एकता का सिद्धांत
Translated from the booklet by Pastor Carl H. Stevens, of www.ggwo.org titled, 'The Principle of Unity.'

परिचय

मसीही धर्म के बुनियादी सिद्धांत उद्धारकर्ता में हमारे विश्वास के अलावा और भी कई चीजें बताते हैं। जिन्दगी का हर नियम - वे नियम जो सितारों को जगह में रखते हैं, जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखते हैं, जो हवाई जहाज को उड़ान भरने देते हैं, और न्याय और वाणिज्य के दिशा-निर्देशों की स्थापना करते हैं – सब स्पष्ट रूप से पवित्रशास्त्र में बताए गए हैं। जब परमेश्वर के वचन के सिद्धांतों का अच्छी तरह से सम्मान और बिना ढोंग के आदर किया जाता है, तब हम शक्ति, बुद्धि और चमत्कारी प्रावधानों की बारिश पाते हैं। उदाहरण के लिए, जब हमें यह पता चलता है कि परमेश्वर हमसे व्यक्तिगत रूप से प्रेम करता है, तब हम यह भी समझ पाते हैं कि उसने उन विश्वासियों के लिए एक आशिष की आज्ञा दी है, जो आपस में एकता में निवास करते हैं। तब न केवल हम अपने पड़ोसियों से स्वयं जैसा प्रेम करते हैं, बल्कि दूसरों की सेवा करने से आने वाले भरपूर आनंद का अभिषेक पाते हैं। इतना ही नहीं, अब हम आनन्दित दृष्टिकोण के साथ तब भी सेवा करते रह सकते हैं, जब शारीरिक रूप से थके हुए होते हैं, क्योंकि यहोवा का आनन्द हमारा दृढ़ गढ़ बन जाता है (नहेमायाह ८:१०)। लेकिन जब तक किसी व्यक्ति के विश्वास-प्रणाली की नींव नहीं हिलाई जाती (इब्रानियों १२:२७-२८), तब तक वह पवित्र आत्मा के प्रकाशन में उन सिद्धांतों द्वारा लाई गई शक्ति और स्थिरता की भरपूरता को पूरी तरह से नहीं समझ सकता। भजन १३३ का यह अध्ययन इस पद के सटीक अर्थ को बाहर लाने में मदद करता है, जो इतनी खूबसूरती से यह व्यक्त करता है कि परमेश्वर मसीह की देह में एकता के सिद्धांत को बहुत महत्व देता है।

अध्याय एक

जहाँ आशिष बरसे वहाँ रहो

"देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें! "यह तो उस उत्तम तेल के समान है, जो हारून के सिर पर डाला गया था, और उसकी दाढ़ी पर बह कर, उसके वस्त्र की छोर तक पहुंच गया। "वह हेर्मोन की उस ओस के समान है, जो सिय्योन के पहाड़ों पर गिरती है! यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है" (भजन १३३)। हालांकि यह भजन मसीह के जन्म से कई सैकड़ों साल पहले लिखा गया था, फिर भी इसमें एकता के सिद्धांत का खूबसूरत वर्णन पृथ्वी पर मसीह की देह, अर्थात कलीसिया की व्यवस्था और संचालन के बारे में परमेश्वर की सोच का खुलासा करता है। जब परमेश्वर के लोगों के बीच में एकता बढ़ती है, तब यीशु मसीह आशिष की आज्ञा देता है। यह आशिष की वह खास जगह है, जहाँ परमेश्वर के लोगों को बस "सामान्य" अनुग्रह ही नहीं, बल्कि और बहुत कुछ मिलता है। सामान्य अनुग्रह सभी इन्सानों को परमेश्वर द्वारा दी गई वह कृपा है, जो उनकी किसी भी आत्मिक हालत के बावजूद होती है (मत्ती ५:४५)। चाहे यह साँस लेने के लिए ताजा हवा का उपहार या एक आरामदायक जीवन शैली के फायदे हों। कई मसीही क्रूस के अधीन होकर नहीं जीते हैं, फिर भी सामान्य अनुग्रह के कुछ समय के आशिष का आनंद उठाते हैं, जबकि वे रूपए पैसे या घरेलू सुरक्षा या अन्य आम सहारों की प्रणाली पर निर्भर करते हैं। भजन १३३ में जिक्र आशिष एक आदेशित आशिष है, जो अस्थायी कुछ समय की सुरक्षा से बढ़कर होता है। यह आशिष एक जीवन का मार्ग, जीवन में एक व्यक्ति (यीशु मसीह), जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण, और जीवन में एक ऐसी योजना है, जिसमें परमेश्वर उसके लोगों के आशीषित होने का आदेश देता है। भजन १३३ की पहली पंक्ति में, "देखो" के लिए इब्रानी शब्द हिन्नेह (hinneh)  है। यह मन एक लगाकर मानसिक रूप से किसी चीज को देखने, सटीकता के साथ निरीक्षण करने और ईमानदारी से सर्वेक्षण करने का उल्लेख करता है। इसका मतलब है कि विश्वासी एकता के खिलाफ आने वाली बाधाओं से परे देखता हुआ मसीह की ओर देखता है। वह यह कहकर मानवीय दृष्टिकोण को व्यक्त नहीं करता, "हाँ, मैं माफ कर दूँगा, लेकिन मैं भूल नहीं सकता।" इसकी बजाय, वह दूसरों को बिना शर्त के क्षमा करने का सिद्धांत लागू करता है। "तब पतरस ने पास आकर, उस से कहा, हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं, क्या सात बार तक? यीशु ने उस से कहा, मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन सात बार के सत्तर गुने तक" (मत्ती १८:२१, २२)। इसके अलावा भजन १३३:१ में, "कैसे" इब्रानी शब्द माह (mah) है, और यह एक परीक्षा का शब्द है। इसका मतलब यह है कि जब हम सटीकता के साथ निरीक्षण करते हैं, तब हम सोच समझ कर उसके हर पहलू को मानसिक रूप से परमेश्वर के नजरिये से जाँचते हैं। तब हम किसी भी चीज को अपनी समझ में रुकावट लाने का मौका नहीं देते हैं। "भली" शब्द टाऊब (towb) है, जो उस चीज की बात करता है, जो सुंदर, गुणी, ईमानदार, सही, उपयुक्त, उपयोगी, समृद्ध, भरपूर, बहुमूल्य, और अनुकूल है। “भली'” का अर्थ यह है कि वह चीज विश्वासी के जीवन में जँचती है और उसे लाभ देते हुए अन्दर से खुश करती है। समान मन होने, और एकता में एक साथ रहने में हमारा बहुत फायदा है। "मनोहर" शब्द नईम (na'iym) है, जो अपने स्रोत और गुण की वजह से हमारी इन्द्रियों में अत्यधिक पसन्दीन, अद्भुत मीठी और प्यारी चीज का जिक्र है। एकता सुंदर, रमणीय, विनीत, और भरपूर होती है। "भाई लोग" एख ('ach) एक ही पिता होने की एक पारिवालिक समरूपता की बात करता है। यह शब्द यीशु मसीह में लहू से खरीदे गए विश्वासियों के बीच स्नेह का वर्णन है। "आपस में" और "मिले रहना" दोनों वाक्यांश यखाद (yachad) हैं। इब्रानी व्याकरण में यह एक कल साधारण क्रिया है। इसका मतलब होता है, "बैठ जाना, बने रहना और अपनी बुलाहट के स्थान पर हमेशा बसे रहना।" कल साधारण क्रिया का उपयोग यहाँ यह सिखाता है कि विश्वासियों को परमेश्वर के लोगों के साथ बुलाहट में निवास करते जाना है। जोर सिर्फ एक ही जगह में रहने पर नहीं है, बल्कि एक ही मन रखने पर भी है।

