्तोष न करके आप ही भाइयों को ग्रहण नहीं करता, और उन्हें जो ग्रहण करना चाहते हैं, मना करता है: और कलीसिया से निकाल देता है (३ यूहन्ना ९-१०)।
जाहिर है कि शैतान किसी भी फलदायी परमेश्वर के दास के खिलाफ़ इस चाल का इस्तेमाल करेगा, जो पिता के व्यवसाय में व्यस्त है। साजिशों के कारण निश्चित रूप से चमत्कारिक होते हैं, जिनका वर्णन अगले अध्याय में किया जाएगा। मसीहियों को शैतान और उसकी चालों में जरूरत से ज़्यादा मशगूल नहीं होना चाहिए, फिर भी उन्हें यह पता होना आवश्यक है कि बाइबल सिखाती है:
सचेत हो, और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका सामना करो कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं ऐसे ही दु:ख सह रहे हैं (१ पतरस ५:८-९)।
पूरा होना के लिए शब्द है, एपीटेलिओ/epitelio, जिसका मतलब है कि कोई चीज़ पूरी तरीके से कार्यान्वित की गई है, और यह कि मूलतया यही चाल प्रत्येक उस व्यक्ति के खिलाफ़ इस्तेमाल की जाती है, जो परमेश्वर का वचन सुनाता है और अपने कलीसिया के लोगों के लिए अपना जीवन अर्पित करता है।
अध्याय V : साज़िश के चमत्कारिक कारण
हम हाड़ और मांस से युद्ध नहीं कर रहे
यह अध्याय साज़िश के चमत्कारिक कारणों के विषय का विवरण देगा। आज का समय उस आत्मिक संग्राम में शिक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो परमेश्वर और उसकी स्वर्गीय सेनाओं, तथा शैतान और उसके गिरे हुए दूतों के बीच में चल रहा है। यह संग्राम उन जटिल योजनाओं से बना हुआ है, जो अदृश्य वातावरण में होती हैं, परन्तु इस अदृश्य युद्ध के परिणाम लोगों के जीवन में दिखाई पड़ कर प्रकट होते हैं। इसलिए, विश्वासी को अपने आत्मिक संग्राम के हथियारों को प्रशिक्षित और तैयार करना चाहिए।
हे पुत्र तीमुथियुस, उन भविष्यवाणियों के अनुसार जो पहले तेरे विषय में की गई थीं मैं यह आज्ञा सौंपता हूँ कि तू उनके अनुसार अच्छी लड़ाई को लड़ते रहे (१ तीमुथियुस १:१८)।
क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तो भी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिए परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं (२ कुरिन्थियों १०:३-४)।
एक बहुत महत्वपूर्ण पाठ जो किसी भी मसीही को सीखना चाहिए वह यह है: “अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्ज़ित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो”(२ तीमुथियुस २:१५)। कई बार एक औसत सुननेवाला जो रविवार की सुबह कलीसिया में उपस्थित होता हैं, वातावरण में मौजूद लड़ाई को लड़ने के लिए उतना ही तैयार होता है जितना कि एक साधारण व्यक्ति सेना के युद्ध में लड़ने के लिए। परमेश्वर का वचन विश्वासी को दुश्मन के खिलाफ़ खड़ा होने के लिए तैयार होने की चेतावनी देता है।
क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध लहू और मांस से नहीं परन्तु प्रधानों से, और अधिकारियों से, और इस संसार के अंधकार के हाकिमों से और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं (इफिसियों ६:१२)।
