Translated from the booklet by Pastor Carl H. Stevens, of www.ggwo.org titled, 'Waiting upon God.'
परिचय
स्टीवेंस स्कूल ऑफ़ बाइबल में डॉ कार्ल स्टीवंस द्वारा प्रचार किए गए संदेश से ली गई यह पुस्तिका इस तथ्य की चर्चा करती है कि जब विश्वासी के जीवन में कुछ भी होता हुआ नहीं महसूस होता, तब अक्सर वे निराश हो जाते हैं। जब उनकी प्रार्थना के तुरंत उत्तर नहीं मिलते, तो वे चिंतित हो जाते हैं। निम्नलिखित पन्नों में सोच समझकर लगातार यशायाह ४०:३१ का प्रयोग किया गया है, क्योंकि यह पंक्ति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि विश्वासी बस परमेश्वर की बाट जोहने के सिद्धांत को सीखने के द्वारा क्या हासिल कर सकता है।परमेश्वर की बाट जोहना
ऐसा कभी नहीं होता, जब विश्वासी कुछ होने का इन्तज़ार न कर रहे हों। कोई न कोई तो हमेशा होता है, जिसे वे चाहते हैं कि वह कल ही मसीह को ग्रहण कर ले - वे अगले सप्ताह तक इंतजार नहीं करना चाहते हैं। कोई होता है, जिसकी वे चंगाई चाहते है, वे अगले महीने तक नहीं रुकना चाहते। जब कोई कुछ वादा करता है, तब उन्हें चाहिए कि वह वादा तुरंत पूरा हो। इस तरह की सोच विश्वासियों में भी कुंठा, चिंता और व्याकुलता पैदा कर सकती है। चिंता को उस मजबूर करने वाली भावना से समझाया जा सकता है, जो परमेश्वर के अनुग्रह से भटक जाने के माध्यम से आती है। ये बातें उन विश्वासियों की विशेषता हो जातीं हैं क्योंकि वे यशायाह ४०:३१ के वादे का गलत अर्थ लगा लेते हैं: "परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों की नाईं उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।" जो मसीही विश्वास की व्यवस्था का अनुभव नहीं करता, अय्यूब ३:२५-२६ में वर्णित डर की व्यवस्था में रह रहा होता है। जब उसका जीवन विश्वास की व्यवस्था से संचालित किया जाता है, तब वह मानता है कि जैसा लिखा है, वैसा ही होगा। वह जानता है कि जैसा होने के लिए परमेश्वर ने कहा है, वैसा ही होगा। उसके जीवन के जिस भी क्षेत्र में यीशु मसीह में भरोसे के साथ परमेश्वर के अनुग्रह से विश्वास कार्य नहीं करता, उसमें डर काबू कर लेगा। कई विश्वासी हैं जो अनजाने में डर की व्यवस्था में जीते हैं, क्योंकि वे इसे परिभाषित नहीं करते। जरूरी नहीं है कि वे डर महसूस करें : लेकिन अगर कोई व्यक्ति मसीह में विश्वास की सही गुणवत्ता के साथ विश्वास नहीं करता, तब यह संभव है कि चिन्ता डर की व्यवस्था पैदा कर दे। डर एक व्यक्ति द्वारा सत्य को, आन्तरिक बनाने की बजाय सिर्फ ज्ञान की बात बनाकर छोड़ देता है। वह सन्देशों को सुन तो सकता है, पर वचन को व्यावहारिकता में उपयोग में लाने में असफल रहता है। कई मसीही हैं, जो किसी प्रत्यक्ष पाप में तो नहीं, लेकिन डर की व्यवस्था में जीते हैं। वे मसीह को अपना उद्धारकर्ता मानते हैं, लेकिन श्रेणीगत उपदेश में उस पर विश्वास नहीं करते। वे परमेश्वर के प्रत्येक वचन से नहीं जीते (मत्ती ४:४)। यह एहसास करें: जीवन उन क्षणों से बना होता है, जो यह दिखाते हैं कि विश्वासी किस पर भरोसा करता है। हालातें उनके निर्देष-तंत्र को बेनकाब करतीं हैं, कि वह कल्वरी है या खुद पर ध्यान देना। चिंता, निराशा, आलोचना, प्रतिक्रिया आदि एक ऐसा व्यक्ति दिखती हैं, जिसमें खुद पर ध्यान देने का बोलबाला है। किसी भी हालात में, एक विश्वासी का निर्देष-तंत्र या तो मसीह का मन (१ कुरिन्थियों २:१६) होगा या पुराने पापी