कीमती मरहम की तरह

भजन १३३:२ में मसीह की देह "उत्तम तेल के समान है, जो हारून के सिर पर डाला गया था, और उसकी दाढ़ी पर...।" "उत्तम तेल" (या अभिषेक का तेल) और "हेर्मोन की ओस" दोनों ताज़गी का प्रतीक हैं। यह ध्यान देना जरूरी है, कि लैवव्यवस्था ८:१०-१२ में, तेल हारून को पवित्र करने के लिए उसके सिर पर डाला जाता था। "तब मूसा ने अभिषेक का तेल लेकर निवास का और जो कुछ उसमें था उन सब को भी अभिषेक करके उन्हें पवित्र किया। और उस तेल में से कुछ उसने वेदी पर सात बार छिड़का, और कुल सामान समेत वेदी का और पाए समेत हौदी का अभिषेक करके उन्हें पवित्र किया। और उसने अभिषेक के तेल में से कुछ हारून के सिर पर डालकर उसका अभिषेक करके उसे पवित्र किया" (लैवव्यवस्था ८:१०-१२)। पवित्र आत्मा की परिपूर्णता परमेश्वर द्वारा दी गई सेवकाई की बुलाहट के लिए विश्वासी को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक है। पुराने नियम में, तेल का अभिषेक किसी खास सेवकाई के लिए अलग किए जाने का एक प्रतीक था। मूसा ने तेल के द्वारा हारून का अभिषेक किया, जिसके द्वारा हारून का जीवन परमेश्वर की योजना में उसकी बुलाहट के लिए अलग किया गया। इसके अलावा, दाऊद इस्राएल का राजा होने के लिए अभिषेक किया गया, और बाद में यहूदा के गोत्र का राजा होने के लिए। एलिय्याह नबी होने के लिए अभिषेक किया गया। कल्वरी के कारण, लहू से खरीदे गए हर विश्वासी ने अपने जीवन में पवित्र आत्मा का अभिषेक ग्रहण किया है (१ यूहन्ना २:२०, २७)।

परमेश्वर आशिष की आज्ञा देता है

इब्रानी भाषा में "ठहराई" के लिए शब्द त्सवाह (tsavah) है। परमेश्वर अपने लोगों के लिए निर्मित अपने आशिष को तय करता, इंतजाम करता, स्थापित करता, नियंत्रित करता, और उसकी रक्षा करता है। परमेश्वर आज्ञा देता है कि हम आशीषित हों, और वह हमें आशिष देने के लिए लोगों, दूतों, और प्रावधानों को भेजता है। वह आशिष जीवन (खाय / Chay)  है, जिसका बसन्त ऋतु की तरह - ताजे और नए – पुनर्जीवन के ताजे बहते पानी के झरने के रूप में वर्णन किया गया है। लेकिन यह एक मौसम से भी बढ़कर है: "यहाँ तक ​​कि सदा का जीवन"। "सदा" शब्द ओलाम (olam) है, और यह लंबे समय के अनंत काल, अर्थात अतीत के अनंतकाल से भविष्य के अनंतकाल तक की बात करता है। वह क्या चीज है, जो किसी कलीसिया का एकता में परमेश्वर की योजना पर अमल करने का कारण बनती है? शुरुआती कलीसिया में, विश्वासी एक ह्रदय और एक मन के साथ पवित्र आत्मा के वादे की पूर्ति के लिए इंतजार में ऊपरी कमरे में इकट्ठे हुए (प्रेरितों के काम १:१४)। प्रेरितों के काम २:१ यह लिखता है कि "वे सब एक जगह इकट्ठे थे।" प्रेरितों के काम २:४ के अनुसार, वह वादा पिन्तकुस्त के दिन पूरा किया गया, जब परमेश्वर ने उनमें बसने के लिए पवित्र आत्मा को भेजा। तब परमेश्वर का वचन उनके ह्रदय पर राज्य करने लगा, सकारात्मक निर्णय उनकी इच्छाशक्ति पर, और विनम्रता उनकी क्षमता पर शासन करने लगी। परमेश्वर के वचन के लिए भूख उनके दिमाग का प्रभुत्व कर रही थी, और अनुग्रह के वचन की ओर उनका आदर और अपनाना उनके विश्वास में उन्हें मजबूत करने में सक्षम था (प्रेरितों के काम २०:३२)।

