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बहुत कुछ हासिल करने वाली प्रार्थना

Translated from the booklet by Pastor Carl H. Stevens, of www.ggwo.org titled, 'Prayer that Avails Much.'

भूमिका

सिर्फ कुछ लोग ही सच में प्रार्थना की क्षमता और वादे को समझते हैं। परमेश्वर ने प्रार्थना को उस साधन के रूप में तय किया है, जिसके द्वारा इन्सान उसे पुकार सकते हैं। बाइबल में इसे उत्पत्ति में स्थापित किया गया था, "और शेत के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने उसका नाम एनोश रखा, उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे" (उत्पत्ति ४:२६)। उस समय से, परमेश्वर प्रार्थना की जरूरत के बारे में विश्वासियों को समझाने की कोशिश करता रहा है। यीशु मसीह ने उपदेश देने के विषय में शिक्षा नहीं दी। पर, उसने प्रार्थना पर कई पाठ सिखाए। उपदेश सीखने के लिए कई लोग समय निकालते हैं, जो कि महत्वपूर्ण और जीवनप्रद है। लेकिन याकूब ५:१६ बताता है कि प्रार्थना वह चीज है, जो "बहुत कुछ हासिल करती है।" परमेश्वर चाहता है कि विश्वासी उसी जोश के साथ प्रार्थना में आएँ, जिसके साथ वे अध्ययन करने आते हैं। यह पुस्तिका इसलिए लिखी गई है, जिससे मसीहीजन परमेश्वर को समय देने और प्रार्थना करने में खुद को समर्पित करने के लिए उत्साहित हो सकें।

बहुत कुछ हासिल करने वाली प्रार्थना

कई लोगों द्वारा प्रार्थना को अपनी जीवन शैली का मुख्य सिद्धांत बनाने में उपेक्षा का कारण परमेश्वर को इसके स्रोत के रूप में न पहचानना है। प्रार्थना की शुरुआत और अन्त अनुग्रह के सिंहासन (इब्रानियों ४:१६) पर होना चाहिए। जैसा कि इब्रानियों ११:६ में उल्लेख किया गया है, ईनाम उनके लिए है, जो परमेश्वर को लगन से खोजते (एक्ज़ेटियो/ Ekzteo – लालसा करते, छानबीन करते, माँगते) हैं। इसमें प्रभावशाली प्रार्थना की कुंजी है। ये विश्वासी पहले परमेश्वर के पास जाते हैं, परमेश्वर के विचारों पर पवित्र आत्मा से सलाह लेते हुए और प्रार्थना में उसकी मर्जी का बयान करते हुए: "क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है" (रोमियों ८:२६ब)तब उस समय तुम मुझको पुकारोगे और आकर मुझसे प्रार्थना करोगे और मैं तुम्हारी सुनूंगा। तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे (यिर्मयाह २९:१२,१३) मत्ती ६ में उसकी प्रार्थना में, यीशु ने अपने शिष्यों को ऐसे शुरू करना सिखाया, हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती ६:९ब, १०)। सबसे पहले, विश्वासी को उसका ध्यान खुद से हटाकर पिता की ओर लगाने के लिए कहा गया है। उसके बाद वह परमेश्वर के चरित्र की पवित्रता के बारे में सोचता है और उसके राज्य की सत्ता का अनुमान लगाता है, कि उसकी इच्छा पूरी हो। प्रार्थना का केंद्र पहले उसका नाम, उसका राज्य, उसकी इच्छा होना चाहिए; उसके बाद हम माँगने में आगे बढ़ सकते हैं, "......हमें दे"; "....क्षमा कर"; "...हमें न ला"; "...हमें बचा।" अक्सर प्रार्थना में विश्वासी पहले परमेश्वर की ओर देखे बिना अपने आपको खुद की जरूरतों में अति-मशगूल हो जाने देते हैं। प्रार्थना एक नीरस धार्मिक आदत - अर्थात हलकी उम्मीद के साथ जरूरतों और मुश्किलों  की मात्र एक सूची, नहीं होनी चाहिए। इसकी बजाय, यह परमेश्वर के साथ सहभागिता का एक उत्साही अनुभव हो सकता है। जब परमेश्वर और उसकी इच्छा विश्वासी की प्रार्थना का केंद्र होता है, तब वह उसकी ओर से उत्तर मिलने के बारे में आश्वस्त हो सकता है। पूरे पवित्रशास्त्र में, परमेश्वर अपने आपको प्रार्थना का उत्तर देने वाला परमेश्वर साबित करता है। उसके वचन में विश्वास करो। उसे प्रार्थना में प्रथम रखो। उसे लगन से खोजो और उसके जवाब की उम्मीद रखो। “जब वह मुझको पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचा कर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा” (भजन ९१:१५)। “तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं। यदि तू अन्धेर करना और उंगली मटकाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे” (यशायाह ५८:)