हर व्यक्ति को अदृश्य संग्राम का पता होना चाहिए। इसमें केवल पासवान, प्राचीन या डीकन ही नहीं, परंतु माताएँ, पिता, किशोर और बच्चे भी शामिल हैं। यद्यपि “हम हाड़ और मांस से युद्ध नहीं कर रहे,” कई संग्राम जो मसीही सामना करते हैं, उनका सतही तौर पर उपचार किया जाता है। वे हालातों को चमत्कारिक संघर्ष की बजाए ज्ञान का मुद्दा मानते हैं, क्योंकि उन्हें यह समझ नहीं है, कि वास्तव में चल क्या रहा है। विश्वासी को हर हालात का सामना करने में बुद्धिमान होना सीखना चाहिए।
२ कुरिन्थियों ४:४ में, परमेश्वर का वचन कहता है कि शैतान इस संसार की व्यवस्था का ईश्वर है। पहला - शैतान मसीही के दिल में से यीशु मसीह की सर्वश्रेष्ठता को नष्ट करना चाहता है (कुलुस्सियों १:१८)। दूसरा - वह विश्वासी के दिल को सिंहासन के तौर पर जीतना चाहता है। वह अपनी यह चालें चरित्र का हनन करके (यूहन्ना ८:४४), कलीसिया और भाईयों पर दिन रात दोष लगाने के द्वारा (प्रकाशितवाक्य १२:१०), और परमेश्वर के संदेशवाहकों के विषय में बुरी खबरें फैलाकर उनका अपयश करने के द्वारा (भजन संहिता ६४; नीतिवचन ६:१७-१८) करता है। वह यह कार्य मत्ती १२:२४ में दी गई कार्यप्रणाली के द्वारा करता है। इस पंक्ति में, फरीसियों ने यीशु मसीह पर शैतान के राज्य से अपनी शक्ति प्राप्त करने का दोष लगाया। “परन्तु फरीसियों ने यह सुनकर कहा, यह तो दुष्टात्माओं के सरदार बालज़बूल की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकालता।” शैतान की बुराई की व्यवस्था १ यूहन्ना ५:१९ब में वर्णित की गई है, “और सारा संसार दुष्ट के वश में पड़ा हैं।” यथार्थ, इसका मतलब यह है कि संसार की पूरी प्रणाली शैतान के संगठन की व्यवस्था में पड़ी हुई है।
शैतान की रणनीतियाँ
जब भी सम्भव होता है, शैतान एक व्यक्ति को घमण्डी और अभिमानी बना देता है। यदि एक चीज़ है जो विश्वासी को मसीही जीवन की सिद्धता से रोक सकती है, तो वह नम्रता की कमी है। एक घमण्डी हावभाव और श्रेणीगत उपदेश की उपेक्षा, परमेश्वर के संतान को आत्मिक परिपक्वता में बढ़ने से रोकती है।
शैतान विश्वासी को गलत पासवान-शिक्षक चुनने या पासवान-शिक्षक न रखने में मजबूर करने की कोशिश करता है। मसीहीपन में एक अति आवश्यक बुलाहट और सारे संसार में सुसमाचार के प्रचार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, परन्तु शैतान विश्वासी की भावनाओं पर तब तक आक्रमण करने की कोशिश करता है, जब तक कि उसके पास आत्मिक सुबुद्धि न बचे।
इस संसार का राजकुमार लोगों को उनकी भावनाओं के आधार पर सोचने के लिए प्रभाव डालता है, जिससे वे परमेश्वर के वचन के साथ वस्तुनिष्ठ तरीके से कभी सोच न पाएँ। अक्सर, विश्वासी अपनी विषयात्मकता को उचित साबित करने के लिए तर्कसंगत बहाने देने के द्वारा इस धोखे में पड़ जाते हैं। इसके अलावा, शैतान भावना-रहित व्यक्ति को लेकर उसे इतना अहमवादी बना देता है कि वह दूसरों के बारे में अपनी टिप्पणियों की ओर लापरवाह हो जाता है – यह व्यक्ति दुष्टात्माओं द्वारा प्रभावित बुद्धिजीवी घमण्ड में जी रहा है।