विभाजन से बचाव करना

शैतान लगातार मसीह की देह में सदस्यों के बीच एकता को विभाजित करने के लिए जो बन पड़ता है करता है। सबसे पहले, वह दिलों को विभाजित करने की कोशिश करता है (होशे १०: २)। फिर, वह मन में फूट डालने की कोशिश करता है (याकूब ४:८), क्योंकि वह जानता है कि अगर किसी व्यक्ति के दो स्वामी होते हैं या जो व्यक्ति दुचित्ता होता है, वह अपनी सारी बातों में चंचल होता है (याकूब १:८)। फिर भी, हालांकि शैतान ने उनकी एकता में बाधा डालने के लिए जवाबी हमले की योजना बनाई हो, जब विश्वासी क्रूस पर जाकर प्रार्थना में परमेश्वर का ईश्वरीय प्रावधान मांगते हैं, तब परमेश्वर प्रसन्न होता है। यह उसकी इच्छा है कि हम एक ह्रदय, एक आत्मा, एक मन, एक दर्शन, और एक विश्वास में आत्मिक वरदानों की विविधता का उपयोग करते हुए लगे रहें। फरीसियों और सदूकियों द्वारा उन्हें उनके प्रचार की वजह से धमकी सुनने के बाद, चेले ऊपरी कमरे में प्रार्थना करने के लिए लौट आए: "जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहां वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र [आत्मा] से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे। और विश्वास करने वालों की मण्डली एक चित्त और एक मन की थी" (प्रेरितों के काम ४:३१-३२अ) ।

धरती पर स्वर्ग

चेले साहस के साथ परमेश्वर का वचन सुनाते रहे, क्योंकि वे यीशु के साथ रहे थे, और "उन सब पर बड़ा अनुग्रह था" (पंक्ति ३३)। अपने स्वर्गीय पिता को उसकी प्रार्थना में, यीशु ने तीन बार यह प्रार्थना की, कि उसके लोग उस एकता में हिस्सा लें जो मसीह और उसके पिता के बीच जगत के अस्तित्व के पहले से थी: "हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा कर, कि वे हमारी नाईं एक हों ... जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा। और वह महिमा जो तूने मुझे दी, मैंने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं" (यूहन्ना १७:११ब, २१, २२)। परमेश्वर ने अपने लोगों के बीच इस तरह की एकता का प्रावधान किया है। "हे भाइयो, मैं तुमसे यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो" (१ कुरिन्थियों १:१०)। इसके अलावा, फिलिप्पियों २:२-५ उस एकता का वर्णन करता है, जो तब संभव होती है, जब विश्वासी विनम्र और एक मन के होते हैं: "तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। ........ जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।” "एक मन के होना" का मतलब सोच में एक जैसी बात का होना है, जबकि जरूरी नहीं कि एक ही क्षमता या एक ही विचारों का होना। जब हम एक मन के होते हैं, तब सभी विश्वासी पवित्र आत्मा द्वारा उपयुक्त समझ के साथ अनुग्रह की एक ही बात में हिस्सा ले सकते हैं।

अध्याय दो

एकता में बाधा डालने वाली चीजें

मसीह की देह में एकता के खिलाफ पहली बाधा पक्षपात की आत्माओं का प्रभाव है। पक्षपात की आत्माएँ पवित्र आत्मा की शख्सियत के असर की बजाय व्यक्तित्वों का प्रभाव सामने लाती हैं। पक्षपातपूर्ण दलों तक गिर जाने वाले गुटों द्वारा प्रदर्शित, यह आत्माएँ मसीह की देह की एकता में बाधा डालती हैं। शुरुआती कलीसिया में, पौलुस कुरिन्थियों को आपस में विभाजन की वजह से डाँट लगाता है, क्योंकि वहाँ पर कई विश्वासी यीशु मसीह के पीछे चलने की बजाय इन्सानों के पीछे चलने लगे थे (१ कुरिन्थियों ३:४)। पक्षपात की आत्माओं में बाहरी तौर की शर्तभरी एकता होती है जो सहानुभूति और भावुकता वाले रिश्तों पर आधारित होती है। यह सतही एकता मसीह की देह की वास्तविक एकता को धुंधला कर सकती है। पक्षपात की आत्माएँ उन लोगों में हमेशा आत्म-रक्षा तंत्र और ग्लानि पैदा करते हैं, जो अज्ञान के द्वारा उनसे प्रभावित हैं। पक्षपात की आत्माएँ घमण्ड और स्वाबलंबन को बढ़ावा करते हैं, शैतान के राज्य की उन्नति कराते हैं, और सार्थक एवं आत्मिक संबंधों के विकास को रोकते हैं। पक्षपात की आत्माओं से बचने के लिए, एक व्यक्ति को मसीह में कल्वरी-केंद्रित, श्रेणीगत उपदेश से मन को भरना जरूरी है - अर्थात परमेश्वर के वचन के विशेष सत्य के विषयों को विभिन्न हालातों में काम के लिए इकट्ठा करना आवश्यक है। जब एक विश्वासी टूटेपन में और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होता है, तब वह पक्षपात की आत्माओं को पहचानता है, जो अन्यथा उसे उस जगह से रोक सकती हैं, जहाँ परमेश्वर उसे आशीषित होने का आदेश करता है। परमेश्वर हर फलवन्त कलीसिया पर आशिष की आज्ञा करता है, जो प्रेम करने की आज्ञा का पालन और सारे जगत में जाकर सुसमाचार सुनाते हुए (मत्ती २८:१९, २०) महाआज्ञा को पूरा करता है।