प्रार्थना में युद्ध करना

“हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है, जो आकाश में हैं” (इफिसियों ६:१२)। यीशु के गतसमनी के बगीचे के समय की कल्पना करो। इस बगीचे का नाम, गेथेसेमेनी (gethsemenei) (अर्थात "तेल का कोल्हू") ही दबाव के बारे में बोलता है। वहां पर परमेश्वर के पुत्र ने सबसे तगड़े शैतानी हमले का अनुभव किया। उसने अपने प्राण को "बहुत उदास, यहां तक निकलना चाहता" (मत्ती २६:३८) हुआ वर्णन किया। दुष्टात्माओं ने उस बगीचे के वातावरण को भारीपन, पीड़ा और दु:ख के अनुमानों के साथ भरते हुए घेर लिया था। इस सताव के दौरान उसने चेलों को जागने और उसके लिए प्रार्थना करने के लिए विनती की। लेकिन वे, उधर चल रहे इस संग्राम से शायद अनजान होकर सोते रहे (मत्ती २६:४०, ४३)। यीशु खुद के लिए प्रार्थना करने के लिए अकेला रह गया: "और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने के टप्पे भर गया, और घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा" (लूका २२:४१)। लूका २२:४३ में एक स्वर्गदूत ने आकर उसे मजबूत किया और उसकी प्रार्थना का उत्तर मिला। प्रेरित पौलुस लगातार विश्वासियों को उसके लिए और उसकी सेवकाई के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा करता था: हे भाइयों, हमारे लिये प्रार्थना करो (१ थिस्सलुनीकियों :२५) निदान, हे भाइयों, हमारे लिये प्रार्थना किया करो, कि प्रभु का वचन ऐसा शीघ्र फैले, और महिमा पाए, जैसा तुम में हुआ (२ थिस्सलुनीकियों ३:) और तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे (२ कुरिन्थियों १:११अ)। और यह भी, कि मेरे लिये उतरने की जगह तैयार रख; मुझे आशा है, कि तुम्हारी प्रार्थनाओं के द्वारा मैं तुम्हें दे दिया जाऊंगा (फिलेमोन २२) और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिलाकर, तुमसे बिनती करता हूं, कि मेरे लिये परमेश्वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो (रोमियो १५:३०) यीशु और पौलुस दोनों ही साम्राज्य के संग्राम में प्रार्थना को सबसे प्रभावी हथियार मानते थे। लोग या परिस्थितियां मसीह के काम के दुश्मन नहीं होते। १ पतरस ५:८ समझाता है कि असली विरोधी शैतान है, और वह "गर्जने वाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किसको फाड़ खाए।" शैतान अब भी शान्त नहीं खड़ा है। नहीं, वह लगातार "परमप्रधान के पवित्र लोगों को पीस डालने" (दानिय्येल ७:२५अ) के लिए रची रणनीति बना रहा है। "फाड़ खाए" के लिए यूनानी शब्द काटापिनो (Katapino) का मतलब है "नष्ट करना; गटक लेना; निगल जाना।" यह परिभाषा शैतान के मुख्य उद्देश्य का सटीक वर्णन करती है: जीवन के विवरणों और दबावों के बीच मसीही को निगल लेना। यूहन्ना १४:३० में, मसीह ने शैतान को "इस संसार का सरदार" कहा। इफिसियों २:२ उसे "आकाश के अधिकार का हाकिम" (आकाश का यूनानी मतलब, "पृथ्वी के वायुमंडल का निचला हिस्सा") कहता है। जब शैतान इन हिस्सों में अपने जबरदस्त प्रभाव का इस्तेमाल करना जारी रखता है, तो विश्वासी प्रार्थना के बिना विजय के अनुभव की उम्मीद नहीं कर सकता। आत्मिक लड़ाई देह में नहीं लड़ी जा सकती, जैसा कि पौलुस ने २ कुरिन्थियों १०:३-५ में विस्तार से बताया: “क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तो भी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। (क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।) सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।“