यह बिलकुल सच है: “दुष्टात्माओं का अस्तित्व वाकई है! घमण्ड और अभिमान की बुरी आत्माएँ असल में हैं। शैतान का मकसद है कि वह कलीसिया को विभाजित करे, जिससे वह सुसमाचार को न फैलाए। वह परमेश्वर के वचन के संदेशवाहकों का अपयश करने की कोशिश करता है, जिससे मण्डली सत्य को न सुने। शैतान ऐसा कोई भी व्यक्ति खोज़कर निकालता है, जो पासवान के व्यक्तित्व को पसंद नहीं करता या वह व्यक्ति जो उसके संदेशों में गलतियाँ निकालता है। उस दौरान, इन इल्जामों का पासवान के समय और असमय परमेश्वर का वचन सुनाने के अधिकार से कोई सम्बन्ध नहीं है (२ तीमुथियुस ४:२)। संदेशवाहक की ओर संदेह पैदा करके शैतान विश्वासी को जो सिखाया जा रहा है, उसे न सुनने के कारण देता है। इस रणनीति पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। शैतान कलीसिया को विभाजित करता है, जिससे कि वे सुसमाचार के प्रचार पर ध्यान लगाने की बजाय अपने मतभेदों में ध्यान लगाए रहें।
इन चालों के अलावा, शैतान पासवान के परमेश्वर द्वारा दिए गए पुलपिट पर अधिकार को कमजोर करने की कोशिश करता है, जिससे पासवान परमेश्वर के सिद्ध वचन का प्रचार न करे। वह पासवान को ऐसे संदेश सुनाने में प्रभावित करता है, जो कान खुजलाने वाले होते हैं, परन्तु जीवन बदलने के लिए दोषसिद्धि नहीं लाते हैं। प्रचारक जल्द ही निष्क्रिय होकर ऐसे संदेश देने में संतुष्ट हो जाता है, जो मण्डली के लोगों के दिलों को एक दूसरे और भटके हुओं के लिए अपने जीवन को अर्पित करने को प्रज्ज्वलित करने की बजाय उनके पापी स्वभाव को बढ़ावा देते हैं (१ यूहन्ना ३:१४)।
जो व्यक्ति यीशु मसीह की ओर प्रतिबद्ध है, वह सत्य को प्रचार करने की कीमत पर ध्यान दिए बिना वही प्रचार करता है, जो वचन आज्ञा देता है। वह अनंत के वचन के उन सिद्धांतों पर खड़ा होता है, जो स्वर्ग में निर्धारित किए गए हैं (भजन संहिता ११९:८९)। शैतान इन्सानी मन को छ: प्रकार के लालसा के नमूनों में ध्यान देते रहने की चाल को इस्तेमाल करता है: शारीरिक लालसा, अनुमोदन की लालसा, भौतिक लालसा, अधिकार की लालसा, घमण्ड और प्रतिक्रिया। वह इन लालसा के नमूनों को विश्वासी को अपने पुराने पापी स्वभाव के पुराने तरीकों में डुबोने के लिए इस्तेमाल करता है, जिससे वह मसीह की बजाय स्वयं में मशगूल रहे। १ पतरस मसीही को सिखाता है कि वह “आज्ञाकारी बालकों के समान अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के सदृश न बने” (१ पतरस १:१४)।
जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है। इनमें हम भी सब के सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की इच्छाएँ पूरी करते थे, और अन्य लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की संतान थे (इफिसियों २:२,३)।
एक और तकनीक जो शैतान विश्वासी को अशक्त करने के लिए प्रयोग करता है, वह है कि उसे आंतरिक और बाहरी दबाव से हिला देना। कोई विश्वासी जिसमें चरित्र, बुद्धिमत्ता और स्वस्थ भावनाओं की कमी होती है, वह वचन के अनुसार वस्तुनिष्ठता से नहीं सोच सकता, और इसलिए दबाव का सामना करने की क्षमता नहीं रखता। शैतान उसकी कमजोरी का फायदा उठाता है, और तनाव जल्द ही उस पर भारी पड़ता है।