व्यक्तित्व पर आधारित तालमेल एकता को रोकता है

मसीह की देह में एकता में दूसरी बड़ी बाधा सम्बन्धों में मसीह-केन्द्रित सिद्धान्तिक तालमेल की बजाय व्यक्तित्व पर आधारित पसंद या तालमेल है। व्यक्तित्व आधारित तालमेल व्यक्तित्व संबंधी प्रशंसा पर आधारित दोस्ती है। यह दूसरों में मसीह को पसन्द करने से ज्यादा अपनी स्वाभाविक वरीयता को ऊंचा उठाना है। अन्य विश्वासियों के साथ आम हितों पर सहभागिता सुखद तो होती है; पर आम हित अपने आप में एकता के लिए आधार नहीं हो सकते। अस्थायी नींव पर आधारित सम्बन्ध जब समय बदलता है, तब दिखने वाली बाहरी एकता को खो देते हैं। जो मसीही सैद्धांतिक तालमेल का आनंद उठाते हैं, वे परमेश्वर के वचन और वचन के उपदेशों में संगति करना सीखते हैं। जब हम अपने जीवन के ख़ास विवरणों के लिए पवित्रशास्त्र को लागू करना सीखते हैं, तब हम परमेश्वर के अनुग्रह, प्रेम, शक्ति, करुणा, बचाव, काम, प्रावधान और वादों की सराहना करना शुरू करते हैं। आम वार्तालाप शाश्वत बन जाते हैं, और सबकुछ जो हम करते हैं, वह परमेश्वर की महिमा के लिए करते हैं (१ कुरिन्थियों १०:३१)। व्यक्तित्व सम्बन्धी तालमेल से कैसे बचा जा सकता है? विश्वासियों के तौर पर, हम मसीह की देह में अपने सभी संबंधों में वचन पर आधारित संबंध विकसित करने का उद्देश्य करते हैं। ऐसे लाभहीन समय जो बहुत सारे शब्द बोलने में बिताए गए थे, अब परमेश्वर के समक्ष ह्रदय को तैयार करते हुए अध्ययन और प्रार्थना के समय में बदल जाते हैं (१ थिस्सलुनीकियों ४:११)। कई विश्वासी यदि सिर्फ प्रेम में सैद्धांतिक संबंध रखेंगे, तो वे अपने कई तथाकथित दोस्तों को खो देंगे। किसी सम्बन्ध में सैद्धांतिक तालमेल का मतलब यह है कि इन लोगों के बीच मसीह के प्रेम और परमेश्वर के वचन के लिए एक ऊँचा आदर है। लेकिन व्यक्तित्व तालमेल वाले रिश्तों में, बातचीत जीवन की आम बातों के आसपास घूमती है। उन चीजों के बारे में कभी कभी बात करना ठीक है, लेकिन परमेश्वर के वचन में पाए जाने वाले प्रावधानों से बढ़कर उन पर लगातार लगे रहना निश्चित रूप से आत्मिक विकास में बाधा डालेगा।