परमेश्वर पर बोझ डालना

“अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा” (भजन ५५:२२) मसीही को प्रार्थना में अपने बोझों को प्रभु के पास लाने का हर दिन अमल करना चाहिए। १ पतरस ५:८  में यूनानी क्रियाएँ वर्तमान काल में हैं, जो लगातार चल रही कार्रवाई का प्रतीक है। शैतान हमेशा दहाड़ता (ओरुओमाई/oruomai) रहता है; हमेशा घूमते (पेरापेटाओ/perapateo) हुए; हमेशा खोजते (जेटेओ/zeteo) हुए। वह इस खोज में कि "किसे फाड़ सके," आराम नहीं करता। शैतान इस संसार की व्यवस्था के हर हिस्से में पहल करने का प्रयास करता रहता है। वह परमेश्वर के संस्थानों पर हमला करता है, और यह चाहता है कि लोग उन्हें संसार के मापदंडों के द्वारा परिभाषित करें। यही कारण है कि प्रार्थना आत्मिक जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से, विश्वासी सचमुच मसीह के साथ काम करता है, जो लगातार पिता के सामने निवेदन करता रहता है। प्रार्थनाहीनता मसीही पर मसीह के कार्य में भाग लेने में रुकावट डालती है। सच यह है कि प्रार्थना की कमी परमेश्वर से अलगाव की भावनाओं को जगा सकती है। इब्रानियों १०:२५ और मत्ती २८:२०, और अन्य कई पंक्तियाँ बताती हैं कि स्थानिक तौर पर ऐसा नहीं हो सकता; मसीही जिस क्षण यीशु मसीह को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करता है, वह तुरन्त और हमेशा के लिए परमेश्वर का सन्तान बन जाता है। लेकिन अलगाव अक्सर अनुभव में महसूस किया जाता है। जब वह सफलतापूर्वक प्रार्थना में जीना बंद कर देता है, तब शैतान आसानी से टूटे सम्बन्ध की इस भावना को लेकर आता है। शैतान प्रार्थना में रुकावट लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। क्यों? इसलिए कि वह उसके राज्य पर प्रार्थना के प्रभाव से अच्छी तरह वाकिफ है। एक चीज जो वह नहीं होने देना चाहता, वह यह है कि मसीही नियमित प्रार्थना के जीवन को विकसित करे। वह जानता है कि प्रार्थना कमजोर इन्सानों को विजयंत से बढ़कर और इस जीवन में जय पाने में सक्षम बनाती है। इस प्रकार, प्रार्थना के द्वारा, शैतान नुकसान भुगतता है। यह पुरानी कहावत कितनी सच है: शैतान सबसे कमजोर सन्त को अपने घुटनों पर देखकर थरथराता है।