स्वभाव का मन। परमेश्वर ऐसी हालातें लेकर आता है, जो विश्वासी का उस पर भरोसा करने का कारण बनें। वह उसे यह सिखाना चाहता है कि उसे परिस्थितियों की परवाह किए बिना विजयन्त होकर कैसे जीना है। भजन के लेखक ने पुकारा, "मुझे तेजी से सुन" (भजन संहिता ६९:१७)। लेकिन यह हमेशा परमेश्वर का तरीका नहीं है। अगर ऐसा होता, तो मसीहियों का जीवन एक सूत्र बनकर रह जाता। उनकी शब्दावली और जीवन शैली पारम्परिक शब्दों में स्थापित हो जाती, और वे श्रेणीगत विश्वास के प्रगतिशील साहसिक जीवन को कभी भी नहीं समझ पाते (रोमियो १:१७)।बाट जोहना आशा करना होता है
परमेश्वर की बाट जोहने के कई गुण होते हैं। बाट जोहने का मतलब है, परमेश्वर की मदद की उम्मीद करना। इसमें कभी भी निष्क्रियता निहित नहीं होती है। मान लो कि कोई किसान कहता है, "मैं इस बसन्त में खेती नहीं करने जा रहा हूँ। मैं बस परमेश्वर की बाट जोहूँगा और देखूँगा कि क्या होता है।" उसने बीज नहीं बोया। उसने कहा, "मैं बस फसलों के आने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने जा रहा हूँ।" फसल का समय आता है, वह बाहर खेत में जाता है और वहाँ कुछ भी नहीं है। आखिर क्यों? उसने बोया नहीं, इसलिए उसने काटा नहीं। यह आत्मिक तुलना २ कुरिन्थियों ९:६ में पाई जाती है। उसने इन्तजार किया, पर उसने अपेक्षा नहीं की। परमेश्वर की बाट जोहना परिणाम की परवाह के बिना उसके वचन में विश्वास और भरोसे से भरा होता है। जो मसीही धैर्यपूर्वक आशा के साथ बाट जोहते हैं, वे परमेश्वर के चरित्र पर अपना भरोसा प्रकट करते हैं। इन्तज़ार करने के द्वारा वे अपने मनों को उसके विचारों के साथ आदान-प्रदान करते हैं। वे नए बनाए जाते हैं। वे मजबूत किए जाते हैं। चूँकि वे भरे जा रहे होते हैं, वे अपनी इन्सानी कमजोरियों के बावजूद और अधिक सक्षम और अपने विश्वास में निर्भीक हो जाते हैं। वचन बाट जोहने के लिए पुरस्कार का वादा करता है। प्रेरितों के काम १:४ में, यीशु ने अपने चेलों से यरूशलेम जाने और "पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहने" को कहा। उन्होंने वही किया जो उसने कहा था और प्रेरितों के काम २:४ में, उन्होंने पवित्र आत्मा ग्रहण किया। भजन ९१:१ कहता है, "जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा।" बैठा रहने का मतलब है "आशा के साथ आराम करते हुए बाट जोहना।" "यदि तुम मुझमें बने रहो, और मेरी बातें तुममें बनी रहें, तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा" (यूहन्ना १५:७)। नीतिवचन २७:१८ में, मसीहियों को बताया गया है कि "जो अपने स्वामी की सेवा करता है, उसकी महिमा होती है।" मूसा और इसराएल के लोग लाल समुन्दर पर पहुंचे और परमेश्वर ने उनसे कहा, “डरो मत, खड़े खड़े वह उद्धार का काम देखो” (निर्गमन १४:१३ब)। मूसा ने आश्वस्त उम्मीद के साथ परमेश्वर की बाट जोही, और परमेश्वर ने मिस्र से इसराएल देश को बचाने के लिए पानी को विभाजित किया।अपने आप को दिखाने से पहले खुद को छिपाओ