विषयत्मकता एकता में बाधा डालती है

मसीह की देह में ईश्वरीय एकता की ओर तीसरी बड़ी बाधा विषयत्मकता है। कई मसीही अपने निर्देष-तन्त्र में विषयत्मकता से त्रस्त हैं। यह तब होता है, जब कोई व्यक्ति अपने मनोवैज्ञानिक वातावरण से स्वेच्छा से अज्ञात, अदृश्य खयालों को अपनी भावनाओं पर कब्जा करने की अनुमति देता है। पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर के वचन के माध्यम से प्रकट किए गए वस्तुनिष्ट सत्य के ईश्वरीय मानक पर निर्भर होने की बजाय, उसकी भावनाएँ (जो कभी सोचने के लिए नहीं, लेकिन परमेश्वर के विचारों की सराहना करने के लिए रची गईं थी) उसके मन को नियंत्रित करती हैं, कि उसे कैसे सोचना है। विषयत्मकता परमेश्वर के साथ सोचने में अज्ञानता की वजह से हो सकती है, या यह खुद को ऊँचा उठाने या घमण्ड के दायरे से एक जोरदार अहम् की अभिव्यक्ति हो सकती है। अक्सर इसके लक्षण वे अनुभूतियाँ हैं, जो मन के द्वारा सत्य से बाहर ग्रहण की जाती हैं। कुछ व्यक्ति वह अजनबी आवाज सुनते हैं, जो उन्हें परमेश्वर के वचन में पाए जाने वाले परम सत्य सिद्धांतों से उलटे रास्ते का पालन करने का निर्देश करती है। विषयत्मकता हमेशा भावनाओं को चारा डालती है। विषयत्मकता पर विजय पाने और प्रभु और एक दूसरे के साथ के साथ असली एकता में प्रवेश करने के लिए, एक विश्वासी को लगातार अपने ह्रदय में परमेश्वर का वचन रखना होगा, ताकि वह परमेश्वर के विरुद्ध पाप न करे (भजन ११९:११)। परमेश्वर का वचन उसके पांव के लिये दीपक, और मार्ग के लिये उजियाला (भजन ११९:१०५) हो जाना चाहिए। जब वह परमेश्वर के वचन को अपने ह्रदय में छिपाता है, वह वचन के द्वारा अलग किया जाता है, क्योंकि वचन उसके मन में अधिकाई से बसता है। उसका निर्देष-तंत्र क्रूस बन जाता है। विश्वासी वचन के द्वारा पवित्र बनाए जाते हैं, क्योंकि वचन सत्य है (यूहन्ना १७:१७)। जब भी वह गलती करता है, तब वह मनफिराव का उपयोग करके (१ यूहन्ना १: ९) परमेश्वर के मुख से आए प्रत्येक वचन के द्वारा जीवित रहना (मत्ती ४:४) सीखता है। विषयत्मकता से बचने के लिए, विश्वासी को परमेश्वर के वचन के एक निरन्तर आहार पर होना चाहिए। जब कोई ऐसा विचार आता है, जो सत्य के विरोध में ऊँचा उठता है, तब उसका खण्डन करो (२ कुरिन्थियों १०:५) और मसीह को एक झन्डा खड़ा करने दो (यशायाह ६२:१०)। पवित्र आत्मा के अनुग्रह और प्रेम में वस्तुनिष्ठ सत्य का प्रयोग विषयत्मकता को दूर करता है।

स्वाभाविक पसन्द एकता को रोकती है

स्वाभाविक पसंद एक और पहलू है, जो मसीह की देह में एकता को रोकता है। स्वाभाविक पक्षपात में हर वह इच्छा शामिल है, जो परमेश्वर के वचन के बाहर से निकलती है (नीतिवचन १९:२)। स्वाभाविक पसन्द परमेश्वर की ओर हमारी नजर को सीमित करती है और हमारे द्वारा अपने प्राकृतिक ह्रदय की इच्छाओं से तालमेल बैठाने के लिए परमेश्वर के वचन की निजी व्याख्या करने का कारण बनती है। अपने दिल की स्वाभाविक इच्छाओं का अनुसरण हमें परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा के विपरीत एक जीवन शैली चुनने का मौका देता है। वह व्यक्ति ईश्वरीय उपदेशों की नींव से अपने तर्क का तालमेल करने की बजाय अपने इन्सानी तर्क के द्वारा सच्चाई से समझौता करना शुरू कर देता है। स्वाभाविक पसन्द हमेशा आत्म-केन्द्रित होने को बढ़ावा देती है। विश्वासी यीशु मसीह के क्रूस और पवित्र आत्मा की स्वतंत्रता द्वारा भरे जाने से अपने जीवन के बचाव के ऐसे तरीके से बच सकता है, जिससे वह महिमा से महिमा में बढ़ सके (२ कुरिन्थियों ३:१८ब)। हम परमेश्वर के वचन के ईश्वरीय मार्गदर्शन अधीन होने के द्वारा स्वाभाविक पसन्द पर काबू पा सकते हैं। "हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में हैं; उसने जो चाहा वही किया है" (भजन ११५:३)। परमेश्वर की एक सम्पूर्ण मर्जी होती है, और विश्वासी को अपने जीवन के लिए परमेश्वर की उस सम्पूर्ण मर्जी की ओर समर्पित करना है। यीशु मसीह हमेशा अपने वचन के माध्यम से हमारी स्वाभाविक पसन्द को जड़ से उखाड़ता है। इसलिए, परमेश्वर के वचन पर ध्यान दो और पवित्र आत्मा द्वारा परमेश्वर की सम्पूर्ण मर्जी में ले जाए जाओ।

अध्याय तीन

तेल: एकता के लिए परमेश्वर का नुस्खा

"तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना" (निर्गमन २९: ७)। "फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ ले कर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़क देना; तब वह अपने वस्त्रों समेत और उसके पुत्र भी अपने अपने वस्त्रों समेत पवित्र हो जाएंगे" (निर्गमन २९:२१)। "तू मुख्य मुख्य सुगन्ध द्रव्य, अर्थात पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार पांच सौ शेकेल अपने आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्थात अढ़ाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर, और पांच सौ शेकेल तज," (निर्गमन ३०:२३)। तेल से अभिषेक मसीह की देह में एकता के लिए एक ईश्वरीय नुस्खा है। हारून के सिर पर सिर्फ तेल का इस्तेमाल नहीं होता था, लेकिन हम निर्गमन २९:२१ में देखते हैं कि तेल लहू के साथ मिलाया और उस पर छिड़का जाता था। और निर्गमन ३०:२३ में, मूसा को परमेश्वर के सटीक आदेश के अनुसार लगभग एक सेर उच्च गुणवत्ता वाले खुशबूदार तेल का मिश्रण महायाजक के सिर का अभिषेक करने में इस्तेमाल के लिए बनाना पड़ा था। उस समय तेल एक ख़ास मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता था, और उसे और किसी काम के लिए कभी इस्तेमाल नहीं किया जाना था। यह सच किसी व्यक्ति के जीवन को परमेश्वर के लिए अलग करने में तेल के अभिषेक की पवित्रता समझाता है। यीशु मसीह के द्वारा विश्वासी को दिए गए अभिषेक के तेल की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती। परमेश्वर की दृष्टि में हर विश्वासी की बुलाहट अनमोल है। निर्गमन २९:७ में तेल सिर तक ही सीमित नहीं रह सकता था; यह याजक के सिर पर उड़ेला जाता था, ताकि उसके पूरे शरीर पर बह जाए। जब विश्वासियों में एक दूसरे के साथ ईश्वरीय एकता होती है, तब ऊपर से नीचे पवित्र आत्मा उनके माध्यम से प्रवाह करता है और वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ परमेश्वर का जीवन प्रकट होता है ।