आराम मत करो

हे यरूशलेम, मैंने तेरी शहरपनाह पर पहरूए बैठाए हैं; वे दिन-रात कभी चुप न रहेंगे। हे यहोवा को स्मरण करने वालों, चुप न रहो, और, जब तक वह यरूशलेम को स्थिर करके उसकी प्रशंसा पृथ्वी पर न फैला दे, तब तक उसे भी चैन न लेने दो (यशायाह ६२:, ) निरन्तर प्रार्थना मे लगे रहो (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७) क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन मेरी डेवढ़ी पर प्रतिदिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खंभों के पास दृष्टि लगाए रहता है (नीतिवचन ८:३४) वाल्टर लुईस विल्सन ने अपने ‘बाइबिल के आदिरूपों के शब्दकोश’ में यह कहा है कि जागते रहना "ह्रदय के उस मनोभाव का प्रतीक है, जिसमें हमारा प्राण प्रभु को खोजता है, और मधुर संगति में उसके चेहरे को देखने और उसकी आवाज को सुनने की लगातार उम्मीद करता है।" परमेश्वर ऐसे विश्वासियों की तलाश करता है, जो प्रार्थना में जागेंगे और जो परमेश्वर की इच्छा पूरी होने तक जरा भी आराम न करेंगे। ऊपर दिया गया यशायाह का पद उन पहरुओं का जिक्र करता है, जो परमेश्वर को तब तक आराम न करने देंगे, जब तक यरूशलेम धरती पर स्थिर न हो जाए। यह उस आने वाले महान दिन की ओर इशारा कर रहा है, जिसका वर्णन यूहन्ना ने प्रकाशितवाक्य २१:१०,११ में किया है: और वह मुझे आत्मा में, एक बड़े और ऊंचे पहाड़ पर ले गया, और पवित्र नगर यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते दिखाया। परमेश्वर की महिमा उसमें थी, ओर उसकी ज्योति बहुत ही बहुमूल्य पत्थर, अर्थात बिल्लौर के समान यशब की नाईं स्वच्छ थी। १ थिस्सलुनीकियों ५:१७ में "निरंतर" यूनानी शब्द अडायलीप्तोस (Adialeiptos) से अनुवाद किया गया है। इस शब्द का अर्थ है "स्थायी, नित्य, अविराम।“ परमेश्वर की आज्ञा अब तक बदली नहीं है। उसे अभी भी वे विश्वासी चाहिए, जो प्रार्थना करना, जागे रहना और प्रार्थना के जवाब में किए गए काम का इन्तज़ार करना जारी रखेंगे। रोशनी और अन्धकार के राज्यों के बीच का युद्ध हर गुजरते दिन के साथ प्रचण्ड होता जा रहा है। जैसे पुराने ज़माने के लोग शहर की दीवारों के ऊपर बचाव की मंशा से नज़र रखने के लिए चौकीदार तैनात करते थे, वैसे ही परमेश्वर चाहता है, कि बुद्धि भरी सूझबूझ वाले विश्वासी जागते और प्रार्थना करते रहें।