एक और चाल जो शैतान इस्तेमाल करता है, वह है कि परमेश्वर के प्रेम को स्वयं की तृप्ति में बदल देना। वह मसीही के सामने एक नकली प्रेम पेश करता है, जो कलवरी के क्रूस पर आधारित निशर्त प्रेम की बजाय किसी दूसरे व्यक्ति के गुणों पर आधारित होता है। भावुकता भरा प्रेम परीक्षाओं और दबावों को कभी भी बर्दाश्त नहीं कर पाएगा; यह कई सालों तक बना रहेगा, परन्तु यदि शादियाँ और सम्बन्ध परमेश्वर के प्रेम पर आधारित नहीं हैं, तो वे परीक्षाओं के समयों में नहीं बच पाएँगे।
गोपनीयता का उपदेश
बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली में परमेश्वर के सामने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों (सभोपदेशक ५:२)।
आज के कलीसिया के महत्वपूर्ण पापों में से एक है कि बहुत कम मसीही यह समझते हैं कि गोपनीय कैसे रहा जाए। अक्सर विश्वासी व्यक्तिगत मुद्दों का बखान कर देते हैं, जो किसी और व्यक्ति के साथ परमेश्वर के सामने चर्चित किए गए थे। परिणामस्वरूप – एक मासूम व्यक्ति चोट खाता है और वह मुद्दा चमत्कारिक प्रणाली के द्वारा नष्ट करने वाले मकसदों में इस्तेमाल किया जाता है। गोपनीयता का उपदेश हर विश्वासी का हक है। इससे उसकी गोपनीयता की सुरक्षा करने की स्वतंत्रता मिलती है। एक व्यक्ति जो भरोसा तोड़ता है, इस उपदेश का उल्लंघन करता है और एक गंभीर पाप करता है, जिसका पहचान में आते ही जल्द पश्चाताप करना चाहिए। मसीहियों को इस उपदेश का आदर करना चाहिए और शैतान को इन्सानी आज़ादी में घुसकर उसे नष्ट करने की अनुमति नहीं देना चाहिए। विश्वासी द्वारा परमेश्वर के वचन का आदर करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि वह यह समझे कि गोपनीयता रखना क्या होता है।
शैतान परमेश्वर की कार्यपद्धतियों के बारे में सूचनाएँ इकट्ठा करता है। वह मसीह में विश्वास करने वालों की कमजोरियाँ और परमेश्वर के राज्य की रणनीति पता लगाता है, और तब इस जानकारी को बड़े तौर पर किसी व्यक्ति में मौजूद तकलीफ को बढ़ाने और तीव्र करने के अपने मकसदों के लिए इस्तेमाल करता है। वह मसीह की कलीसिया की एकता को भंग करना चाहता है, और मसीहियों में एक दूसरे पर शंका पैदा करता है। जब उसे मौका मिलता है, तब वह विश्वासियों में संदेह पैदा करता है, जिससे अंतत: भटके हुओं को मसीह में जीतने की उनकी इच्छाएँ बुझ जाती हैं। अत:, शैतान का मुख्य उद्देश्य विश्वासियों को मसीह के स्वरूप में बनाए जाने से रोकना है (रोमियों ८:२९)। विश्वासी को इस मुद्दे पर खास ध्यान देना है कि गोपनीयता का उपयोग कभी भी पाप को ढकने के लिए न किया जाए (मरकुस ४:२१,२२)।
मसीही को दोस्ती में कभी भी भरोसा नहीं तोड़ना है, क्योंकि अंधकार का राज्य यदि मुद्दा दोबारा बोला जाए, तो उसे “दोस्तों को तक अलग करने के लिए” इस्तेमाल करेगा (नीतिवचन १७:९)। हर मसीही को यह निर्णय लेना चाहिए कि वह गोपनीयता के उपदेश की आज्ञा मानेगा। उसकी स्वयं की गोपनीयता प्रभु द्वारा सुरक्षित की जाती है, क्योंकि वह परमेश्वर के सामने खड़ा होता या गिरता है, न कि दूसरों के सामने।
तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है; वरन् वह स्थिर ही कर दिया जाएगा, क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है (रोमियों १४:४)।
Translated from the booklet by Pastor Carl H. Stevens, of www.ggwo.org titled, ‘The Doctrine of Conspiracy’
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