परमेश्वर पक्षपाती नहीं है

व्यवस्थाविवरण १०:१४-१९ में एक सुंदर सिद्धांत है। इसमें, परमेश्वर हमें अजनबी से प्रेम करने के लिए कहता है, क्योंकि हम भी अजनबी थे, जो उसके महान प्रेम की वजह से बाहर बुला लिए गए। वह पक्षपाती नहीं है, बल्कि वह ह्रदय को देखता है। परमेश्वर का अनुग्रह दोष और कमजोरी से बहुत ऊपर तक फैलता और पहुँचता है। हम विश्वास से परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, और वह हमारी ओर से काम करता है। उद्धार मानवीय भलाई पर निर्भर नहीं होता है; यह केवल परमेश्वर के अनुग्रह पर निर्भर करता है। कुलुस्सियों ३:१०-११ में, परमेश्वर ने अपराधियों और कर्जदारों को मसीह की देह में भाइयों के रूप में शामिल कर लिया। हम विश्वास के द्वारा अनुग्रह से पवित्र आत्मा का तेल ग्रहण करते हैं। फिर भी, परमेश्वर की योजना की ओर हमारी आज्ञाकारिता यह निर्धारित करती है, कि किस सीमा तक हम आशीषित होंगे। विश्वासी को उस पर तेल के प्रवाह होने के लिए अपनी बुलाहट की जगह में होना जरूरी है। जब हम एकता के इस सिद्धांत का अध्ययन करते हैं, तब यह सीखते हैं कि तेल में चंगाई की शक्ति होती है। यह तेल विशेष तरह के घटकों से बनकर अनोखा था। हारून के बागे पर नीचे की ओर फैलते हुए, यह चंगाई लेकर आता था। चंगाई हमेशा प्रेम, एकता और अपनेपन के माध्यम से आती है। जब कोई विश्वासी विभाजन और शैतान की रणनीति की ओर परमेश्वर को कार्य करने देता है, तब परमेश्वर उदासीनता का भी हल निकाल देता है। जब विश्वासी आपस में एकता में रहते हैं, तो ठण्डापन, भय, असंतोष, और कड़वाहट नष्ट हो जाते हैं। इफिसियों ४:१-३ में बाइबल कहती है कि हमें “मेल के बन्ध में आत्मा की एकता रखने का यत्न" करते हुए सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे को सहते हुए अपनी बुलाहट के योग्य चलना चाहिए। आत्मा से परिपूर्ण विश्वासी जो यीशु मसीह और परमेश्वर के वचन से अपना अभिषेक पाता है, वह प्रेम के दृष्टिकोण के साथ भाइयों को सह लेता है। वह आत्मा की उस एकता बनाए रखने का प्रयास करता है, जो शांति के बंधन में पहले से ही स्थापित कर दी गई है। इफिसियों ४:३२ हमें "एक दूसरे पर कृपालु, और करूणामय होना, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में हमारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही एक दूसरे के अपराध क्षमा करना" सिखाता है। यह पंक्ति हमारे बुलाहट के अभिषेक में बने रहने के अनुभवात्मक परिणामों के बारे में बोलती है।

अनुग्रह, अद्भुत अनुग्रह!