निवेदन की ताकत

और मैंने उनमें ऐसा मनुष्य ढूंढ़ना चाहा जो बाड़े को सुधारे और देश के निमित्त नाके में मेरे सामने ऐसा खड़ा हो कि मुझे उसको नाश न करना पड़े, परन्तु ऐसा कोई न मिला (यहेजकेल २२:३०) मसीह के नाम में की गई किसी भी कोशिश की सफलता सीधी तौर पर उसके लिए की गई प्रार्थना की मात्रा पर निर्भर होती है। मिशनरियों को भेजने का क्या फायदा, यदि उनके लिए प्रार्थना न की जा रही हो? यदि भटके हुए लोगों के लिए प्रार्थना न की जाए, तो उन्हें जीतने में सफल होने की उम्मीद कोई कैसे कर सकता है? आज के समय में एक दरार के भरे जाने की जरूरत है। अक्सर, विश्वासियों को यह सवाल होता है: "मेरी छोटी सी प्रार्थना क्या फर्क ला सकती है?" जवाब है, "बहुत कुछ।" स्वयं मूसा ने तीन बार प्रार्थना की और इसराएल के राष्ट्र को उनकी अवज्ञा की वजह से नष्ट करने से परमेश्वर के हाथ को रोका (निर्गमन ३२:११-१४; ३२:३१-३२, गिनती १४:११ -२०)। प्रेरितों के काम १२ में, हेरोदेस ने पतरस को कैद किया। तुरन्त, कलीसिया प्रार्थना में जुट गया। इन प्रार्थनाओं के उत्तर के तौर पर, परमेश्वर ने उसकी जंजीरें ढीली करने और उसे जेल से बाहर लाने के लिए एक स्वर्गदूत भेजा। भले ही इसराइल ने राजा की माँग करने के द्वारा शमूएल और उसके पुत्रों को न्यायियों के रूप में खारिज कर दिया, फिर भी वह उस देश के लिए प्रार्थना करता रहा: "फिर यह मुझसे दूर हो कि मैं तुम्हारे लिये प्रार्थना करना छोड़कर यहोवा के विरुद्ध पापी ठहरूं; मैं तो तुम्हें अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूंगा" (१ शमूएल १२:२३) बाइबल के इन सभी उदाहरणों में असली लोग हैं, जो उस परमेश्वर से याचना कर रहे थे, जो प्रार्थना का उत्तर देता है। उनके पास कोई विशेष सूत्र नहीं था; वे बस अपने अनुरोधों को परमेश्वर के पास ला रहे थे। याकूब ४:२ कहता है, "तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं; तुम हत्या और डाह करते हो, ओर कुछ प्राप्त नहीं कर सकते; तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिये नहीं मिलता, कि माँगते नहीं।" कुछ लोग विभिन्न हालातों को देखते हुए अन्दरूनी लड़ाई से गुजरते हैं। वे उनके बारे में परमेश्वर से परामर्श करने में देरी करते हैं। परमेश्वर के पास मामलों को लेकर जाना कितना आसान है। प्रार्थना की कई परिभाषाएँ दी गई हैं, लेकिन एक बड़ी सटीक व्याख्या दिवंगत प्रचारक जॉन आर. राईस ने दी है, "प्रार्थना का मतलब माँगना है।" निवेदन की परिभाषा है - किसी और की ओर से माँगना। यीशु मसीह सबसे बड़ा निवेदक है। वह सभी विश्वासियों के लिए पिता से विनती करता है। पुराने नियम में, याजकों को लोगों की ओर से प्रार्थना करने की आज्ञा दी गई थी। मसीह के पास एक अपरिवर्तनीय याजकपद है, "इसीलिये जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये बिनती करने को सर्वदा जीवित है" (इब्रानियों ७:२५)। मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं (यूहन्ना १४:१२) यह कैसे है कि मसीही अपने उद्धारकर्ता से भी बड़े काम करने में सक्षम हैं? मसीह का निवेदन यह सम्भव बनाता है। यीशु उस पिता के पास गया, जिसके साथ वह एक है, जिससे उनके लिए निवेदन कर सके जो नए बनाए जाने के माध्यम से उसके साथ एक कर दिए गए हैं (यूहन्ना ३:३)। अब, मसीही पिता से माँगने और प्राप्त करने की अपेक्षा कर सकते हैं। विश्वासियों की आत्मिक सफलता के लिए उनके द्वारा निवेदन जरूरी है। मैथ्यू हेनरी ने इस सिद्धांत पर टिप्पणी करते हुए कहा, "मसीह इसलिए देता है 'क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं। और चूंकि मैं जाता हूँ, यह अवश्य होगा कि तुम इस तरह की सामर्थ्य पाओगे। क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ, मैं तुम्हें ऐसी सामर्थ्य देने की क्षमता रखूँगा।” निवेदन विश्वासी द्वारा मसीह के साथ सहयोग करने का एक उच्चतम तरीका है। निवेदन भरी प्रार्थना की तुलना में किसी के जीवन में और कोई बेहतर निवेश नहीं किया जा सकता। निवेदन से, सिर्फ जिसके लिए प्रार्थना की जा रही है, उसका ही फायदा नहीं, बल्कि प्रार्थना करने वाले के जीवन में बहुत कुछ हासिल होता है। वाचमैन नी ने लिखा, "प्रार्थना के दो छोर होते हैं: एक छोर उस व्यक्ति में होता है, जो प्रार्थना करता है और दूसरा छोर उस बात या व्यक्ति में होता है, जिसके लिए प्रार्थना की जा रही है। अक्सर दूसरे छोर के बदले जा सकने से पहले प्रथम छोर को परिवर्तन से गुजरने की जरूरत होती है।" निवेदन की क्षमता के बारे में सोचो। यह सन्सार पाप के प्रभाव में कराह रहा है। नशा, अपराध, और अनैतिकता कल्पना से कहीं ज्यादा बढ़ चुके हैं। धर्म परमेश्वर के वचन की सच्चाई पर बहस करता और चुनौती देता है। जैसा यशायाह ५९:१४ में कहा गया है, सच तो यह है कि आज, कुछ हद तक सच्चाई को बाजार में गिरने दिया गया है। इसका मतलब यह है कि लोगों ने उसे सांसारिक सोच और जीवनशैली के पूरक करने के लिए उसमें नया रंग दिया, हलका किया और तोड़ मरोड़ दिया है। इस धारा को कौन रोक सकता है? इन झुकावों को कैसे पलटा जा सकता है? बाइबल का जवाब निवेदन है। परमेश्वर हमेशा उन लोगों को दर्शन देने के लिए तैयार रहता है, जो खुद को प्रार्थना में इस संसार की समस्याओं का समाधान करने के लिए जागृत करते हैं। तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन हो कर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी हो कर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा। अब से जो प्रार्थना इस स्थान में की जाएगी, उस पर मेरी आंखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगे (२ इतिहास ७:१४,१५)