कि यहां से चलकर पूरब ओर मुख करके करीत नाम नाले में जो यरदन के साम्हने है छिप जा (१ राजा १७:३)। कई लोग परमेश्वर के साथ निजी व्यक्तिगत संगति के बिना उसका काम करने का प्रयास करते हैं। एलिय्याह मसीहियों जैसा ही दुख-सुख भोगी मनुष्य था (याकूब ५:१७अ)। उसकी मुसीबतें वैसी ही थीं, जैसी आज विश्वासियों की होती हैं। १ राजा १७:३ में, एलिय्याह ने इन भावनाओं से खुद को दूर किया। उसने परमेश्वर की बाट जोहने में समय बिताया। फिर, १ राजा १८:१ में परमेश्वर ने उसे खुद को दिखाने के लिए कहा। बाद में, १ राजा के इसी अध्याय में एलिय्याह कर्मेल पर्वत के ऊपर गया और परमेश्वर ने बाल के ४५० नबियों के खिलाफ पराक्रम से उसे इस्तेमाल किया। प्रभु की आग एलिय्याह की बलि पर उतरी, और परमेश्वर की महिमा हुई। यह एक खूबसूरत विजय थी। लेकिन यह दिलचस्प है कि १ राजा १९ में, एलिय्याह को यह सन्देश मिला कि ईजेबेल उसका पीछा कर रही थी। इस बार वह खुद को छिपाने और परमेश्वर की बाट जोहने की बजाय झाऊ के पेड़ की ओर भागा और अपनी मौत की विनती किया (१ राजा १९:४)। उसने परमेश्वर की बाट नहीं जोही। मसीहियों को धैर्यपूर्वक परमेश्वर की बाट जोहते हुए, उनके मानसिक रवैये में लगातार अटल बने रहने की जरूरत है।बाट जोहना प्रशिक्षण है
लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उस को चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा (नीतिवचन २२:६) अपनी सन्तानों को प्रशिक्षित करना परमेश्वर की जिम्मेदारी है। परमेश्वर की बाट जोहना विश्वासियों को परोक्ष, खुलकर, और चिंता या निराशा के बिना उस पर भरोसा करना सिखाता है। वे बाट जोहते हैं, और वे नया बल पाते हैं (यशायाह ४०:३१)। इसका मतलब यह है कि परमेश्वर उनकी पुराने पापी स्वभाव पर निर्भरता को नष्ट कर देता है और एक नया ऊर्जा स्रोत देता है। वह उन्हें बल की एक स्थिति से दूसरी स्थिति में ले जाता है। परमेश्वर आदम की मानसिक थकावट को समाप्त करता है। वह पुराने मनुष्य का नकारात्मकता का रवैया ख़त्म करता है। जब वह जीवन (फिलिप्पियों २:१६) और अनुग्रह (प्रेरितों के काम २०:३२) के वचनों के माध्यम से उनका निर्माण करता है, तब उनकी देह की बेहोशी की भावना साफ़ हो जाती है। अंततः वे ऊपरी जीवन के द्वारा जिलाए, नए बनाए और पुनर्जीवित किए जाते हैं। परमेश्वर बाट जोहने की प्रक्रिया के माध्यम से उनका प्रशिक्षण करता है, ताकि वे ऊब न जाएँ। वह उन्हें नए सिरे से बात करने, सोचने, कार्य करने और सहन करने के लिए नई ताकत देना चाहता है । शक्ति इब्रानी भाषा में कोवाच (kowach) शब्द है। यह न केवल भावनाओं में, बल्कि भौतिक शरीर की शक्ति का जिक्र करता है। "जो बाट जोहते हैं," उन्हें परमेश्वर विशेष ऊर्जा प्रदान करता है।उकाबों की नाईं उड़ना
यशायाह ४०:३१ में वर्णित उकाब एक बहुत ही महत्वपूर्ण उदाहरण है। "उकाबों की नाईं पंखों से उड़ना" का मतलब है कि जो मसीही परमेश्वर की बाट जोहता है, वह ऊँचा उठेगा। वह उत्कृष्ट बनेगा। उकाब दुर्गम स्थानों में अपने घोसले बनाता है। वह चट्टानों में बसता है (अय्यूब ३९:२८)। नीतिवचन ३०:१९ बताता है, कि उसका मार्ग आकाश में होता है। वह बिना प्रयास के उड़ता है। एक उकाब बिना कोई ऊर्जा खर्च किए ऊपर उड़ता है। उकाब एकलौता पक्षी है, जिसकी आँखों को सूरज की ओर सीधे देखने के बावजूद भी चोट नहीं पहुँचती है। इसका अनुप्रयोग यह है: परमेश्वर चाहता है कि मसीही उकाब जैसे हों। वह उन्हें विवरणों और परिस्थितियों के प्रभाव से अपने दिलों को बचाकर रखते हुए, प्रार्थना और वचन पर मनन करने में, उसकी बाट जोहना सिखाना चाहता है। तब, वह उन्हें ऊँचा उठने में सक्षम करेगा। वे सहजता से चरम परीक्षाओं और कठिनाइयों से ऊपर चढ़ते जाएँगे। वे विश्वास के विश्राम वाले मसीही होंगे, जो अपने मन और भावनाओं में परेशान नहीं किए जाएँगे। इस तरह के विश्वासी सीधे परमेश्वर के पुत्र पर नजर