लोगों के लिए कभी हार मत मानो! वे मसीह की दया और करुणा ग्रहण करने के पात्र हैं। यहाँ निहित है चंगाई का तेल, परमेश्वर की शक्ति, और परमेश्वर का प्रेम जो हमें दूसरों को असीमित क्षमा देने के लिए प्रेरित करता है। जहाँ विश्वासी आपस में एकता में रहते हैं, वहाँ परमेश्वर आशिष की आज्ञा देता है! "जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए" (१ पतरस ४:१०)। "कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुनने वालों पर अनुग्रह हो" (इफिसियों ४:२९)। सम्पूर्ण कर्म वाले विश्वासियों के तौर पर, हम परमेश्वर का नाना प्रकार का अनुग्रह देते हैं। वह अनुग्रह पाने वाले पर निर्भर नहीं है। अनुग्रह देने वाले पर निर्भर होता है, और कभी भी पाने वाले पर नहीं। और अब, चूँकि हमने ऐसा अनुग्रह पाया है, हम जब बोलते हैं तो अनुग्रह देते हैं। भजन १३३:२ में, कीमती तेल हारून के वस्त्र के छोरों तक नीचे बहता है। "छोर" इब्रानी में पेह (peh) है, और यह मुंह या खुलाव या किनारे की बात करता है। यहाँ इस पंक्ति का एक सुंदर अनुप्रयोग है: अभिषेक का तेल हमारे नीचे बहता हुआ मुंह तक आकर हमारी बातों को प्रभावित करता है। छोर मसीह की देह के किनारे के हिस्सों का प्रतीक है। जब परमेश्वर के लोग परमेश्वर के वचन का पालन करना शुरू करते हैं, तब तेल नियंत्रण ले लेता है और शैतान विश्वासियों पर रुकावट लाने से रोक दिया जाता है। चूँकि मसीह ने हमें तब ग्रहण किया, जब हम पापी ही थे (रोमियों ५:६,८), हम भी एक दूसरे को वैसे ही कबूल कर सकते हैं, जैसे मसीह ने हमें ग्रहण किया (रोमियों १५:७)। हम वही प्रेम और अनुग्रह दूसरों को दे सकते हैं, जो हमने उससे ग्रहण किया है। हम परमेश्वर के वचन, उद्धार की भावना और मेलमिलाप की सेवकाई के माध्यम से दूसरों की जरूरतों में उनकी सेवा कर सकते हैं। हम दूसरों को अनुग्रह देते, सराहना करते, और वही प्रेम करते हैं, जो मसीह ने हमसे किया है (यूहन्ना १५:१२; १३:३४)। नतीजन, विश्वासी मसीह की देह के भीतर एकता का आनंद उठाते हैं। हम विभाजनकारी, नकारात्मक, स्वार्थी, लालची, निर्दयी, नफरत करने वाले, क्रूर, उदासीन, या प्रतिक्रियात्मक नहीं होते हैं। बल्कि, हम पूरी तरह से उसके प्रेम और सत्य की चेतना से प्रेरित होते हैं। जब प्रत्येक सदस्य अपनी बुलाहट में बना रहता है, तब तेल का प्रवाह होता है। दर्शन, प्रार्थना, दिल में प्रेम का एक रवैया, करुणा के आँसू, लक्ष्य, इच्छाएँ, खुशी, उद्देश्य – यह सब तब महसूस किए जाते हैं, जब एक स्थानीय कलीसिया में पापी लोग एकता की भावना में मसीह को ऊँचा उठाते हैं (१ कुरिन्थियों १२)। याद रखें, जो विश्वासी पवित्र आत्मा की शक्ति में काम कर रहा है, वह खुद की तुलना में दूसरों को अधिक ऊँचा आदर देता है। इस सिद्धांत को लागू करने का मतलब यह नहीं है, कि विश्वासी खुद को परमेश्वर की नजर में कम कीमती देखता है, बल्कि यह है कि वह दूसरे विश्वासी के याजकपन का सम्मान करता है, और उसकी गोपनीयता का आदर करता है। वह मसीह की देह में अन्य लोगों की व्यक्तिगत बुलाहटों का सम्मान करता है; उसका रवैया ऐसा होता है, "मैं तुम्हारी स्वतंत्रता और गोपनीयता का आदर करता हूँ। मैं एक विश्वासी-याजक के तौर पर तुम्हारे अधिकारों की रक्षा करूँगा और उस अनुग्रह का प्रावधान दूँगा, जो तुम्हें मेरे हस्तक्षेप के बिना परमेश्वर के सामने खड़े रहने या गिरने देता है।" एकता के कीमती उपहार के लिए परमेश्वर का धन्यवाद। मसीह की देह में एकता मसीह द्वारा गतसमनी के बगीचे में की गई ख़ास प्रार्थना का परिणाम है (यूहन्ना १७)। हम परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भण्डारी के तौर पर बिना अभिमान के समान विचारधारा वाले बन जाते हैं। १ पतरस ४:१० में, नाना प्रकार के अनुग्रह पोईकिलोस (poikilos)  का मतलब है, "हर तरफ अनुग्रह।" हम पवित्र आत्मा में अनुग्रह और परमेश्वर के वचन से घिरे हुए हैं। हम दूसरों को क्षमा करते हुए स्वयं परमेश्वर की क्षमा का अनुभव करते हैं। परमेश्वर हमें उसका अनुग्रह देता है, इसलिए हम दूसरों को अनुग्रह देने में समर्थ हो पाते हैं। हम परमेश्वर के अनुग्रह का कर्मों के बिना प्रत्युत्तर देते हैं। जब चेले एक ही स्थान में एक चित्त में थे, उन पर पवित्र आत्मा के द्वारा सामर्थ्य आई (प्रेरितों के काम २:१; ४:३१,३३; ९:३१), और इस सामर्थ्य ने कलीसिया को यरूशलेम, यहूदिया और सामरिया, साथ ही दुनिया के कोने कोने में भेजा। शुरुआती कलीसिया के सदस्य विश्राम में थे। वे एक दूसरे का प्रोत्साहन करते थे, और परमेश्वर के भय में चलते थे। वे शान्ति में निवास करते हुए परमेश्वर की स्तुति करते आगे बढ़े। जैसे जैसे वे सम्पूर्ण कर्म में विश्राम करते रहे, परमेश्वर का वचन बढ़ता गया (प्रेरितों के काम १२:२४)। जब मसीह की देह इस अद्भुत एकता का अनुभव करती है, सुसमाचार के अभियान को कोई भी चीज नहीं रोक सकती! जब भी विभाजन नष्ट कर दिया जाता है और मसीह की खातिर एकता रखी जाती है, विश्वासी बिना रुकावट के महाआज्ञा को पूरा करने की प्रगति में आगे बढ़ सकते हैं। एकता तभी रखी जा सकती है, जब मसीह की देह के सभी सदस्य क्रूस उठाते और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते हैं (इफिसियों ५:१८ब)। जब कोई विश्वासी आत्मा से परिपूर्ण होता है, वह आसानी से जख्मी नहीं होता। "तेरी व्यवस्था से प्रीति रखने वालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती" (भजन संहिता ११९:१६५)। विश्वासी परमेश्वर द्वारा मेलमिलाप की एक सेवकाई और उद्धार के एक दृष्टिकोण के साथ संपन्न किए गए हैं।