निष्कर्ष

सारी प्रार्थना या मसीह के नाम पर की गई किसी भी सेवा का मुख्य ध्येय परमेश्वर की महिमा है। हम मत्ती ६:९-१३ में प्रभु की प्रार्थना पर वापिस ध्यान देकर यह सिद्धांत देखते हैं। प्रार्थना की रूपरेखा परमेश्वर को जानने और उसकी पहचान से शुरू और समाप्त होती है: सो तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो; “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए (पद ९)। और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं।आमीन (पद १३) जॉर्ज म्यूलर ने अपनी अनाथालय की सेवकाई के लिए प्रार्थना में हृदय का यह उद्देश्य अपनाया था: "इस काम का पहला उद्देश्य यह था, कि परमेश्वर इस सच के द्वारा ऊँचा उठाया जाए, कि मेरी देखरेख में उन अनाथ बच्चों को उनके जरूरत की सब चीजें मिलीं, केवल प्रार्थना और विश्वास के द्वारा, मेरे या मेरे साथी कार्यकर्ताओं द्वारा किसी से भी माँगे बिना। इससे यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर अब भी विश्वासयोग्य है, और अब भी प्रार्थना सुनता है।" जब प्रार्थना में विश्वासी की प्रेरणा परमेश्वर की महिमा होती है, तो प्रार्थना के गलत होने की कोई समस्या नहीं होती। वह परमेश्वर की बाट जोहने में धैर्यवान होता है। वह मसीह के साथ बना रहता है, यह जानकर कि उसका जवाब उस उचित समय पर आएगा, जब परमेश्वर सबसे अधिक महिमा प्राप्त करेगा। मसीही को एहसास होना चाहिए कि परमेश्वर एक जीवित परमेश्वर है, और वह अपनी विश्वासयोग्यता को साबित करना पसन्द करता है। उम्मीद और उसके वचन में विश्वास के साथ प्रार्थना में उसके पास जाओ। वह अपने वादों की ओर विश्वासयोग्य रहेगा। वह जवाब देगा, जिससे उसका नाम ऊँचा हो।
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