परमेश्वर का वचन सुनने के बारे में बहुत कुछ कहता है। "चौकस रहो, कि क्या सुनते हो?" (मरकुस ४:२४अ)। "इसलिये चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो " (लूका ८:१८)। "और सुनने के लिये समीप जाना" (सभोपदेशक ५:१)।
परमेश्वर क्यों इस विषय में इतनी बात करता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह प्रत्येक विश्वासी के जीवन के लिए एक बुलाहट रखता है। प्रकाशितवाक्य २ और ३ में कलीसियों को दिए संदेश में, यीशु ने हमें वह सुनने के लिए सावधान होने के लिए कहा जो आत्मा कलीसियाओं से कहना चाहता है । सात बार उसने यह कहा। एक आत्मा से परिपूर्ण जीवन के लिए पूरा आधार आत्मा से परिपूर्ण सुनना है। हमें यह सीखना आवश्यक है कि यह समझें कि क्या सुनना है और कैसे पवित्र आत्मा के द्वारा सुनना है। वही है जो वह सबकुछ जो हमें सिखाया गया है, उसे स्मरण में लाएगा (यूहन्ना १४:२६)।
आज का दिन शुरू करते हुए, हमें परमेश्वर के सामने आने और उससे यह कहने की जरूरत है कि हम पवित्र आत्मा को हमारे विचारों, हमारी भावनाओं, और हमारी इच्छाशक्ति को नियंत्रित करने देना चाहते हैं। तब वह हमारे जीवन में अधिकार की शुरुआत करेगा, और हम स्पष्ट रूप से उसकी आवाज सुनने में सक्षम हो जाएँगे।