आशिष का तेल

भजन १३३ में, "गिरना" का इब्रानी शब्द तीन बार प्रयोग किया गया है, जिससे एक महत्वपूर्ण बात पर जोर दिया गया है। यह हेर्मोन पर्वत का जिक्र है। ओस निचले और ऊँचे दोनों स्थानों पर गिरी। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तराई कितनी गहरी हो, तेल परमेश्वर के जीवन के साथ उस भूमि को तर करने वहाँ भी उतरेगा। हर कलीसिया जो प्रत्येक वचन से जीने के द्वारा (मत्ती ४:४) परमेश्वर के वचन का सम्मान करता है, वह पवित्र आत्मा में एकता से  आशीषित होगा। विश्वासियों के तौर पर, जब हम परमेश्वर की प्रगतिशील योजना के शासन के अधीन रहते हैं, तब हम लगातार परमेश्वर के आत्मा से परिपूर्ण होते हैं। ध्यान दें कि जो लोग तराई में हैं, वे भी ओस ग्रहण करते हैं। हर विश्वासी, किसी न किसी समय कमजोरी या निराशा की तराई में गिरता है; लेकिन अगर वह परमेश्वर को पुकारता है, तो वह अनमोल "हेर्मोन की ओस" ग्रहण करेगा। प्रतीक के रूप में, ओस संकट के समय में विश्वासी के लिए ऊपर से आने वाली मदद का जिक्र करती है। जब विश्वासी एकता में निवास करते और वचन की ओर आज्ञाकारिता में जीते हैं, तो परमेश्वर आशिष की आज्ञा देता है। भजन १३३:३ में "आशिष" के लिए इब्रानी शब्द बेराका (berakah) है। यह एक स्त्रीवाचक संज्ञा है, जो यह दर्शाता है कि जो विश्वासी एकता में होते हैं, वे एक ईश्वरीय आशिष में जीते हैं। वे अनुग्रह के एक उदार आशिष में ईश्वरीय समृद्धि में जीते हैं। तेल अन्य उपहार और प्रावधान भी निकालकर लाता है, जो परमेश्वर के भरपूर लाभों को पैदा करते और बढ़ाते हैं। आशिष का तेल मसीह की बहुमूल्य देह पर उतरता है। वह कलीसिया जो एकता का सम्मान करता है, वहाँ परमेश्वर का आशीर्वाद, और साथ में उसका आशिष, समृद्धि, और परीक्षाओं के बीच में नाना प्रकार के अनुग्रह होते हैं। वे सिर्फ अभी नहीं, पर सदा एक विशेष ताजगी और एक विशेष सामर्थ्य का अनुभव करेंगे। दूसरे शब्दों में, जब विश्वासी आपस में एकता में रहते हैं, तो उसके अनन्त तक लाभ होते हैं। वह कलीसिया जो एकता के इस सिद्धांत का आदर करेगा, उसमें सदैव जीवन रहेगा। वे जीवनप्रद बल के साथ ऊपर उठते हुए जीवित और ताकतवर रहेंगे। इसलिए, एक दूसरे को प्रेम से सहो और पवित्र आत्मा की एकता को रखो (इफिसियों ४:२)। परमेश्वर के विशिष्ट कार्यों के लिए उसके विशेष सशक्तिकरण के तेल को ग्रहण करो। तेल को अपने जीवन की तराई में उतरने दो। जब तुम अपनी ख़ास बुलाहट में बने रहते हो, तेल तुम्हे ढक लेगा। उसका आशिष हर उस सेवकाई पर होता है, जो एकता के सिद्धांत को ऊँचा उठाती है, क्योंकि उसने हमें एक देह में एक उद्देश्य से बुलाया है - सदा के लिए उसके पुत्र की महिमा करने के लिए।

निष्कर्ष

यीशु मसीह ने अपने स्वर्गीय पिता से इस जीवन में अभी, और अनंत काल दोनों के दौरान एकता की पूर्ति के लिए बिनती की। "हे पिता, मैं चाहता हूं कि जिन्हें तूने मुझे दिया है, जहां मैं हूं, वहां वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने जगत की उत्पत्ति से पहिले मुझसे प्रेम रखा" (यूहन्ना १७:२४)। जब हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तब हम अपने आप से प्रेम कर सकते हैं। फिर हम दूसरों से प्रेम करते हैं, और परिणामस्वरूप परमेश्वर की पूरी व्यवस्था परिपूर्ण हो जाती है (लूका १०:२७-२८)। लेकिन हम उस परमेश्वर से कैसे प्रेम कर सकते हैं, जिसे हमने देखा नहीं है? उत्तर यह है कि हम ऐसा नहीं कर सकते। मतलब यह है कि  हम परमेश्वर से तब तक प्रेम नहीं कर सकते, जब तक १ यूहन्ना ४:१९ के इस उत्कृष्ट सिद्धांत को स्वीकार न करें: "हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उसने हमसे प्रेम किया।" याद रखें कि तेल नीचे की ओर बहता था। इसे नीचे धकेला नहीं जाता था या अन्यथा देह के कार्यों के माध्यम से लागू नहीं किया जाता था। ढके जाने की कुन्जी स्रोत के नीचे बने रहना होता था। जब हम उस जगह में एक चित्त में होते हैं, जहाँ होने के लिए परमेश्वर हमें बुलाया है, तब आशिष का प्रवाह होगा। चाहे बाधाएँ प्रवाह को हटाने की कोशिश करें, वचन और आत्मा को पथ को खोलने दो (यशायाह ४०:३-५ )।

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