रख सकते हैं और शुद्ध विश्वास में जी सकते हैं। कोई मसीही इस तरह का नवीकरण तब अनुभव कर सकता है, जब वह उपदेश की श्रेणियों का आहार खाता है, परमेश्वर के अनुग्रह के माध्यम से निर्णय करता है, और वचन में दिखाए गए अनुग्रह का आनन्द उठाता है। मत्ती १४:२३ में, यीशु एक पहाड़ पर चला गया और उसने एक एकान्त स्थान में प्रार्थना की। पुत्र स्वयं पिता परमेश्वर की बाट जोहने के लिए गया। उसने कहा कि वह जो वचन देता है, वे पिता से होते हैं (यूहन्ना १७:८)। यीशु अपनी मानवता में, प्रभु की बाट जोहने, पिता के विचारों को ग्रहण करने और नया बनाए जाने के लिए शान्त स्थान पर गया। मरकुस १:३५ बताता है कि वह परमेश्वर से मिलने के लिए भोर से बहुत पहले उठता था। पौलुस ने अरब में तीन साल बिताए। क्यों? क्योंकि उसे परमेश्वर की बाट जोहना सीखने की जरूरत थी। अगर मसीही वास्तव में भरपूरता में जीना चाहते हैं, तो परमेश्वर को उन्हें उसकी बाट जोहना सिखाना होगा।चार ताकतें
जब विश्वासी परमेश्वर की बाट जोहता है, तब वह यशायाह ४०:३१ के अनुसार चार विशिष्ट प्रकार की ताकतें प्राप्त करता है। उसे परमेश्वर द्वारा नवीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से आन्तरिक शक्ति दी जाती है। “दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे” बाहरी ताकत को दर्शाता है। “उकाबों की नाईं उड़ेंगे” ऊपर की ओर की शक्ति के बारे में बोलता है। और “वह चलेंगे और थकित न होंगे” इसका मतलब है कि उसके पास अब आगे बढ़ने की ताकत है। मसीही शक्ति के इन क्षेत्रों में से प्रत्येक में बस उस पर बाट जोहने के द्वारा परिपक्व किया जा सकता है। परमेश्वर की कृपा की वजह से ऐसा कोई भी नहीं है, जो उसकी बाट जोहना सीखता हो और निराश किया जाए। कोई भी नहीं है, जो उस पर बाट जोहता हो और अप्रिय महसूस करे, क्योंकि जब वह बाट जोह रहा होता है, तब प्रेम ग्रहण करता है। ऐसा कोई नहीं है जो परमेश्वर बाट जोहना सीखता हो, और खाली महसूस करे, क्योंकि वह बाट जोहते हुए उसकी सहभागिता से भर जाता है। जो लोग परमेश्वर की बाट नहीं जोहते हैं, वे इन बातों को प्राप्त नहीं करेंगे। वे थके हुए और श्रमित हो जाएँगे। कभी कभी, वे लोगों पर प्रतिक्रिया और हमला करेंगे, क्योंकि उन्होंने बाट जोहने के सिद्धांत को नहीं सीखा है।बाट जोहने के रोमांच
सबसे बड़ा रोमांच जो मसीही अनुभव कर सकते हैं, वह है एक वादा पढ़ना और वास्तव में उस पर विश्वास करना। सालों तक किसी एक खोए हुए व्यक्ति के लिए प्रार्थना करना और फिर उसे मसीह को ग्रहण करते देखना, या किसी के शरीर के चंगा होने के लिए प्रार्थना करना और उसे पूरा होते देखना, एक रोमांच है। नौजवान लोगों को विदेश में मिशन के लिए जाते देखना रोमांचक है। परमेश्वर ऐसे लोग चाहता है, जो उस पर बाट जो्हेंगे, "खोए हुओं की तलाश करके बचाने के लिए उसका दर्शन प्राप्त करेंगे" (लूका १९:१०ब), और किसी दूसरे देश में जाएँगे। एक औरत जो ९१ साल की थी और एक अस्पताल के बिस्तर में पड़ी हुई थी। वह दूसरों से कहती थी कि वह कमजोर हो गई थी और अब और नहीं चल सकती थी। वह कहती थी, "मैं इस बिस्तर पर पड़े परमेश्वर को जानने में’ खुश हूँ।" हर रात अस्पताल में नर्सें उसके बिस्तर के पास इकट्ठी होती थीं और वह उन्हें पवित्रशास्त्र सुनाती थी। और वह नर्सों से कहती थी, "परमेश्वर का वचन बस मुझे बाहरी तौर पर ही नहीं जिन्दा रख रहा है, बल्कि यह मुझे एक स्वस्थ दिमाग के साथ सचेत, उत्सुक और संवेदनशील रखे हुए है।" इस औरत की धमनियों कठोर हो गईं थी। वह सत्तर साल से ज्यादा की थी। उसे चीजें याद नहीं रहनी चाहिए थीं, लेकिन वचन शारिरिक समस्याओं से मुकाबला कर रहा था। उसने कभी अपनी याददाश्त नहीं खोई; वह वृद्धावस्था में कभी नहीं पहुँची। आखिर क्यों? वह परमेश्वर की बाट जोहती थी। उसने खुद को उसके उपदेश की श्रेणियों में छिपा लिया और वचन ने उसको जिलाया (भजन ११९:१५४)।बाट जोहने का बदला
यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह! (भजन २७:१४) इस पंक्ति में "बाट जोहता" इब्रानी में गवाह (gavah) है। यह एक बहुवचन आदेशात्मक है, और तीव्रता के साथ पुनरावृत्ति को दर्शाता है। विश्वासियों को धैर्यपूर्वक आशा की लगातार तेजी के साथ बाट जोहना है। "हियाब बाँध" के लिए मूल इब्रानी वाक्यांश हयाह खज़ाक (hayah chazaq) है। इन शब्दों का मतलब परमेश्वर से प्राप्त किए वादों की ओर ख़ास दृढ़ विश्वास में हमारा "मजबूत, दृढ़ और निडर" किया जाना है। जब मसीही उसके उपदेश के वादे पर आशा और आराम करते हुए बाट जोहते हैं, तो वे विशेष साहस और शक्ति प्राप्त करते हैं। "दृढ़ रहे" आमात्स (amats) का मतलब है "मानसिक रूप से सचेत बनाना।" यहोशू १:७अ में यहोशू इस रवैया का एक मिसाल है (इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ हो कर)। तस्वीर यह है: परमेश्वर हर विश्वासी को समझ के एक आधार के ऊपर स्थापित करता है। वह उन्हें मजबूत बनाएगा, जिससे वे भावनात्मक रूप से न डगमगाएँ। वह ऐसा तब करेगा, अगर वे बस बाट जोहेंगे: सो अपना हियाव न छोड़ो क्योंकि उसका प्रतिफल बड़ा है। क्योंकि तुम्हें धीरज धरना अवश्य है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ (इब्रानियों १०:३५-३६)। परमेश्वर की ओर विश्वासी के विश्वास को अद्भुत बदले के साथ पुरस्कृत किया जाएगा। अद्भुत बदले का मतलब यह है कि परमेश्वर उसे बाट जोहने के बदले में अनुग्रह देता है। मसीही के पास उसकी हालात के बावजूद अनुग्रह के माध्यम से पिता के साथ एक सम्बन्ध की क्षमता होती है। परमेश्वर चाहता है कि वह बाट जोहना और हालातों और परिस्थितियों के बावजूद उसके अनुग्रह का अनुभव करना सीखे। बाट जोहने में, वह धीरज का ईनाम प्राप्त करेगा। हर विश्वासी को परमेश्वर के धीरज को विकसित करने में तराइयों का अनुभव करना आवश्यक है। उसने सारा और इब्राहीम को इसहाक के लिए कई सालों तक बाट जोहने दिया। इससे पहले कि वह मूसा को इसराएल को बन्धुआई से बाहर नेतृत्व करने के लिए तैयार करता, उसने उसे रेगिस्तान के पीछे ४० साल बाट जोहने दिया। माता-पिताओं को अक्सर अपने बच्चों को वह बनने के लिए बाट जोहना पड़ता है जो वे उन्हें बनते देखना चाहते हैं। पतियों और पत्नियों को कभी कभी उनके सम्बन्ध के विकसित होने से पहले बहुत समय तक बाट जोहना और प्रार्थना करना पड़ता है। जब वे बाट जोहते हैं, तो परमेश्वर उन्हें अपने स्वरूप में बदलता है। वह एक ईश्वरीय धैर्य उपजाता है, जो पवित्र आत्मा का क्रूस पर विकसित फल होता है।निष्कर्ष
सारांश में, परमेश्वर की बाट जोहना विश्वासी के लिए निष्क्रियता का समय नहीं है, बल्कि यह उसके लिए वचन के द्वारा परमेश्वर के नजदीक आने का एक अवसर है। जैसे जैसे मसीही उपदेश की सच्चाई में नींव पकड़ता है, वह चिंता के बिना जीना सीखता है, और परमेश्वर के अनुग्रह से वह बढ़ते रहने के लिए शक्ति और वादे की बाट जोहने के लिए धैर्य विकसित करता है।